B Positive : विश्वसनीय बनें
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B Positive : लगभग 20 साल पहले एक खबर सुर्खियों में आयी कि एक बिजनेस ग्रुप ने अपनी कंपनी के लोगो को डिजाइन करने में 150 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च कर दिए . उस समय इस खबर को पढ़कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि क्या चक्कर है. छोटे से इस ब्रांड लोगो को बनाने में कोई इतना पैसा कैसे खर्च कर सकता है या क्या इतने पैसे खर्च करने की जरूरत है ?
खैर गुजरते वक्त के साथ जब मैं चीजों को गहराई से सोचने लगा तो समझ में आने लगा कि हम कोई प्रोडक्ट या सर्विस किसी विशेष कंपनी से क्यों खरीदते हैं जबकि शायद उसी या उससे बेहतर गुणवत्ता वाला सामान/सर्विस उतने या उससे कम पैसे में भी मिलना संभव है.
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वस्तुतः किसी वस्तु /सर्विस की बेहतरी का पैमाना उसकी गुणवत्ता या अन्य आंतरिक गुणों से बाद में निर्धारित होता है. उससे पहले हम उस ब्रांड के बारे में क्या महसूस करते हैं/सोचते हैं वो हमारे निर्णय को बहुत हद तक प्रभावित करता है. यही वजह है कि आज सभी ब्रांड अपने लोगो या अपनी छवि/इमेज/परसेप्शन को लेकर बहुत सजग हैं और उसे बेहतर करने में एक-एक चीज का बहुत बारीकी से ध्यान रखते हुए लाखों -करोड़ों खर्च करते हैं.
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छवि/इमेज/परसेप्शन सिर्फ किसी ब्रांड/संस्थान के लिए ही नहीं, व्यक्ति के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है. क्या कारण है हम जिस व्यक्ति से कभी मिलते भी नहीं हैं, उसके बारे में भी एक नजरिया(अच्छा या खराब) बना लेते हैं ? जब हमने उसके काम को गहराई से देखा भी नहीं तो हम कोई बढ़िया या खराब हैं, इसका निर्धारण कैसे कर लेते हैं?
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वस्तुतः किसी के आकलन करने में उसके बारे में परसेप्शन का बहुत बड़ा योगदान होता है और इसका सृजन लंबे समय तक उस व्यक्ति के द्वारा किए कार्य, आचार-व्यवहार और संस्कार के आधार पर होता है और इसी परसेप्शन के आधार पर किसी भी व्यक्ति की विश्वसनीयता बनती या बिगड़ती है. एक इंसान के रूप में जरूरी है कि सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस हो और मुद्दों के आधार पर अपने विचार का निर्धारण करें.
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किसी सभा या समूह में भी आप अपनी बात या विचार को तरीके से कहने या रखने की कोशिश जरूर करें. वक्त या सामने वाले इंसान के विचारों को देखते हुए लाभ या हानि के आधार पर अपने मूल विचारों की तिलांजलि देना सही नहीं है. एक इंसान को ये डर रहता है कि अगर मैं अपने विचार रखता हूं तो हो सकता है कि गलत तरीके से मुझे चिन्हित कर लिया जाए. मेरी साफगोई कहीं मेरी प्रगति में बाधक ना बन जाए. क्षणिक लाभ के चक्कर में अपने विचारों का निर्धारण सही नहीं है. हो सकता है कुछेक मौकों पर धारा के विपरीत अपने विचार व्यक्त करने पर इसका थोड़ा नुकसान भी हो, लेकिन लंबे वक्त में निश्चित तौर पर विचारों की दृढ़ता एक इंसान की बेहतरी में सहायक होती है. उसकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है.
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इसलिए एक इंसान के रूप में जरूरी है कि हमारी छवि एक ऐसी व्यक्ति के रूप में हो, जिस पर लोग विश्वास कर सकें, लेकिन एक और बात जो मैं महसूस करता हूं कि कभी-कभी हम अपनी छवि के निर्माण के चक्कर में अपने आपको एक खास सांचे में कैद कर लेते हैं या यूं कह सकते हैं कि हम छद्म जीवन जीने लगते हैं. हम जो करते हैं वो हमारी सोच से काफी भिन्न होता है. इसलिए मेरा मानना है कि सामने वाले के बेहतर विचारों को सुनें. उसके अच्छे कर्मों से प्रेरणा लें, लेकिन अपनी मौलिकता को बचाकर रखें.
बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं कि अगर इंसान का धन चला जाए तो उसकी भरपाई संभव है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता पर आंच आ जाए तो भरपाई बहुत ही मुश्किल है.
Posted By : Guru Swarup Mishra