जीवेश रंजन सिंह: माॅनसून की विदाई लगभग हो चुकी है, पर इस साल बिहार की धरती को इसका कोई खास लाभ नहीं मिल पाया. बारिश नहीं होने का हश्र यह हुआ कि खेतिहर बहुल इस राज्य के अधिकतर खेत प्यासे रह गये. धान के बिचड़े सूख गये. कोढ़ में खाज यह कि नेपाल और अन्य राज्यों में हुई अतिवृष्टि का खामियाजा भी झेलना पड़ा. चिलचिलाती धूप के बीच बाढ़ का कहर.
कोसी-पूर्व बिहार-सीमांचल की बात करें तो भले बदरा नहीं बरसे, विभिन्न नदियों के उफान पर आ जाने के कारण सुखाड़ के साथ-साथ बाढ़ का भी किसानों ने दंश झेला. अभी भी विभिन्न राहत शिविरों में या फिर गांव-घर से दूर किसी ऊंची जगह पर आश्रय लिये हुए हैं ग्रामीण. इस दोहरी मार ने अन्नदाताओं की कमर तोड़ दी है. जहां बाढ़ आयी वहां की फसल डूब कर नष्ट हो गयी और जहां बाढ़ नहीं थी वहां की फसल सुखाड़ की भेंट चढ़ गयी.
विभागीय आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के मुकाबले कुछ जिलों को छोड़कर अधिकतर में औसत से 40 फीसदी से भी कम बारिश हुई है. भागलपुर में तो और भी विकट स्थिति है. यहां जून से तीन सितंबर तक सामान्य वर्षा 764.09 मिमी होनी चाहिए थी, लेकिन हुई केवल 290.20 मिमी. इस तरह देखें, तो भागलपुर में सामान्य से 62.02 मिमी कम बारिश हुई. दूसरी ओर यहां बाढ़ ने सबौर, सुलतानगंज व नाथनगर इलाके में किसानों को तड़पा दिया. खास कर पूर्व बिहार-कोसी-सीमांचल के ये इलाके कृषि पर आधारित हैं. कोई उद्योग नहीं जिसके बल रोजी-रोटी चल सके, ऐसे में यह बड़ा संकट है.
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हालांकि इसे लेकर सरकार भी सजग है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को संभावित संकटों से निबटने के लिए हर व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. इस निर्देश के तहत कई तरह की योजनाएं बनायी गयी हैं. उनके निष्पादन के लिए सक्षम पदाधिकारी भी तय किये गये हैं. अब बारी ऐसे सरकारी पदाधिकारियों-बाबूओं की है.
मुसीबत में पड़े अन्नदाताओं की दिक्कतों का समय पर आकलन और तत्काल राहत ही उनके कष्टों पर मरहम साबित होगा. पर सच यह है कि अभी यहां कमी दिख रही है. डीजल अनुदान की राशि मिलने से लेकर अन्य आकलनों में भी परेशानी है. शिकायतें भी सामने आने लगी हैं. दरअसल, राहत देनेवाले अधिकारियों को अपने सिस्टम को एक बार फिर चेक करने की जरूरत है, तभी सही लाभुक को इसका फायदा मिलेगा, वरना…..का वर्षा जब कृषि सुखाने.