मुजफ्फरपुर में स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी में ‘लीची उत्पादन एवं प्रसंस्करण की नवीनतम तकनीक’ पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें केंद्र के वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण संयोजक डॉ सुनील कुमार ने सभी को लीची के उत्पादन से संबंधित जानकारी दी. इस प्रशिक्षण में मुजफ्फरपुर जिले के विभिन्न प्रखंडों के कुल 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया. केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास ने कहा कि लीची में प्रसंस्करण पर जोर देकर इसका स्तर दो प्रतिशत से बढ़ाकर 15 से 20 प्रतिशत तक पहुंचाना है ताकि लीची का जब चाहे स्वाद ले सके. उन्होंने किसानों से कहा कि लीची का अंतिम उत्पाद बनाकर उसे ही बेचें. साथ ही उसकी ब्रांडिग करें.
केंद्र के निदेशक ने बताया कि लीची के पौधों में इस समय फूल आ रहे हैं. उन्होंने किसानों को स्वस्थ परागण के लिए लीची के बगीचे में मधुमक्खी के प्रति एकड़ 6 से 8 बक्से रखने की सलाह दी. उन्होंने बताया कि इससे उपज में बढ़ोतरी होती है. लीची के साथ शहद उत्पादन कर अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त की जा सकती है. इस समय बगीचे में किसी भी प्रकार के कीटनाशी का छिड़काव नहीं करने की सलाह दी गई. केंद्र के वैज्ञानिक डॉ सुनील कुमार ने लीची उत्पादन की विभिन्न तकनीकों जैसे सघन बागवानी, पुराने बागों का जीर्णोद्धार, चाइना लीची में नियमित फलन के लिए वलयन (गर्डलिंग) तकनीक, लीची में थैलीकरण (बैगिंग) तथा अन्य तकनीकों की जानकारी दी.
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केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ विनोद कुमार ने लीची में लगने वाले कीटों एवं रोगों के प्रबंधन पर जानकारी दी. आइएआरआई असम में कार्यरत डॉ अलेमवती पोंगेनर ने तुड़ाई उपरांत प्रबंधन के बारे में बताया. इस दौरान उपस्थित सभी किसानों को लीची में बैंगिंग तकनीक को प्रोत्साहित करने के लिए 50 पॉलीप्रोपालीइन बैग वितरित किये गये. मौके पर केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अभय कुमार, डॉ प्रभात कुमार, भाग्या विजयन, तकनीश्यिन डॉ जेपी वर्मा, उपज्ञा साह, यंग प्रोफेशनल श्याम पंडित एवं अखंड प्रताप पांडेय आदि उपस्थित रहें.
Published By: Sakshi Shiva