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Bareilly: दिन में बिछाई पटरियां रात को उखड़ जाती थीं, ऐसा है इस प्लेटफार्म का रहस्य, जानें पूरी कहानी

अंग्रेजों ने 1853 में ही देश में ट्रेन दौड़ा दी थी.इसके कुछ वर्ष बाद पहाड़ से भी ट्रेन चलनी शुरू हो गई. मगर, इज्जतनगर रेल मंडल 14 अप्रैल, 1952 को बना था. अंग्रेजों के जाने के बाद जीएम और डीआरएम स्टेशन पर आएं.

Bareilly : मुल्क (देश) में गोरों की हुकूमत थी. जिसके चलते वर्ष 1875 में ब्रिटिश हुकूमत ने कोलकाता, दिल्ली और इलाहाबाद से पहाड़ तक जाने के लिए ट्रेन चलाने का फैसला लिया. इसके लिए पहाड़ से रेल लाइन (रेल ट्रैक ) डालने का काम शुरू किया गया. मगर, इज्जतनगर रेलवे स्टेशन पर ट्रैक के बीच में एक मजार आ गयी. ब्रिटिश हुकूमत ने मजार को हटाकर रेल ट्रैक डालने का प्लान तैयार कर लिया. इसके लिए काम चल रहा था. शहर के बुजुर्गों के मुताबिक, उस वक्त जंगल में सय्यद नन्हें शाह का मजार था. इसी जंगल से अंग्रेजों की ट्रेन गुजारने की तैयारी थी.

मगर, दिन भर ब्रिटिश हुकूमत के अफसर मजार से पहले रेल ट्रैक डलवाते थे. सुबह को रेल ट्रैक हट जाता था. यह सिलसिला कई दिन चला. इससे ब्रिटिश हुकूमत भी परेशान हो गई. हुकूमत को रात में किसी के रेल ट्रैक हटाने का शक हुआ. जिसके चलते अंग्रेज सिपाहियों की ड्यूटी लगा दी गई. फौज की मौजूदगी में ही रेल ट्रैक अपने आप हटने लगा. अंग्रेज फौज के सिपाहियों ने अफसरों को जानकारी दी. इसके बाद अफसर भी अगले दिन रात में पहुंचे. उनके सामने भी वहीं हुआ.इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने ड्राइंग में रेल ट्रैक का रास्ता बदला दिया,तब रेल ट्रैक आगे बढ़ा. यह मजार स्टेशन पर अप – डाउन लाइन की दो रेल पटरी के बीच में था,जो अब प्लेटफॉर्म पर आ गया है.

1952 में अस्तित्व में आया इज्जतनगर रेल मंडल

अंग्रेजों ने 1853 में ही देश में ट्रेन दौड़ा दी थी.इसके कुछ वर्ष बाद पहाड़ से भी ट्रेन चलनी शुरू हो गई. मगर, इज्जतनगर रेल मंडल 14 अप्रैल, 1952 को बना था. अंग्रेजों के जाने के बाद जीएम और डीआरएम स्टेशन पर आएं. बताया जाता है कि उन्होंने भी मजार को हटाने की कोशिश की.मगर, उनके साथ कुछ रहस्यमई घटनाएं हुई. इसके बाद उन्होंने भी मना कर दिया. स्टेशन का रेल ट्रैक मीटर गेज से ब्रॉडगेज में परिवर्तित हुआ. इस दौरान भी कोशिश हुई, लेकिन फिर अचानक इरादा छोड़ दिया गया.

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यहां से चली भारत में पहली ट्रेन

देश में 16 अप्रैल 1853 को पहली यात्री ट्रेन बोरीबंदर (बॉम्बे) और ठाणे के बीच 34 किमी की दूरी पर चली थी. यह साहिब, सुल्तान और सिंध नामक तीन इंजनों द्वारा संचालित की गई. हालांकि, औपचारिक उद्घाटन समारोह 16 अप्रैल 1853 को किया गया, जब लगभग 400 यात्रियों को लेकर 14 रेल के डिब्बे लगभग दोपहर 3.30 बजे बोरी बंदर से “एक विशाल भीड़ की जोरदार तालियों और 21 तोपों की सलामी के बीच” रवाना की गई.यह सफर इस ट्रेन ने एक घंटा 15 मिनट में पूरा किया था.

इज्जतनगर स्टेशन पर अंग्रेजों के समय से सय्यद नन्हें मियां का मजार है.पहले अप – डाउन लाइन की रेल लाइन के बीच में था.मीटर गेज से ब्रॉडगेज में तब्दील होने के दौरान मजार को प्लेटफॉर्म पर ले लिया गया है.मजार पर एक खादिम भी रहता है.

राजेंद्र सिंह, पीआरओ, इज्जतनगर रेल मंडल

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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