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भागलपुर में दबंगों ने अपने धंधे के लिए घोघा नदी को बना दिया नाला, NH-80 के किनारे 24 जगहों पर बनाया बांध

Bhagalpur News: घोघा नदी पर बनाये गये दो अस्थायी बांध साफ-साफ दिखायी पड़ते हैं. तीसरा बांध धुंधला. आगे बढ़ने पर हर एक बांध के बाद एक बांध...कुल 24 बांध दिखायी पड़ते हैं. घोघा नदी पर बने इन बांधों के बीच छोड़े गये मामूली से होल से होकर पानी बहता दिख रहा है.

घोघा से लौटकर संजीव कुमार झा लिखते हैं….(दरिया के दुश्मन: अपने धंधे के लिए ईंट-भट्ठा संचालकों ने घोघा नदी को बना दिया है नाला)

Bhagalpur: धूल है. धूप है. आवाजें हैं. मोबाइल की घड़ी में 10.57 बजे हैं, जब घोघा स्थित जर्जर और थरथराते शंकरपुर पुल पर पहुंचना हुआ है. भागलपुर शहर से कहलगांव जाने के रास्ते में मिली बदहाल सड़क पर करीब 21 किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटा से अधिक समय लगा है. शंकरपुर पुल पर रुकना हुआ है. पुल के ऊपर खड़े होकर उत्तर दिशा की ओर नजरें जाती हैं.

घोघा नदी पर बनाये गये दो अस्थायी बांध साफ-साफ दिखायी पड़ते हैं. तीसरा बांध धुंधला. आगे बढ़ने पर हर एक बांध के बाद एक बांध…कुल 24 बांध दिखायी पड़ते हैं. घोघा नदी पर बने इन बांधों के बीच छोड़े गये मामूली से होल से होकर पानी बहता दिख रहा है. घोघा नदी पर बने इन 24 बांधों को देखने के बाद पर्यावरणविद कह सकते हैं कि नदी को बेमौत मारने की पूरी तैयारी हो चुकी है. ईंट के धंधे में चंद पैसों के लिए यह सब हो रहा है. घोघा नदी में बनाये गये ये बांध एनएच-80 पर चलते हुए आसानी से दिखते हैं. इससे प्रशासनिक अधिकारियों, नेताओं व जनप्रतिनिधियों का अक्सर गुजरना होता है. लेकिन ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, जिन्होंने नदी को मार देने की ठान ली है.

न कानून की परवाह, न शासन-प्रशासन का डर

घोघा नदी पर ईंट-भट्ठा का संचालन करनेवाले दबंगों का राज शुरू हो गया है. इन्हें न तो पर्यावरण संरक्षण कानून की परवाह है और न ही शासन-प्रशासन का डर-भय. इन्हें सिर्फ अपनी मोटी कमाई से मतलब है. स्थिति यह है कि एनएच-80 पार करने के बाद इसी के किनारे से होते हुए बहनेवाली घोघा नदी को इनलोगों ने 24 जगहों पर बांध दिया है, ताकि इस सीजन में ईंट को पका कर लाखों-करोड़ों का कारोबार किया जा सके. इस बांध से होकर पथाई (गीली मिट्टी के सांचे में ढालने की क्रिया) गयी ईंटों को चिमनी तक पहुंचाने का काम शुरू हो चुका है. ईंट-भट्ठा के संचालकों द्वारा घोघा नदी में किये जा रहे निर्माण को जल्द नहीं रोका गया, तो गंगा में तीन पहाड़ के पास उतरनेवाली यह नदी मर जायेगी.

धंधा जिंदाबाद, नदी मुर्दाबाद

शंकरपुर पुल से आमापुर तक करीब 65 ईंट-भट्ठों का संचालन होता है. इनमें अधिकतर ईंट-भट्ठे की चिमनी व भट्ठी एनएच-80 और इसके किनारे से बहनेवाली घोघा नदी के बीच में स्थापित है. चिमनी वाली जगह पर किसी भी भट्ठे के पास इतनी जगह नहीं है कि वहां ईंट की पथाई भी की जा सके. इस कारण प्राय: सभी ईंट-भट्ठे नदी के दक्षिणी तट और पथाई स्थल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थापित है. ईंटों की पथाई हो चुकी है और अब इसे ढोकर चिमनी तक पहुंचाने के लिए नदी में ही बांध बना कर रास्ता तैयार कर दिया गया है. इससे नदी की धारा प्रभावित हो चुकी है. बड़ी बात यह कि इस धंधे में लगे अधिकांश लोग दबंग व बाहुबली हैं. इनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत कौन करेगा.

