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पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कहर के कारण डर और अनिश्चितता का माहौल है. आनेवाले दिनों में हालात बेहतर होंगे या बिगड़ेंगे, ये बताने की स्थिति में शायद ही कोई है. ये अब तक के सबसे मुश्किल समय में से एक है या यूं कहें कि सबसे मुश्किल दौर है. कठिन समय में एक व्यक्ति के मन में वर्तमान और भविष्य को लेकर कई तरह की चिंताएं घर कर जाती हैं.
ये चिंताएं मानसिक, शारीरिक या आर्थिक कुछ भी हो सकती हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या चिंता हमारी समस्याओं या आपदाओं का निवारण कर सकती है. फिर मन में लगातार ये द्वंद्व चलता रहता है कि जब चीजें हमारे प्रतिकूल हों, तो क्या करें. क्या वक्त के गुजर जाने का इंतजार करने से हमारी चिंताओं का अंत हो जायेगा या फिर चिंता करने के बजाय चिंतन करें कि इस मुश्किल वक्त से कैसे उबरा जाये.
जब हम इस तरह के उहापोह में होते हैं, तो इतिहास, व्यक्ति और समाज हमारा मार्गदर्शन करते हैं. हम देखते हैं कि कैसे इंसान ने सबसे मुश्किल क्षणों में भी न सिर्फ अपने को बचा कर रखा, बल्कि इसे अवसर के रूप में तब्दील कर दिया है.
वर्ष 1665 में लंदन बुरी तरह से प्लेग की चपेट में था. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी बंद हो गयी थी. इसके कारण महान वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन को घर में रहना पड़ा था. इस दौरान उन्होंने कैलकुलस व ऑप्टिक थ्योरी पर महत्वपूर्ण काम किया. बगीचे में बैठने के दौरान सेब को जमीन पर गिरते हुए देखकर गुरुत्वाकर्षण और मोशन के सिद्धांत पर काम करने को लेकर सोचना शुरू किया.
आज सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम हौसला बरकरार रखकर सोचें कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है. मानसिक मजबूती किसी भी मुश्किल हालात से उबरने में सबसे अहम तत्व है. हम सभी जानते हैं कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.
जहां तक शारीरिक मसला है तो इसमें घबराएं नहीं. सावधानी बरतें. जहां तक आर्थिक मसला है, तो हर इंसान अपनी रोजी-रोटी व जीविकोपार्जन पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित रहता है, क्योंकि इसके डगमगाने या लड़खड़ाने का नकारात्मक असर न सिर्फ उस पर, बल्कि पूरे परिवार पर पड़ता है. मन में ये सवाल चलता रहता है कि अगर ये मामला लंबा खींचा तो उनके आर्थिक हालात पर इसका क्या असर होगा.
हम सभी जानते हैं कि हमारा जीवन जब आराम से या बिना किसी परेशानी के चलता है, तो उस वक्त हम बहुत सारे गैर जरूरी या विलासिता पर खर्च करते हैं, जिसे अंग्रेजी में स्किन फैट कहते हैं, लेकिन कठिन दौर में जब हमें लगता है कि हमारी आमद बढ़ने की जगह कम हो सकती है, तो हम अपने गैर जरूरी (विलासिता) के खर्चे कम कर लेते हैं और उतना ही खर्च करते हैं जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता है.
दूसरा, अगर हमें लगता है कि जो हम कर रहे हैं, उसमें गिरावट तय है, तो हमें नये रास्ते की तलाश करनी चाहिए, ताकि नुकसान न हो या हो तो फिर कम से कम हो. हम सभी जानते हैं कि आगे बढ़ने के रास्ते कभी बंद नहीं होते हैं. अगर एक रास्ता बंद होता है, तो इंसान अपनी कोशिश और हौसलों से नये रास्ते की तलाश कर लेता है. अमूमन समाज में ये दिखता भी है.
अंत में मेरा मानना है कि हमें सकारात्मक रहकर जीवन में आगे बढ़ने के कारण तलाशने होंगे. अगर लगता है कि हम कुछ भी कर लें, खत्म होना तय है, तो फिर ये जज्बा जरूर रखिए कि अगर खत्म होना ही है, तो मैं अंतिम व्यक्ति रहूं, जिसने आत्मसमर्पण किया.