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Kargil Vijay Diwas 2020: युद्ध के समय घातक कमांडो दस्ता के हेड थे बिहार के कर्नल संजीत, जानें जज्बे ने कैसे कराया कारगिल फतह

kargil vijay diwas 2020 भागलपुर : उस समय हमारी सेना नीचे थी और दुश्मन 15 हजार फीट ऊपर पहाड़ों पर. यह युद्ध अपने आप में अलग किस्म का था. हम अपनी टुकड़ी को लेकर 15 दिनों तक पहाड़ों पर रहे. हर दिन दुर्गम रास्ते पर चलते हुए आगे का रास्ता बना रहे थे. अपनी टुकड़ी को आगे बढ़ाते हुए ऊपर चढ़ रही दूसरी टुकड़ी से संपर्क बनाये रखना. हर पल चौकन्ना रहना. हर दिन नयी चुनौतियां सामने आ रही थीं, लेकिन सबके मन में जोश था कि अपनी जमीन वापस लेनी है. भारत माता के दुश्मनों को मार भगाना है. यही जज्बा सबसे बड़ा हथियार था. न तो किसी को भूख लग रही थी और न ही प्यास. बहुत मन किया तो साथ में मौजूद सूखा खाने में से कुछ ले लिया, वरना हर क्षण चोटी पर पहुंचने और दुश्मनों को मार भगाने की जिद और जज्बा ने कारगिल पर विजयश्री दिलायी.

kargil vijay diwas 2020 भागलपुर : उस समय हमारी सेना नीचे थी और दुश्मन 15 हजार फीट ऊपर पहाड़ों पर. यह युद्ध अपने आप में अलग किस्म का था. हम अपनी टुकड़ी को लेकर 15 दिनों तक पहाड़ों पर रहे. हर दिन दुर्गम रास्ते पर चलते हुए आगे का रास्ता बना रहे थे. अपनी टुकड़ी को आगे बढ़ाते हुए ऊपर चढ़ रही दूसरी टुकड़ी से संपर्क बनाये रखना. हर पल चौकन्ना रहना. हर दिन नयी चुनौतियां सामने आ रही थीं, लेकिन सबके मन में जोश था कि अपनी जमीन वापस लेनी है. भारत माता के दुश्मनों को मार भगाना है. यही जज्बा सबसे बड़ा हथियार था. न तो किसी को भूख लग रही थी और न ही प्यास. बहुत मन किया तो साथ में मौजूद सूखा खाने में से कुछ ले लिया, वरना हर क्षण चोटी पर पहुंचने और दुश्मनों को मार भगाने की जिद और जज्बा ने कारगिल पर विजयश्री दिलायी.

घातक कमांडो दस्ता के यूनिट इचार्ज थे भागलपुर के कर्नल संजीत शंकर सहाय

उक्त बातें प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कर्नल संजीत शंकर सहाय ने कही. भागलपुर के लाल कर्नल सहाय तब कैप्टन थे. उन्होंने कहा कि उनके लिए यह युद्ध अपने आप में सबसे अलग था. कर्नल सहाय का यूनिट पंजाब रेजीमेंट था. युद्ध के दौरान वह घातक कमांडो दस्ता के यूनिट इचार्ज थे. कर्नल सहाय को देश के लिए जीने और मरने की प्रेरणा विरासत में मिली है. चीन के साथ युद्ध लड़े एयर कमाेडोर अजीत सहाय इनके पिता हैं. भागलपुर के शिव भवन कैंपस में इनका घर है. बेटे के संबंध में पिता कहते हैं कि गर्व है कि वह देश के काम आ रहा है.

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पैदल सेना ने दुर्गम रास्ते से रात में की चढ़ाई, उजाले के पहले दुश्मनों के बंकर पर जमाया कब्जा

कर्नल कहते हैं कि कारगिल युद्ध में अंतिम लड़ाई को लेकर दिन भर प्लान बनता था. रात को दुर्गम पहाड़ी वाले रास्ते, जिसके बारे में दुश्मन कभी सोच भी नहीं सकते थे, बिना लाइट के हमारे पैदल सेना के जवान अलग-अलग टुकड़ी में 15 हजार फीट ऊंचाई वाले पहाड़ पर चढ़ते गये. दुश्मनों ने माइंस और कंटीली तार बिछा रखा था. अंतत: विजय प्राप्त कर वहां तिरंगा लहराया. इस जीत में हमारी तोप और वायु सेना का योगदान रहा.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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