शंकरपुर पुल से ही शुरू हो जाते हैं बांध

भागलपुर-कहलगांव मार्ग पर शंकरपुर पुल के पास घोघा नदी की वर्तमान में चौड़ाई करीब 125 फीट है. यहां से कुछ दूर घोघा की तरफ बढ़ने पर बायीं तरफ से ईंट-भट्ठे की शुरुआत हो जाती है. शंकरपुर के बाद पन्नूचक, पुलकिया, घोघा बाजार, पुरानी अठगामा, पुरानी पन्नूचक, ब्रह्मचारी टोला, गोल सड़क चौक, कुलकुलिया, शाहपुर, पक्कीसराय और अठगामा तक नदी में दो दर्जन बांध बना दिये गये हैं. ईंट-भट्ठे की बेकार ईंटों से बांध बनाये गये हैं. बांध की ईंटों के बीच में मिट्टी व रेत भर कर इसे ठोस कर दिया गया है. बांध के बीच में कहीं-कहीं पाइप भी लगे दिखे, जिससे पानी का बहाव मामूली रूप से ही हो पाता है.

कैसे हो रही कानून की उपेक्षा, इस अधिनियम से समझें

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा-05 में किये गये प्रावधान के तहत गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के सक्रिय मैदानी क्षेत्र में कोई व्यक्ति या संस्थान आवासीय या वाणिज्यिक या औद्योगिक या किसी अन्य उद्देश्य के लिए स्थायी या अस्थायी किसी भी संरचना का निर्माण नहीं करेगा. प्रत्येक व्यक्ति, राज्य गंगा समितियों, जिला गंगा संरक्षण समितियों, स्थानीय अधिकारियों और अन्य प्राधिकरणों को किसी भी गतिविधि के लिए एनएमसीजी का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा, जो उक्त में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.

(स्रोत : किशनगंज जिला स्थित महानंदा नदी के नदी तल और बाढ़ के मैदान में अनधिकृत निर्माण पर नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा के महानिदेशक द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के किशनगंज केंद्र के निदेशक को 06 नवंबर, 2017 को भेजे गये पत्र का अंश है)

बांधों के कारण डूब जाते हैं खेत

शंकरपुर से आमापुर तक नदी में जगह-जगह बांध होने के कारण शंकरपुर से पहले नदी में पानी धीरे-धीरे भरता चला जाता है. आखिरकार ओवरफ्लो होकर नदी का पानी खेतों की तरफ चला जाता है. इससे हर साल सैकड़ों एकड़ में लगी मूंग, मसूर, चना, खेसाड़ी, सरसों, मकई, साग-सब्जी की फसल पानी में डूब जाती है.

प्रशस्तडीह व कोदवार में एक हजार एकड़ मे गेहूं, मसूर, मक्का व चना की खेती हुई है. जलस्तर बढ़ेगा, तो फिर फसल डूब जायेगी. पिछले साल फसल बर्बाद हो गयी थी- अतुल कुमार पांडेय, मुखिया

अठगामा गांव के पास कभी पुल नहीं बना. साल में चार माह हमलोगों को नाव से आना-जाना पड़ता है. बाकी महीनों में ईंट भट्टा के चचरी पुल होकर एनएच पर जाना पड़ता है- राजेश कुमार मंडल, ग्रामीण पुरानी अठगामा

ग्रामीणों द्वारा इसकी शिकायत मिली है कि घोघा नदी में बांध बना कर ईंट-भट्ठा संचालक ईंटों की ढुलायी करते हैं. इसके कारण नदी में पानी जाम हो जाता है और फसल डूब जाती है. इस पर वहां छापेमारी की गयी थी. ईंट भट्ठा संचालकों ने स्वीकारा था कि नदी में डंपिंग का काम कर रहे हैं. इस मामले में एक प्रस्ताव तैयार किया गया है. ग्रामीणों व ईंट-भट्ठा संचालकों के साथ 20 दिनों के अंदर एक बैठक की जायेगी. नदी में बांध बनाना ठीक नहीं है. इसलिए बैठक में संचालकों के लिए वैकल्पिक रास्ते पर विचार किया जायेगा, ताकि ईंट का कारोबार बंद नहीं हो और किसानों की फसल भी न डूबे- कुमार रंजन, जिला खनिज विकास पदाधिकारी, भागलपुर

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