B Positive : हकीकत को समझें
Facebook : www.facebook.com/vijaybahadurofficial YouTube : www.youtube.com/vijaybahadur email- vijay@prabhatkhabar.in फेसबुक से जुड़ें टि्वटर से जुड़े यूट्यूब पर आयें B Positive : बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम 10 नवंबर को आ गया. बहुत ही कड़े संघर्ष में एनडीए ने महागठबंधन को पराजित किया, जबकि 2 दिन पहले तक तमाम एग्जिट पोल में चुनावी नतीजों की तस्वीर अलग नजर आ रही थी. चुनावी हार -जीत के बहुत सारे राजनीतिक कारण होते हैं और ये एक अलग विमर्श का विषय है.
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B Positive : बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम 10 नवंबर को आ गया. बहुत ही कड़े संघर्ष में एनडीए ने महागठबंधन को पराजित किया, जबकि 2 दिन पहले तक तमाम एग्जिट पोल में चुनावी नतीजों की तस्वीर अलग नजर आ रही थी. चुनावी हार -जीत के बहुत सारे राजनीतिक कारण होते हैं और ये एक अलग विमर्श का विषय है.
मुद्दा ये है कि क्यों बहुत बार हम जो विश्वास (सोचते हैं) करते हैं परिणाम उससे बिल्कुल उलट आता है. अपने जीवन में भी देखें. हम किसी व्यक्ति को अच्छा या बुरा क्यों मानने लगते हैं. क्या इसका आधार सिर्फ किसी भी व्यक्ति का गुण या अवगुण है.
इंसान का अपने पर विश्वास होना जरूरी है, लेकिन अति आत्मविश्वास बहुत बार इंसान को ले डूबता है. जब कोई व्यक्ति अति आत्मविश्वास में रहता है, उस समय वैसे सारे कारकों और रिस्क फैक्टर को इग्नोर करता है जो परिणाम को प्रभावित कर सकता है. अमूमन इंसान अपना काम बहुत शिद्दत के साथ शुरू करता है, लेकिन बहुत बार मंजिल के पास पहुंच कर निश्चिन्तता का भाव ले आता है और यही वो वक्त होता है जब चूक की गुंजाइश रहती है.
इंसान का किसी विषय पर अनुभूति (परसेप्शन ) के आधार पर निर्णय करना भी चूक का कारण बन जाता है. परसेप्शन बनने में बाह्य और आंतरिक दोनों कारण होते हैं. धनबल , बेहतर स्ट्रेटेजी, मीडिया और प्रभावित करने वाले मुद्दों के आधार पर माहौल बनता(बनाया जाता) है और इस शोर या माहौल के आधार पर हम एक परसेप्शन बना लेते हैं जबकि हकीकत इससे इतर होता है.
बाह्य कारक के लिए आंतरिक कारक उत्प्रेरक का काम करते हैं. वर्षों से हम जिस पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक परिवेश में रहते हैं. उससे हम एक विचारधारा का निर्माण कर लेते हैं या यूं कहें कि एक सोचने का नजरिया या दिशा निर्धारित कर लेते हैं. हम मुद्दों के बदले विचारधारा के आधार पर अपने को खांचे में बांध लेते हैं. कोई भी चीज मुद्दों के आधार पर बेहतर भी है तो हम उसके बारे में सोचना भी नहीं चाहते हैं.
बहुत बार इंसान जानता है कि सामने वाला ठीक कह रहा है या उसकी सोच सही है फिर भी स्वीकार नहीं करना चाहता है क्योंकि उसने अपने को विचारों के सीमित दायरे में बांध लिया है और उसे लगता है कि अगर वो इससे इतर विचार व्यक्त करेगा तो उसकी विचारधारा का क्या होगा. कहीं ऐसा ना समझा जाने लगे कि उसने अपनी विचारधारा का परित्याग कर दिया या लोग उसका मजाक बनाने लगें कि ये व्यक्ति अपने विचारों को लेकर निष्ठावान नहीं है. इसलिए इंसान विचारधारा के नाम पर अपने विचारों को कुंठित कर लेता है.
मेरा मानना है कि इंसान को पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना चीजों को परखने की जरूरत है. मुद्दों पर अपने विचार का निर्धारण कर तब तक कार्य करने की जरूरत है जबतक कार्य अपने अंजाम तक ना पहुंच जाए.
Posted By : Guru Swarup Mishra