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शौक जिंदा रखिए

हाल में ही उनकी एक किताब आयी है कल्पना टॉकीज ! समकालीन परिवेश में बुनी गयी यह कथा एक इंजीनियर के छात्रावासीय जीवन की अनूठी कहानी है, जिसमें मध्यमवर्गीय ग्रामीण परिवार से आये एक हिंदी भाषी लड़के की दोस्तों के साथ मस्ती, दोस्ती, प्यार, तकरार के साथ-साथ अंग्रेजी नहीं बोल पाने की कसक है. कॉलेज के एग्जाम में पास करने के बजाए जिंदगी की रेस में आगे दौड़ कर निकल जाये, वही सिकंदर है. इसकी सीख भी इसमें है.

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आज मैं अपने कॉलम में आपको रूबरू कराना चाहता हूं उमेश प्रसाद साह से. आपमें से बहुत सारे लोग शायद इन्हें जानते भी होंगे. इंजीनियर होने के साथ ही उन्हें लेखन का भी शौक है. हाल में ही उनकी एक किताब आयी है कल्पना टॉकीज !

समकालीन परिवेश में बुनी गयी यह कथा एक इंजीनियर के छात्रावासीय जीवन की अनूठी कहानी है, जिसमें मध्यमवर्गीय ग्रामीण परिवार से आये एक हिंदी भाषी लड़के की दोस्तों के साथ मस्ती, दोस्ती, प्यार, तकरार के साथ-साथ अंग्रेजी नहीं बोल पाने की कसक है. कॉलेज के एग्जाम में पास करने के बजाए जिंदगी की रेस में आगे दौड़ कर निकल जाये, वही सिकंदर है. इसकी सीख भी इसमें है.

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फोन नहीं था, तो जीवन और भी अलमस्त था. चुपचाप बिना बताए दूरदराज के गावों में चले जाना, बेहिचक किसी अजनबी के घर में भी जाकर ठहर जाना और लोग भी इतने मिलनसार कि अजनबी को भी अपने घर में अतिथि बना लेते थे. इस सामाजिक रीति का आज के दिन में विलुप्त हो जाने का लेखक को दर्द है. कल्पना टॉकीज आम बोलचाल की भाषा में लिखी गयी किताब है.

जब किताब के पन्नों से गुजरते हैं तो मन में एक सवाल भी उमड़ता-घुमड़ता रहता है कि व्यक्ति एक लेकिन उसके चरित्र के अलग पहलू भी हैं. एक इंजीनियर और दूसरा लेखक. माजरा क्या है ?

उमेश प्रसाद साह से जब इस विषय पर पूछा तो उन्होंने कहा कि इंजीनियर होना एक व्यावसायिक योग्यता है, लेकिन जिंदगी यहीं खत्म नहीं होती है. यदि आप एक संतुष्ट जीवन जीना चाहते हैं, तो दिल की सुनें और जब दिल की सुनेंगे, तो हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करेंगे. बाधाएं भी आयेंगी, लेकिन कोशिश जारी रखना है.

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इंसान जीवन में बेहतर करने के लिए एक मार्गदर्शक ढूंढता है, लेकिन मेरा मानना है किसी मार्गदर्शक ढूंढने से ज्यादा महत्वपूर्ण है सेल्फ मोटिवेशन और इसके लिए इंसान के अंदर शौक जिंदा रहना चाहिए. कोई जरूरी नहीं है कि ये शौक बहुत बड़े हों. बहुत छोटा शौक भी एक इंसान को मोटिवेट करने के लिए काफी है. किसी को ब्रह्मांड के बारे में जानना रुचिकर लगता है तो कोई अपने घर के गमले में पानी डालकर भी खुशी महसूस करता है और अपनी रुचि का कार्य कर जब इंसान संतुष्ट होता है तो उसके अंदर सकारात्मकता का प्रवाह होता है, जिससे इंसान रोजमर्रा की समस्याओं-चुनौतियों को अधिक उत्साह और आत्मविश्वास से हैंडल करने में सक्षम हो जाता है. इसलिए जीवन में बेहतर करना है तो शौक को जिंदा रखें.

उमेश प्रसाद पेशे से इंजीनियर (बैच : 87-91 इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन) हैं. पूर्व में उपमहाप्रबंधक बीएसएनएल (धनबाद) रहे. उसके बाद अतिरिक्त महाप्रबंधक बीएसएनएल (रांची) हुए. फिर पांच सालों तक झारखंड सरकार में निदेशक (आईटी ) रहे. वर्त्तमान में भारत सरकार में निदेशक (सुरक्षा) के रूप में कोलकाता में हैं.

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