Bihar News: बिहार में जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया. इसमें केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि राज्य सरकार को जनगणना का हक नहीं है. सिर्फ केंद्र सरकार के पास ही जनगणना करवाने का अधिकार है. यह अधिकार राज्यों के पास नहीं है. हांलाकि, सरकार की ओर से कुछ ही घंटे के बाद इस हलफनामे को वापस ले लिया गया. इसके बाद इसे फिर से सरकार ने दाखिल किया. इसमें पैरा पांच को सरकार की ओर से हटाया गया है. साथ ही कहा गया है कि यह अनजाने में शामिल हो गया था. पैरा पांच में ही कहा गया था कि केंद्र सरकार के पास जनगणना करवाने का अधिकार है.
केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि जनगणना अधिनियम 1948 के मुताबिक केंद्र सरकार के पास ही जनगणना का हक है. यह अधिकार राज्य के पास नहीं है. इसके अलावा केंद्र ने कहा कि अधिनियम की धारा-तीन के तहत केंद्र को ही यह अधिकार कानून के तहत मिला है, जिसमें केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करके देश में जनगणना करवाने का ऐलान किया जाता है. हलफनामे के अनुसार संविधान में किसी अन्य प्राधिकरण या निकाय के पास जनगणना करवाने का हक नहीं है. मालूम हो कि केंद्र की ओर से गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे को दाखिल किया था.
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इससे पहले जाति जनगणना को लेकर 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जाति जनगणना को रोक लगाने की मांग पर सुनवाई की गई थी. स्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस भट्टी की अदालत से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसके बाद 28 अगस्त की तारीख सुनवाई के लिए दी थी. वहीं, बिहार सरकार की ओर से बताया गया था कि राज्य में सर्वे का काम पूरा हो चुका है. डेटा को ऑनलाइन अपलोड कर दिया गया है. इसके बाद डेटा को याचिकाकर्ता ने रिलीज करवाने की माग की थी. दूसरी ओर पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को हरी झंडी दे दी थी. चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना था. दोनों पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद पटना हाईकोर्ट ने जाति जनगणना को हरी झंडी दे दी थी.
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गौरतलब है कि जातिगत सर्वे को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को कोर्ट में सुनवाई होनी थी. लेकिन मामला सूचीबद्ध नहीं होने के कारण सोमवार को होने वाली सुनवाई नहीं हो सकी. पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्र सरकार को इस मामले में सात दिन के अंदर जवाब दाखिल करने का आदेश देते हुए मामले की सुनवाई 28 अगस्त को करने का आदेश दिया था. न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश एसवीएन भट्टी की खंडपीठ जातिगत सर्वे पर रोक लगाने की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. संभावना जताई जा रही है कि मामले की सुनवाई शुक्रवार को हो सकती है.
सोमवार शाम कोर्ट में दाखिल संशोधित हलफनामे में कहा गया है कि आज सुबह केंद्र सरकार की ओर से एक हलफनामा दाखिल किया गया था. उस हलफनामे में पाराग्राफ पांच को असावधानीवश जोड़ दिया गया था. इसलिए उस हलफनामे को सरकार वापस ले रही है और इस संशोधित हलफनामे को ही केंद्र सरकार का कोर्ट में हलफनामा माना जाये. केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर असिस्टेंट रजिस्ट्रार जनरल (एसएस) बाबुल राय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल संशोधित हलफनामे में केवल इतना कहा गया है कि जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है और जनगणना कानून 1948 के तहत यह केंद्र सरकार की देखरेख में होती है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि जनगणना का मामला सातवीं अनुसूची के तहत संघ सूची के 69वें क्रम के अंतर्गत आता है. इसी सूची के आधार पर केंद्र ने जनगणना कानून, 1948 का गठन किया. इस कानून की धारा तीन केवल केंद्र को जनगणना कराने का अधिकार देती है. साथ ही हलफनामे में कहा गया है कि सरकार की ओर से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के जनकल्याण के लिए संविधान के अनुसार सभी जरूरी कदम उठाये गये हैं