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बिहार के तीन दर्जन गांव नक्शे तक से हो गये गायब, कुदरत का कहर जानकर आप भी रह जाएंगे दंग..

बिहार में गोपालगंज जिले के तीन दर्जन गांव नक्शे से भी गायब हो चुके हैं. पहले यहां लोग बसे हुए थे. पूरा परिवार हंसता-खेलता था. अब कुदरत के कहर ने कुछ ऐसा खेल खेला है कि कई गांव उजड़ गए. अब यहां जमीन तक नहीं दिखती. जानिए..

बिहार में कुदरत का कहर कुछ इस कदर बरपा है कि एक जिले के करीब तीन दर्जन गांव ही नक्शे के गायब हो गये. कभी लोग इन गांवों में हंसी-खुशी अपने परिवार के साथ रहते थे. कई पीढ़ियों ने इन गांवों में रहकर अनेकों सावन देखे. लेकिन वर्तमान पीढ़ी को गांव ही गायब मिलेगा ये शायद ही किसी ने सोचा होगा. दरअसल जिन गांवों का जिक्र किया जा रहा है उनका अस्तित्व अब मिट चुका है. इन गावों में रहने वाले लोग अब दूसरी जगह पलायन कर चुके हैं और कलतक जहां ये अपनी जमीन पर मालिक की तरह रहते थे, अब वहां उनकी ना जमीन रही, ना ही घर. पूरा गांव ही नक्शे पर से गायब हो चुका है.

बिहार में आफत बनकर आती है बाढ़

बिहार में बारिश की वजह से जब बाढ़ आती है तो एक बड़ी आबादी की चिंता हर साल बढ़ जाती है. बारिश की वजह से नदियों में उफान आ जाता है. बाढ़ की समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर लेती है कि सबकुछ इस बाढ़ में विलीन हो जाता है. एक तरफ जहां लोग पलायन शुरू कर देते हैं तो दूसरी तरफ रोजाना उनके लिए अपना और परिवार का पेट पोसना किसी चुनौती से कम नहीं होता. वहीं जब नदियों का जलस्तर कम होने लगता है तो कटाव की समस्या इनके सामने आ जाती है और लोगों के घर-मकान नदी में समाने लगते हैं. ये जिन गांवों के खत्म हो जाने का जिक्र यहां किया जा रहा है उसकी भी वजह कटाव ही है. ये सत्य है गोपालगंज जिले की जहां गंडक नदी के कटाव की वजह से तीन दर्जन गांव ही नदी में समा गए.

नक्शे से गायब हो गये 35 गांव..

गंडक नदी के कटाव के कारण गोपालगंज जिले के नक्शा से दर्जनों गांव गायब हो गये. कुचायकोट में धूप सागर, भगवानपुर, टांड पर, विशंभरपुर तिवारी टोला, विशंभरपुर बाजार, हजाम टोला, अहिरटोली, भसही, निरंजना, सदर प्रखंड के धर्मपुर, भोजली, रजवाही, टेंगराही, सेमराही, मकसुदपुर, खाप, कठघरवां, जगीरीटोला बरौली के शाहपुर पकडिया, सेमरहिया समेत 35 गांव नदी में समा चुके हैं. इनका अस्तित्व अब पूरी तरह खत्म हो चुका है.

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क्यों बढ़ने लगा है खतरा..

जब नेपाल में बारिश तेज होती है तो इसका असर बिहार पर भी पड़ता है. बिहार की कई नदियों में उफान देखा जाता है.गंडक नदी का स्वभाव उग्र रहा है. नदी में जून से सितंबर तक उफान रहता है. नदी का मिजाज कब खराब हो जाये, कब कटाव करने लगे, कब बाढ़ से गांवों में तबाही मचा दे. कब लोगों के घरों को अपने आगोश में सिमट ले, यह कोई नहीं जानता. नदी के विकराल स्वरूप से हर साल बांध और नदी के बीच के क्षेत्र में रहने वाले जिले के छह प्रखंडों के 43 गांवों के लोग जूझते रहे हैं. अधिकतर गांव के लोगों का करीब आधा साल तो तटबंधों पर ही कटता रहा. लेकिन इसबार गंडक नदी काफी पहले ही शांत हो गयी है.

क्यों सताने लगी चिंता..

गंडक नदी ने अधिक उग्र रूप नहीं धारण किया तो नीचले इलाके के लोगों को इसका फायदा मिलता है और वो पलायन करने से बच जाते हैं. गंडक नदी के जल स्तर के घटने के कारण कटाव का खतरा बढ़ा हुआ है. कुचायकोट प्रखंड के भसही गांव के समीप रविवार को कटाव शुरू हो गया. जीओ बैग नदी में डाले जा रहे हैं. गंडक नदी में पानी बढ़ने का खतरा सितंबर तक जरूर रहता है. सामान्यत: सितंबर तक विभाग भी हाइअलर्ट मोड में रहता है. लेकिन अब एक जून से 31 अक्टूबर तक नदी के मिजाज में उतार-चढ़ाव के कारण अलर्ट विभाग की ओर से रहता है. पानी का कम रहना गंभीर चिंता का विषय है. इससे कटाव का खतरा बढ़ सकता है. पौधारोपण करने की सलाह भी लोगों को दी जाती है.

पलायन बनती मजबूरी..

बता दें कि बिहार में पिछले महीने बारिश की वजह से नदियों में उफान आया. कुछ दिनों तक लोगों ने राहत की सांस ली ही थी कि मानसून ने फिर वापसी की और पिछले दिनों हुई लगातार बारिश ने नदियों के जलस्तर को बढ़ा दिया है. कटाव की समस्या बिहार के कई क्षेत्रों में बनती है. कोसी नदी में उफान हो या गंगा का उफान, लोग पलायन को मजबूर होते हैं. वहीं जब कटाव की समस्या सामने आती है तो खुद का घर तोड़कर सुरक्षित जगहों की ओर निकल जाते हैं. ऐसे कई इलाके प्रदेश में हैं जहां के गांवों का अस्तित्व ही खत्म हो चुका है. हर साल बाढ़ एक चुनौती बनकर सामने आती है और लोग अपने-अपने आशियाने को उजड़ने से बचाने में जुट जाते हैं.

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