संक्रमण काल से उभरते निष्कर्ष

देश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण लॉकडाउन 3.0 शुरू हो गया. हर व्यक्ति सिर्फ यही कामना कर रहा है कि ये वक्त बस अब गुजर जाये. लेकिन, इस संक्रमण काल ने बहुत कुछ सिखाया है और बहुत सारी चीजें आईने की तरह साफ होती जा रही हैं.

By Vijay Bahadur | May 4, 2020 4:12 PM
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देश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण लॉकडाउन 3.0 शुरू हो गया. हर व्यक्ति सिर्फ यही कामना कर रहा है कि ये वक्त बस अब गुजर जाये. लेकिन, इस संक्रमण काल ने बहुत कुछ सिखाया है और बहुत सारी चीजें आईने की तरह साफ होती जा रही हैं.

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सबसे पहली बात कि शारीरिक दूरी (फिजिकल डिस्टेंसिंग) से इसके संक्रमण को कम किया जा सकता है और इसका पुख्ता इलाज वैक्सीन और दवा के ईजाद के बाद ही संभव है. यानी कोरोना का इलाज अगर भविष्य में संभव होगा, तो वो विज्ञान के माध्यम से ही होगा. पद्धति एलोपैथिक, आयुर्वेदिक या होमियोपैथी कुछ भी हो सकती है.

इस दौर से उबरने में अपने को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रखने की जरूरत है जिसमें कसरत, योग, ध्यान और अध्यात्म का बहुत बड़ा योगदान होगा. तमाम तरह के अंधविश्वास, टोटकों, नीम- हकीम खतरे जान किस्म के इलाज एवं फर्जी भविष्यवाणी से हम अपना नुकसान ही ज्यादा करते हैं.

पिछले 40 दिनों से हम सभी लोग घरों में हैं. अपने रोजी-रोजगार को लेकर भी चिंतित हैं कि कैसे आनेवाले समय में जीवन- यापन होगा, लेकिन एक चीज खासकर उच्च और उच्च मध्यम वर्ग को समझ में आ गया होगा कि जीवन जीने का जो खर्च है वो कम है, विलास का खर्च ही बहुत ज्यादा होता है और शायद इसी विलासितापूर्ण जीवन की तलाश में हम तन-मन पर बहुत ज्यादा दबाव बना लेते हैं.

आप हमेशा अपने जीवन में आर्थिक पहलू (खर्च और आमद दोनों) को लेकर प्लान बी रखें, ताकि बहुत ज्यादा विषम हालात होने पर हालात से निबटा जा सके. आज का दौर ये भी सीखा रहा है कि जीवन में आर्थिक बचत कितनी जरूरी है. हमें ना सिर्फ आज के लिए जीना है, बल्कि आनेवाले कल को लेकर भी सोचने की जरूरत है या तैयारी करनी है.

एक और चीज जो शायद इस कोरोना वायरस से भी खतरनाक है वो है फेक न्यूज. सोशल मीडिया (कुछ हद तक पारंपरिक मीडिया भी) के उभार के बाद लोगों को अपने पक्ष में या विरोधियों के खिलाफ करने के लिए फर्जी खबर और वीडियो का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. शायद यही वजह है कि विश्वसनीय समाचार माध्यमों की जरूरत आज सबसे ज्यादा महसूस की जा रही है.

इस संक्रमण काल में जान जाने के डर ने बहुत सारे लोगों के सोचने के नजरिये को और भी संकुचित कर दिया है. वो हम की जगह सिर्फ मैं में जी रहे हैं और ऐसे वक्त में सही बात कहने वालों की आवाज कहीं दबी हुई नजर आती है. दूसरी तरफ, वैसे भी बहुत सारे लोग उभर कर सामने आ रहे हैं जो ना सिर्फ अपने से ज्यादा समाज की फिक्र कर रहे हैं, बल्कि उसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं.

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