Bihar News: बिहार में तमाम मेडिकल कालेज की रैंकिंग तय की जोगी. मेडिकल कालेज का नैक की तरह मूल्यांकन किया जाएगा. मालूम हो कि देशभर के मेडिकल कालेज की रैंकिंग तय की जाएगी. इसके साथ ही बिहार में भी मेडिकल कालेज की रैंकिंग का निर्धारण होगा. मेडिकल कालेजों में छात्र और छात्राओं को मिलने वाली सुविधाओं के आधार पर इसका मूल्यांकन किया जाएगा. इस बारे में नेशनल मेडिकल कमीशन और क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से कालेजों की रैंकिंग के लिए निर्देश जारी किया गया है.
रेंकिंग के लिए 11 मापदंड तैयार किए गए है. साथ ही इसे 92 भागों में बांटा गया है. इसके आधार पर ही मेडिकल कालेजों को रैंकिंग मिलेगी. मालूम हो कि किसी भी कालेज को गुणवत्ता के आधार पर नैंक रैंकिंग दिया जाता है. शैक्षिक संस्थानों की गुणवत्ता तय की जाती है. नैक यानी राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद् शिक्षण संस्थानों को ग्रेडिंग प्रदान करता है. इसके आधार पर एक तरह से कालेजों की ग्रेंडिंग तय की जाती है. इसके तहत देशभर के विश्वविद्यालय को रेंटिंग दी जाती है.
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वहीं, मेडिकल कालेजों के करिकुलम को सात प्रतिशत, प्रैक्टिकल और हैंड ओन तथा क्लिनिकल एक्सपीरियंस के 16, शैक्षिनिक स्थिति, फिजिकल, मनोवैज्ञानिक, ऑक्यूपेशनल के 10, छात्रों के दाखिले के 13 प्रतिशत, ह्यूमन रिसोर्स व टिचिंग लर्निंग प्रसोस के 16, असेस्मेंट पालिसी के दो, रिसर्च आउटपुट के 10, कम्युनिटि आउटरीच प्रोग्राम के पांच, क्वालिटी एश्योरेँश सिस्टम के तीन, फीडबैक के आठ प्रतिशत अंक दिए जाएंगे. इसके बाद कालेज अच्छे शिक्षण और लरनिंग के प्रसेस पर काम करेंगे. इससे छात्रों को भा फायदा होगा. क्योंकि इससे कालेजों की स्थिति का पता चल सकेगा. एक कालेज दूसरे कालेज के साथ भी स्थिति को साझा करेंगे. वहीं अगर कालेज गलत दस्तावेज देते है तो इसका भी पता चल सकेगा. साथ ही गुमराह नहीं किया जा सकेगा.
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मसौदे के अनुसार, प्रत्येक मेडिकल कॉलेज को आसपास के परिवारों को गोद लेना होगा. तीन वर्ष तक इन परिवारों की सेवा करनी होगी.बीमारियों का इलाज निशुल्क करना होगा. मेडिकल कॉलेजों को मरीजों का हिसाब रखना होगा. क्यूसीआइ ने मेडिकल कॉलेजों के लिए 59 पन्नों का मसौदा तैयार किया है, जिसके तहत सालभर में यहां आने वाले मरीजों का इलाज, जांच, जन्म-मृत्यु समेत तमाम जानकारी उपलब्ध करानी होगी. इसी आधार पर कॉलेज को गुणवत्ता संबंधी क्वालिटी सर्टिफिकेट दिया जायेगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 82 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो 2014 से पहले 387 से बढ़कर अब 704 हो गयी है.
बताया जाता है कि नैक ग्रेडिंग से कालेजों को गवर्नमेंट पॉलिसी का फायदा भी मिलता है. कॉलेज, यूनिवर्सिटी या कोई और उच्च शिक्षण संस्थान सभी मानकों को पूरा करने पर नैक ग्रेडिंग के लिए आवेदन करते है. इसी तरह अब मेडिकल कालेज भी सभी मानकों को पूरा करने के बाद ग्रेडिंग के लिए आवेदन करेंगे. वहीं, अगर ग्रेडिंग देने वाली टीम संतुष्ट होती है तो कॉलेज को उसी आधार पर सीजीपीए दिए जाते हैं, जिसके बेसिस पर बाद में ग्रेड मिलता है.
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जानकारी के अनुसार ग्रेडिंग मिल जाने के बाद यह चार साल के लिए मान्य होता है. नैक में टेम्परेरी ग्रेडिंग की भी व्यवस्था है, जिसमें दो साल के लिए ग्रेडिंग प्रदान की जाती है. अगर कोई कॉलेज या यूनिवर्सिटी मिले ग्रेड से खुश नहीं है तो 6 महीने के बाद फिर से नैक की ग्रेडिंग के लिए आवेदन करता है. इस दौरान कालेज अपनी कमिंयों को दूर करता है. साथ ही एक बेहतर कालेज बनता है. छात्र किसी भी कालेज में दाखिला लेने से पहले अपने कालेज की रैंकिंग का पता लगा सकते है. संस्थान की गुणवत्ता के लिए नैक जरुरी है.नैक ग्रेडिंग के जरिए शिक्षण संस्थानों की सही जानकारी स्टूडेंट्स को प्राप्त होती है. इससे उन्हें बेहतर कालेज चुनने में मदद मिलती है. नैक के अंतर्गत संस्थानों को प्रत्येक प्रमुख पहलू के लिए चार श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया जाता है. इसके आधार पर A, B, C और D, क्रमश: बहुत अच्छे, अच्छे, संतोषजनक और असंतोषजनक स्तरों को दर्शाते हैं.