बादल श्रीवास्तव, वाल्मीकिनगर. भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली वाल्मीकिनगर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात है. वहीं उत्तर बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के रूप में पर्यटकों की पहली पसंद बन गयी है. प्रत्येक वर्ष टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा दर्ज की जा रही है. वन प्रशासन द्वारा पर्यटकों के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है. यहां कल-कल कर बहती नारायणी गंडक की धारा से सटे पड़ोसी देश नेपाल में सर उठा कर खड़े ऊंचे पहाड़ से घिरा वाल्मीकिनगर एवं वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित मंदिरों के अलावा वन विभाग द्वारा नवनिर्मित बंबू हट, ट्री हट, कैनोपी वाक, वाल्मीकि विहार होटल आदि सज धज कर पर्यटकों के स्वागत के लिए नये सत्र में तैयार हैं. वाल्मीकिनगर महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली के रूप में जानी जाती है.
वाल्मीकिनगर पहुंचने का मार्ग
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के दीदार के लिए पर्यटक गोरखपुर और मुजफ्फरपुर के रास्ते रेलवे के माध्यम से बगहा स्टेशन पहुंचते हैं. वहां से प्राइवेट गाड़ी या बस द्वारा 40 किलोमीटर की दूरी तय कर वाल्मीकिनगर पहुंचा जा सकता है. बस मार्ग से भी गोरखपुर और बेतिया मुजफ्फरपुर आदि प्रमुख शहर वाल्मीकिनगर से जुड़े हुए हैं.
वाल्मीकिनगर में ठहरने के स्थान
वाल्मीकिनगर में वैसे तो ठहरने के कई स्थान इन दिनों पर्यटकों को लुभा रहे हैं. किंतु वन प्रशासन द्वारा तैयार वाल्मीकि बिहार होटल के अत्यंत कम मूल्य पर एसी और नॉन एसी कमरे, जंगल कैंप परिसर में बने चार ऐसी कमरे, ट्री हट, बंबू हट, पर्यटकों के आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं. ग्रुप में आने वाले पर्यटक कौशल विकास केंद्र में 40 बेड का हॉल बहुत कम मूल्य पर आरक्षित की जाती है. जिनकी ऑनलाइन बुकिंग द्वारा आरक्षण कराया जा सकता है. प्राइवेट होटलों में कई आवासीय होटल, पर्यटकों के लिए बेहतर साफ सफाई के साथ कमरे उपलब्ध कराते हैं. किंतु पर्यटक अपनी पहली पसंद वाल्मीकि बिहार होटल और जंगल कैंप को ही मानते हैं. क्योंकि इन दोनों होटल में रुकने वाले पर्यटक प्रकृति से खुद को नजदीक महसूस करते हैं.
गंडक बराज के रास्ते नेपाल भ्रमण
वाल्मीकिनगर आने वाले पर्यटक गंडक बराज के रास्ते नेपाली क्षेत्र में प्रवेश कर विदेशी धरती पर घूमने का आनंद उठाते है. मानसून सीजन में जंगल सफारी पर्यटकों के लिए बंद होने के बाद शेड्यूल के मुताबिक 15 अक्टूबर से नया सत्र शुरू होता है. किंतु मौसम अनुकूल रहा तो 1 अक्टूबर से नए पर्यटन सत्र की शुरुआत हो सकती है.
हृदय को स्पर्श कर जाता है सूर्योदय तथा सूर्यास्त का बेहतर नजारा
वर्ष 1964 में स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गंडक बराज के निर्माण का शिलान्यास पड़ोसी देश नेपाल के राजा श्री 5 वीरेंद्र वीर विक्रम शाह के साथ रखी थी. ऐतिहासिक गंडक बराज के निर्माण के साथ पड़ोसी देश नेपाल में आने जाने का मार्ग सुगम हो गया था. गंडक बराज में कुल 36 फाटक में 18 वां फाटक पार करते ही पर्यटकों को यह अनुभूति सुखद लगती है कि हम नेपाल की पवित्र धरती पर अपने कदम रख चुके हैं. वहीं वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित मंदिर अपने दर्शन के लिए पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. गंडक बराज से सटे सर उठा कर खड़े ऊंचे पहाड़ के साथ सूर्योदय तथा सूर्यास्त का बेहतर नजारा हृदय को स्पर्श कर जाता है.
