लीडर कौन !
Facebook : www.facebook.com/vijaybahadurofficial YouTube : www.youtube.com/vijaybahadur email- vijay@prabhatkhabar.in फेसबुक से जुड़ें टि्वटर से जुड़ें यूट्यूब पर आयें जितने भी सफल लीडर ( प्रोफेशनल) होते हैं, उनकी सफलता के पीछे ना सिर्फ उनके विजन, टैलेंट और लीडरशिप का योगदान रहता है, बल्कि उनकी टीम भी बेहतरीन होती है या कह सकते हैं कि वो अपने साथ अच्छी टीम भी बनाते हैं. अच्छी टीम के लिए सबसे जरूरी है, योग्य लोगों को अपने साथ जोड़ना और योग्य लोग किसी टीम में तभी जुड़ते हैं या रहते हैं, जब उनके विचारों को सम्मान मिलता है या उनके विचारों के लिए जगह होती है.
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जितने भी सफल लीडर ( प्रोफेशनल) होते हैं, उनकी सफलता के पीछे ना सिर्फ उनके विजन, टैलेंट और लीडरशिप का योगदान रहता है, बल्कि उनकी टीम भी बेहतरीन होती है या कह सकते हैं कि वो अपने साथ अच्छी टीम भी बनाते हैं. अच्छी टीम के लिए सबसे जरूरी है, योग्य लोगों को अपने साथ जोड़ना और योग्य लोग किसी टीम में तभी जुड़ते हैं या रहते हैं, जब उनके विचारों को सम्मान मिलता है या उनके विचारों के लिए जगह होती है.
सफल लीडर अपनी टीम के साथ विमर्श के लिए तैयार रहता है, चाहे विचार उससे अलग ही क्यों ना हो यानी उसका संवाद अपनी टीम के साथ दोतरफा होता है और परस्पर विमर्श की इसी प्रक्रिया के कारण लीडर को बेहतर तरीके से चीजों को प्लान करने, फैसले लेने और उसे क्रियान्वित करने में मदद मिलती है. ये अकाट्य सत्य है कि कोई भी इंसान जितना विमर्श करता है, वो उतना ही अपने आप को परिष्कृत और समृद्ध करता है.
उसके बरक्स जब कमजोर लोग शीर्ष पर होते हैं या पहुंच जाते हैं, तो अपने साथ कमजोर और चाटुकारों की फौज खड़ी करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी प्रतिभा पर विश्वास नहीं होता. उन्हें हमेशा लगता है कि कोई उनसे आगे नहीं निकल जाए या दुनिया के सामने उनकी कमी उजागर नहीं हो जाए. इसलिए वो अपनी टीम के साथ संवाद भी एकतरफा करते हैं. आखिरकार कमजोर लोग ना सिर्फ खुद डूबते हैं, बल्कि अपने साथ संस्थान को भी ले डूबते हैं.
कॉरपोरेट वर्ल्ड में प्रोफेशनल होने का मतलब यह समझा जाता है या बताया जाता है कि सिर्फ काम से मतलब. आप जो काम करते हैं, उसके पैसे मिलते हैं, ना उससे एक कदम आगे, ना एक कदम पीछे, लेकिन प्रोफेशनल होने की ये व्याख्या अधूरी लगती है. एक लीडर अपनी टीम को ना सिर्फ प्रोफेशनली हैंडल करता है, बल्कि उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव रखने की भी कोशिश करता है क्योंकि उसे पता होता है कि कोई भी व्यक्ति अपना सौ प्रतिशत तभी दे सकता है, जब वो अपने लीडर और संस्थान के साथ जुड़ाव महसूस करता है, लेकिन ये भी ख्याल जरूर रखता है कि प्रोफेशनल और व्यक्तिगत जुड़ाव की लकीर जरूर रहे, ताकि व्यक्तिगत जुड़ाव भावनात्मक कमजोरी ना बने.
सबसे महत्वपूर्ण जैसे किसी भी सामान का एक जीवन है ( प्रोडक्ट लाइफ साइकल). उसी तरह किसी भी लीडर के शीर्ष पर रहने की भी एक समय (कम या ज्यादा ) सीमा है. सफल लीडर ना सिर्फ अपने को सफल देखना चाहता है, बल्कि साथ में वो चाहता है कि जिस संस्थान को उसने शीर्ष पर रखा (पहुंचाया) है, वो आनेवाले समय में भी शीर्ष पर बरकरार रहे और ज्यादा तरक्की करे. एक सफल लीडर अपने साथ संस्थान में लीडरों की नयी पौध को सींचता है. आगे बढ़ाता है और जिस दिन उसे महसूस होता है कि इस नयी पौध में संस्थान को आगे बढ़ाने की क्षमता है, वो उनके लिए रास्ता खाली करते हुए शीर्ष से अपनी नयी भूमिका का चयन कर लेता है.