बिहार में 2016 से शराबबंदी लागू होने के बाद पिछले सात वर्षों में 1.82 करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है. इतना ही नहीं, सूबे की 99% महिलाएं और 92% पुरुष शराबबंदी को लागू रखे जाने के पक्ष में हैं. यह नतीजे मद्य निषेध उत्पाद एवं निबंधन विभाग द्वारा शराबबंदी का आम लोगों पर पड़ रहे प्रभाव का आकलन करने के लिए कराये गये सर्वेक्षण में निकल कर सामने आये हैं. यह सर्वेक्षण जीविका (बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) और चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पंचायती राज चेयर ने मिल कर किया है.
मंगलवार को मद्य निषेध उत्पाद एवं निबंधन विभाग के आयुक्त बी कार्तिकेय धनजी, जीविका के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी राहुल कुमार और चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के डीन एसपी सिंह ने सर्वे रिपोर्ट को संयुक्त रूप से जारी की. यह तीसरी सर्वे रिपोर्ट : बिहार में लागू शराबबंदी के आम जन पर पड़ रहे प्रभाव की अब तक दो सर्वे रिपोर्ट जारी हो चुकी है. सबसे पहले 2017 में आद्री और जगजीवन राम शोध अध्ययन संस्थान की मदद से सामाजिक सर्वेक्षण हुआ था. इसमें शराबबंदी के चलते समाज पर हुए काफी सकारात्मक बदलाव निकल कर सामने आये थे.
साल 2022 में चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (पंचायती राज चेयर) ने एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के शोध पदाधिकारियों के सहयोग से चार हजार लोगों पर सैंपल सर्वे किया था. इसमें शराबबंदी का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव महिलाओं के सशक्तीकरण के रूप में दिखा. इस रिपोर्टमें बताया गया था कि सूबे में शराबबंदी होने से महिलाओं के घर, परिवार और समाज में निर्णय लेने की क्षमता तथा सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर भागीदारी बढ़ी है. शराबबंदी लागू होने के बाद पिछले सात वर्षों में इसके प्रभाव का आकलन करने वाली यह तीसरी सर्वे रिपोर्ट है.