Bihar News: बिहार में कम बारिश के कारण धान की खेती प्रभावित हुई है. राज्य के अधिकांश हिस्सों में धान की खेती पर असर पड़ा है. भागलपुर प्रमंडल में धान की खेती की स्थिति काफी खराब है. राज्य में अब तक केवल 54 फीसदी ही धान की रोपनी हुई है. कृषि विभाग की ओर से 15 अगस्त के बाद वैकल्पिक खेती कराने की तैयारी शुरू कर दी गयी है. 15 अगस्त के बाद 17 तरह की फसलों के बीज बांटे जायेंगे. फिलहाल, पटवन के लिए डीजल अनुदान की राशि दी जा रही है. दूसरी ओर मक्का प्रसंस्करण में निवेश करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. लोग मक्का प्रसंस्करण में रुचि दिखा रहे हैं. बिहार कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति के तहत इन्हें अनुदान दिया जा रहा है.
सरकार प्रसंस्करण में मदद कर रही है. इसका मकसद खेती को बढ़ावा देना है. मक्का के उत्पाद की मांग में बढ़ोतरी हुई है. यह कोसी क्षेत्र की प्रमुख फसलों में से एक हैं. वहीं, बिहार मखाना के उत्पादन में पहले स्थान पर है. विदेशों में भी इसकी मांग है. राज्य में सुखाड़ व बाढ़ से धान की खेती को काफी नुकसान होता है. इस साल भी कम बारिश होने से धान की खेती प्रभावित हो रही है. बाढ़ व सुखाड़ के दौरान भी धान की पैदावार को सके, इसे लेकर आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर) पटना शोध कर रहा है. आइसीएआर परिसर में देश और विदेश की एक हजार से अधिक धान की प्रजातियों में से चुनिंदा प्रजातियों पर तीन तरह से ट्रायल शुरू किया गया है. ट्रायल हो जाने के बाद इसे चावल अनुसंधान केंद्र भेजा जायेगा. यहां भी इसका ट्रायल होगा और एक प्रोसेस के बाद किसानों में बांटा जायेगा. इससे बाढ़ व सुखाड़ होने पर भी धान की खेती को नुकसान कम होगा. सूखा क्षेत्र में दो पानी देने की आवश्यकता पड़ सकती है और उत्पादन ठीक रहेगा. इस तरह से बाढ़ और सुखाड़ में भी धान का उत्पादन हो सकेगा.
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इस विषय पर शोध कर रहे आइसीएआर, पटना के वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार ने बताया कि तीन तरीके से धान के बिचड़े डाले गये हैं. एक खुले में, जहां सामान्य रूप से अन्य खेतों की तरह ही धान के बिचड़े डाले गये हैं. दूसरा गहने पानी में बिचड़े डाले गये हैं. तीसरा, रेन आउट शेल्टर बनाकर धान के बिचड़े डाले गये हैं. यह इलाका बिल्कुल सूखा हुआ है. इसका अंतिम आकलन रिपोर्ट के आधार पर तय किया जायेगा कि बाढ़ व सुखाड़ में कौन सा बिचड़ा टिका रहा. आइसीएआर, पटना के निदेशक अनुप दास ने बताया कि बाढ़ व सुखाड़ दोनों ही स्थिति में धान की खेती प्रभावित होती है. इसे लेकर आइसीएआर, पटना की ओर से शोध शुरू किया गया है. बाढ़ व सुखाड़ में भी टिकी रहने वाली धान की प्रजातियों की खोज की जा रही है. इस पर शोध में संस्थान की ओर से पूरा सहयोग किया जा रहा है.
बता दें कि राज्य में इस साल जुलाई के महीने तक सामान्य से कम बारिश हुई है. राजधानी पटना में धान की रोपनी 34.88 प्रतिशत तक हो सकी है. वहीं, मक्के की बुआई 90.96 प्रतिशत हुई है. फिलहाल, धान की खेती कम होने के कारण इसकी फसल उगाने वाले किसानों को कम अवधि वाली धान की फसल की बुवाई करने की सलाह दी जा रही है. इसके लिए 90 से 100 दिनों में होने वाली धान की प्रजाति का चयन करने की बात कही है. खेतों की मेड़बंदी करने की सलाह भी दी गई है, ताकि पानी का रिसाव कम हो.
दूसरी ओर जहांं धान की रोपनी हो गयी है, वहां दोबारा पानी देने की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसा नहीं करने पर खरपतवार उगा सकते हैं. इससे फसल को नुकसान हो सकता है. सौ फीसदी बारिश आधारित क्षेत्रों में 2 फीसदी यूरिया का उपयोग करने की सलाह दी गयी है. अभी किसान अच्छी बारिश की उम्मीद कर रहे हैं. किसानों को उम्मीद है कि अगर तीन-चार दिन ठीक तरीके से बारिश हो जाये तो धान समेत अन्य खरीफ की फसल अच्छी होगी. वहीं, सरकार भी इसके लिए लगातार प्रयास कर रही है.