बिहार: क्लाइमेट खतरनाक जोन में पहुंच गया है. उत्तर बिहार में जून महीने में पहली बार लगातार 15 दिनों से हीटवेव की स्थिति बनी हुई है. मॉनसून के समय अवधि में इतनी प्रचंड गर्मी लोगों ने पहले कभी नहीं झेले थे. आरएयू पूसा के कृषि व मौसम विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ एके सत्तार खुद ये बातें कह रहे हैं. उन्होंने बताया कि लगातार हीटवेव के बने रहने का कारण, मॉनसून का तय समय पर नहीं आना है. खासकर उत्तर बिहार के जिलों में प्री-मॉनसून के तहत भी बारिश नहीं हुई. वहीं 12 जून को मॉनसून प्रवेश करने के बाद भी ठहर सा गया. इस मामले में उन्होंने बताया कि यहां का वातावरण भी मॉनसून को सपोर्ट नहीं कर रहा है. यही वजह है कि मॉनसून सिमट कर रहा गया है. दूसरी ओर वरीय वैज्ञानिक ने बताया कि चक्रवात बिपरजॉय के कारण भी मॉनसून प्रभावित हुआ है. इस तरह के खतरनाक हीटवेव से आम लोगों के साथ सबसे अधिक किसानों की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. वरीय वैज्ञानिक ने बताया कि जो हालात बन रहे है, उसमें किसानों को मौसम आधारित खेती पर जोड़ देना होगा.
चौतरफा कंक्रीट के जंगल और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर पेड़ों को धड़ल्ले से काटा जा रहा है. यही वजह है कि वातावरण असंतुलित हो कर खतरनाक जोन में पहुंच गया है. इस पर नियंत्रण के लिए अलग-अलग कई बिंदुओं पर काम करने की जरूरत है. लेकिन शुरुआत पेड़ लगाने से करना होगा. साथ ही प्रदूषण पर नियंत्रण से ही समाधान संभव है. बताया गया कि पर्यावरण के असंतुलन के दो प्रमुख कारण हैं. एक है बढ़ती जनसंख्या और दूसरा बढ़ती मानवीय आवश्यकताएं. इन दोनों का असर प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ता है, और उनकी वहनीय क्षमता लगातार कम हो रही है. पेड़ों के कटने, भूमि के खनन, जल के दुरुपयोग और वायु मंडल के प्रदूषण ने पर्यावरण को गभीर खतरा पैदा किया है.
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सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट की ओर से किये गये सर्वे के बाद हाल में देश स्तर पर तेलंगाना को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नंबर-1 पर रखा गया है. यहां पर्यावरण पर लगातार काम हो रहा है. यहां से सीखने की जरूरत है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, तेलंगाना में पिछले नौ वर्षों में करीब 273 करोड़ पौधे लगाये थे. इससे वन क्षेत्र 2015-16 में 19,854 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2023 में 26,969 वर्ग किलोमीटर हो गया. जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 24.06 प्रतिशत है. इसके अलावा, राज्य का सौर ऊर्जा उत्पादन 2014 में 74 मेगावाट से बढ़कर 5,865 मेगावाट हो गया. जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति का संकेत देता है. सर्वे जलवायु और चरम मौसम, स्वास्थ्य, खाद्य और पोषण, प्रवासन और विस्थापन, कृषि, ऊर्जा, अपशिष्ट, पानी और जैव विविधता सहित पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर किया जाता है.
वायु प्रदूषण लोगों की जिंदगी औसतन 4 साल 11 महीने छीन रहा है. सेंटर फॉर साइंस की ओर से यह दावा किया गया है. इस पर हाल ही में एक रिपोर्ट भी जारी की गयी है. रिपोर्ट के अनुसार शहरी के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों पर इसका असर है.
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22 प्रतिशत लोगों का जीवन औसतन सात साल से ज्यादा कम हो जाता है.
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30 प्रतिशत लोगों का जीवन औसतन एक से तीन साल तक कम हो रहा है.
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25 प्रतिशत का जीवन औसतन तीन से पांच साल कम हो रहा है.
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21 प्रतिशत लोगों का जीवन पांच से सात साल कम हो रहा है.