प्राचीन मंदिर नरदेवी
वाल्मीकिनगर के गोल चौक से सटे लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर घने वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित आस्था का केंद्र मां नरदेवी का मंदिर स्थापित है. जहां लोगों में आस्था है कि भक्तों की मन्नतें पूरी होती हैं. यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आल्हा ऊदल ने की थी तथा बीते वर्षों तक पूरी रात्रि माता की सवारी शेर मंदिर की परिक्रमा किया करता था.
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जटाशंकर मंदिर
वन क्षेत्र के अंदर स्थापित प्राचीन काल से भगवान शंकर महादेव का मंदिर है. वाल्मीकिनगर आने वाले और दर्शन की चाह रखने वाले जटाशंकर मंदिर का दर्शन कर और पूजा पाठ के बाद खुद को भाग्यशाली मानते हैं.
महाकालेश्वर मंदिर
नारायणी तट पर सोनहा घाट के नजदीक स्थापित प्राचीन काल से महाकालेश्वर मंदिर जो दुर्गम क्षेत्र में स्थापित है. भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है. यहां जाने का मार्ग सुगम नहीं था. किंतु वन प्रशासन द्वारा इस मार्ग को हाथी शेड के निर्माण के कारण और सुगम बना दिया गया है. यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना बेतिया राज के राजा द्वारा की गयी थी.
वाल्मीकि आश्रम
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने वन क्षेत्र से होकर गुजरने वाले रास्ते द्वारा नेपाली क्षेत्र में वाल्मीकि आश्रम स्थापित है. जो भारत नेपाल सीमा पर स्थित है और महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली है. मार्ग में सोना और तमसा नदी को पार करना पड़ता है. माता सीता के निर्वासन के बाद माता सीता ने लव कुश जैसे वीर बालकों को यहीं जन्म दिया था और माता सीता ने यहीं पाताल प्रवेश भी किया. भारी संख्या में भारत नेपाल सहित विदेशी पर्यटक भी प्रतिदिन वाल्मीकि आश्रम को नजदीक से देखने के लिए पहुंचते हैं.
गंडक बराज
भारत नेपाल को जोड़ने वाली ऐतिहासिक गंडक बराज जो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. गंडक बराज के नीचे से होकर बहने वाली नारायणी गंडकी की धारा की तेज आवाज लोगों को डरा देती है. लोग इस पुल पर पैदल चलना और आनंद लेना बेहतर समझते हैं. जिस कारण सैलानियों की भीड़ गंडक बराज के नजदीक हमेशा बनी रहती है.
कैनोपी वाक
वाल्मीकि विहार होटल से लगभग 500 मीटर की दूरी पर शॉर्टकट रास्ते के रूप में महाकालेश्वर मंदिर दर्शन करने का यह एकमात्र रास्ता है, जो कैनोपी वाक से होकर गुजरता है. इस कैनोपी वॉक को रोपवे कहना ज्यादा उचित होगा यह लगभग 600 मीटर लंबा है, जो बिना किसी पाए के हवा में झूलता रहता है. इस पर चढ़ने वाले पर्यटक हिचकोले खा कर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं और रोमांच से भर जाते हैं. कैनोपी वाक भ्रमण ना कर पाने वाले लोग खुद को वाल्मीकि नगर की यात्रा को पूर्ण नहीं मानते हैं.
जंगल सफारी का मजा
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के दीदार को पहुंचने वाले पर्यटक जंगल सफारी के माध्यम से वन क्षेत्र में निवास करने वाले शाकाहारी और मांसाहारी जीव जंतुओं का जंगल सफारी के माध्यम से नजदीक से दीदार करते हैं. वन प्रशासन द्वारा जंगल सफारी के लिए बुकिंग ऑनलाइन की जाती है.
गंडक नदी के किनारे पर बना पाथवे
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सपनों का नगर वाल्मीकिनगर में गंडक बराज के बाएं तटबंध पर काली मंदिर के समीप से महाकालेश्वर मंदिर तक नदी के जल को छूती पाथ वे का निर्माण किया गया है. जिस पर भ्रमण करना पर्यटकों के लिए खासा आनंद दाई साबित होता है.