जिंदगी का फलसफा
B Positive : पिछले दिनों प्रभात खबर के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के अंतर्गत स्थापित कंप्यूटर सेंटर के शुभारंभ के लिए अपने वरीय और सहकर्मियों के साथ खूंटी के एक गांव मुंदरी टोला पहुंचा था. यहां एक स्वयंसेवी संस्था की ओर से संचालित आश्रय गृह है. इन आश्रय गृह में ईंट भट्टों में काम करने वाली मांओं की बच्चियों को ला कर रखा जाता है. इन बच्चियों से मिलने, इनकी कहानियों को सुनने, इनके दर्द से रू-ब-रू होने का अवसर मिला.
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B Positive : क्या आपको अपनी जिंदगी से शिकायत है ? क्या आप अपने बच्चों को जिंदगी का फलसफा बताना या सीखाना चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि निष्ठुर होते समाज को फिर से संवेदनशील बनाएं, तो इसका जवाब ढूंढने के लिए आपको किनसे मिलना चाहिए, कहां जाना चाहिए? यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं कि क्योंकि इस सवाल का जवाब मैं, आप और बहुत सारे लोग जीवन में ढूंढने की कोशिश करते रहते हैं.
इन सवालों के बीच ही मैं पिछले दिनों प्रभात खबर के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के अंतर्गत स्थापित कंप्यूटर सेंटर के शुभारंभ के लिए अपने वरीय और सहकर्मियों के साथ खूंटी के एक गांव मुंदरी टोला पहुंचा था. यहां एक स्वयंसेवी संस्था की ओर से संचालित आश्रय गृह है. इन आश्रय गृह में ईंट भट्टों में काम करने वाली मांओं की बच्चियों को ला कर रखा जाता है. इन बच्चियों से मिलने, इनकी कहानियों को सुनने, इनके दर्द से रू-ब-रू होने का अवसर मिला.
हर बच्ची का जीवन एक कहानी की तरह लगने लगा. सुमरी, सीमा खाखा, उर्मिला जैसी कुछेक बच्चियों की दास्तां सुनने का भी अवसर मिला. इन तीनों ने जब बेबाक -बिना बनावटीपन के बोलना शुरू किया तो मैं उन्हें एकटक निहारने लगा. वाकपटुता और उनका आत्मविश्वास गजब का था. सुमरी को मेरे मित्र (जिनका वहां सामाजिक कार्यों के कारण पहले से आना-जाना रहा है) नेता पुकार रहे थे. मैंने उनसे पूछा कि इसका नाम नेता क्यों है ? मुस्कुराते हुए मेरे मित्र ने कहा कि इसे हम प्यार से नेता पुकारते हैं क्योंकि जिस धाराप्रवाह और आत्मविश्वास के साथ बोलती है उससे लगता है कि ये आगे जाकर लीड करेगी, नेता बनेगी.
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इन बच्चियों ने बताया कैसे 8-10 साल की उम्र में इन्हें ईंट भट्टों से छुड़ा कर लाया गया. आश्रय स्थल में रहने की जगह मिली और आज वो 11वीं-12वीं में पढ़ाई कर रही हैं.
उन्हें ना सिर्फ अपनी बल्कि उनके जैसे दूसरों की भी फिक्र थी. कैसे वो समाज में अपने जैसे बच्चे -बच्चियों को अपने अनुभव, काबिलियत के माध्यम से मदद करेंगी. उन्होंने जो जीवन में वेदना झेली है, वो कम से कम अपने आसपास के बच्चों को नहीं झेलना पड़े.
यकीन मानिए, इनकी कहानी सुनने के बाद आपको अपनी जिंदगी से जो भी शिकायत होगी, वह दूर हो जायेगी. आपको लगेगा कि हम अपनी परेशानी को लेकर सदमें में रहते हैं, मानसिक अवसाद में रहते हैं, लगता है ईश्वर ने मुझे इतनी तकलीफ क्यों दी है ? लेकिन घोर अभाव के बीच भी इन बच्चियों की आंखों में जो चमक है, उसमें शिकायतों की शायद ही कोई जगह है. जिंदगी का हर रंग इन्हें स्वीकार है. मुझे लगा कि यह अनुभव आपके साथ साझा करना जरूरी है.
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मुझे लगा कि यहां अपने बच्चों को भी लाना चाहिए, ताकि उन्हें यह अनुभव हो सके कि तमाम अभावों के बावजूद जिंदगी का मजा कैसे लिया जा सकता है. रोज शहरों में बच्चों की आत्महत्या की खबरें सुर्खियां बनती हैं, जबकि उन्हें जीवन की हरेक सुख सुविधा उपलब्ध है. यहां मेरे दोस्तों को भी आना चाहिए, जो सीमा खाखा, सुमरी और उर्मिला से मिलकर यह अनुभव कर सकेंगे कि समाज अभी हारा नहीं है. इंसानियत को अपने हृदय के कम से कम एक कोना में रखने से ही यह समाज बेहतर बन सकता है.
खूंटी के आश्रय गृह से लौटने के बाद ही मैंने अनुभव किया कि हमें खुद और पूरे परिवार को लेकर हर महीने दो महीने में किसी आश्रय गृह, विशेष बच्चों के लिए चलने वाले विद्यालयों में जरूर जाना चाहिए ,उनके साथ खुशियां बांटनी चाहिए. मुझे लगता है अगर हम ये करेंगे तो हम अपनी समस्याओं, परेशानियों और अभाव के बीच सकारात्मक नजरिया हासिल कर सकते हैं.
Posted By : Samir Ranjan.