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बिहार के इस शहर में कई दशकों से चली आ रही है अनोखी परंपरा, कंधे के जरिए किया जाता है दुर्गा माता का विसर्जन..

Durga Puja 2023: बिहार के एक जिले में कई दशकों से अनोखी परंपरा चली आ रही है. यहां थोड़ा अलग तरीके से मां दुर्गा का विसर्जन होता है. यहां कंधे पर उठाकर मां का विसर्जन किया जाता है.

Durga Puja 2023: बिहार के मुंगर जिले में अनोखी परंपरा चली आ रही है. यहां थोड़ा अलग तरीके से मां दुर्गा का विसर्जन होता है. यहां कंधे पर उठाकर मां का विसर्जन किया जाता है. यह परंपरा सभी जगहों पर नहीं है. बता दें कि दुर्गा पूजा को लेकर पूरे राज्य में तैयारियां जोरों पर है. मुंगेर में नवरात्र के मौके पर दस दिनों तक मां दुर्गा की आराधना होती है. इसके बाद दशमी तिथि के दिन मां की विदाई करने की थोड़ी अलग परंपरा है. इस दौरान पंडालों में स्थापित दुर्गा मां की पूजा होती है और स्थापित मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. यहां मूर्ति को जलाशयों, नदियों तक ले जाने के लिए वाहनों का प्रयोग नहीं होता है. लेकिन, बिहार के मुंगेर में बड़ी दुर्गा मां मंदिर में नवरात्र में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन का तरीका अलग है. यहां मां लोगों के कंधे पर विदा होती है.

32 लोगों के कंधे पर सवार होकर विदा होती है माता

मुंगेर में मां दुर्गा 32 लोगों के कंधे पर सवार होकर विदा होती है. 32 लोग मां की प्रतिमा को उठाते है. कहा जाता है कि यह लोग कंहार जाति के होते हैं. यहां ठीकरा का निर्माण किया जाता है. यहां माता को विरोजमान किया जाता है. मुंगेर में इस अनोखे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. लोगों के बीच यहां की परंपरा काफी लोकप्रिय है. यहां रहने वाले स्थानीय बुजुर्ग बताते है कि यह काफी दिनों से यहां होता आ रहा है. यह अब परंपरा बन चुकी है. इस परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है.

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विसर्जन में हजारों लोगों का होता है आगमन

यहां की परंपरा लोगों के बीच काफी प्रचलित है. विसर्जन के दौरान यहां हजारों लोग पहुंचते हैं. बताया जाता है कि प्रतिमा के विसर्जन के पहले मां को पूरे शहर में भ्रमण करवाया जाता है. इस दौरान चौक- चौराहों पर प्रतिमा की विधिवत पूजा-अर्चना भी की जाती है. इसमें लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है. इसके साथ ही दुर्गा मां के प्रतिमा के आगे- आगे कलाकार चलते हैं, जो ढोल और नगाड़े की थाप पर तरह-तरह के कलाबाजी और करतब दिखाते रहते हैं. यह लोगों को काफी पसंद आता है.

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नम आंखों से मां को दी जाती है विदाई

नगर में भम्रण के बाद मां की प्रतिमा को गंगा घाट तक पहुंचाया जाता है. यहां मां की प्रतिमा को विसर्जित कर उनकी विदाई दी जाती है. बताया जाता है कि मां के भक्त भी बीच- बीच में मां को कंधा देते हैं. ऐसा करके उन्हें काफी खुशी मिलती है. इस दौरान सभी लोग मां दुर्गा को नम आंखों से विदाई देते हैं. साथ ही अगले साल मां के आने की कामना करते हैं

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कंहार जाति के लोगों की संख्या का रखा जाता है ख्याल

मुंगेर बड़ी दुर्गा स्थान की चर्चा पूरे जिले में ही नहीं बल्कि जिले के बाहर भी की जाती है. यहां की पूजा- अर्चना व परंपरा काफी लोकप्रिय है. बताया जाता है कि यहां हर साल दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन होता है. साथ ही यह तभी होता है, जब 32 कंहार इनकी विदाई के लिए यहां उपस्थित होते है और मां को कंधा देते है. जानकारी के अनुसार इसके लिए उन कंहार जाति के लोगों को पूर्व में निमंत्रण दिया जाता है. वह बताते हैं कि इनकी संख्या का खास ख्याल रखा जाता है कि 32 से भी ज्यादा यह नहीं हों और न ही इनकी संख्या 32 से कम हो. लोगों की मान्यता के अनुसार एक बार यहां जब मां के विसर्जन के लिए वाहन लाए गए थे, तो मां अपने स्थान से नहीं हिली थी. लोगों का मानना है कि कंधे पर ही यहां मां की विदाई हो सकती है. यह यहां की खासियत भी है.

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