बिहार सरकार अपराधियों नकेल कसने के लिए लगातार सख्त कदम उठा रही है. ऐसे में कई बार हम सुनते हैं कि किसी आपराधिक गति विधि में शामिल व्यक्ति की संपत्ति को जब्त किया जा रहा है. यानी, ‘कुर्की जब्ती‘ की जा रही है. क्या आप जानते हैं कि कुर्की जब्ती कैसे होती है. किसी के घर कुर्की जब्ती करने का आदेश कोर्ट के द्वारा जारी किया जाता है. पुलिस की एक टीम आरोपी के घर पहुंचती है. फिर, ढोल बजाकर माइकिंग की जाती है. सुनो, सुनो, सुनो.. कोर्ट के आदेश के अंतर्गत… और तोड़ फोड़ चालू.
कोर्ट के द्वारा वारंट जारी किया जाता है. इसमें कुर्की वारंट या वारंट ऑफ अटैचमेंट (Warrant of Attachment) अलग होता है. इसके तहत कानून किसी की संपत्ति को अस्थायी या स्थायी रूप से कब्जा कर सकता है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि कोर्ट किस के लिए कुर्की का आदेश जारी कर करता है. इसमें दो स्थितियां है. एक अगर व्यक्ति किसी आपराधिक गतिविधि के बाद फरार चल रहा हो. दूसरा, उस व्यक्ति को किसी का कर्ज या रकम अदा करना हो, जिसकी वसूली प्रॉपर्टी से की जा सकती हो. इन दोनों परिस्थितियों में कोर्ट के पास CRPC की धारा 82 से 86 के तहत कुर्की का विकल्प होता है. ये कानून 1908 में बनाया गया था. जिले आजादी के बाद भी कानून में जगह मिली.
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कुर्की का ज़िक्र सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) 1908 की धारा 60 में की गई है और इसी के तहत इसकी प्रक्रिया पूरी की जाती है. ऐसे में सवाल है कि किन परिस्थितियों में कुर्की का आदेश आता है. पहला अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ सिविल रिकवरी का केस चल रहा हो, उसके खिलाफ जजमेंट आ जाये. मगर व्यक्ति उसका पालन न करें. दूसरा, किसी क्रिमिनल केस में सरकारी या गैर-सरकारी पैसे या प्रॉपर्टी का नुकसान करने का कोई दोषी हो मगर, रिकवरी एक्जीक्यूट नहीं हो पा रही हो. या फिर, किसी ने जमानत करायी और जमानत की राशि अदा नहीं की हो. इसके साथ ही, कोर्ट में किसी भी केस की प्रोसिडिंग के दौरान आदेश नहीं मानने पर. इसमें फरारी होना भी शामिल है.
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी CRPC की धारा 84 के तहत कुर्की के आदेश के खिलाप कोर्ट में आपत्ति की जा सकती है. मगर, ये आपत्ति वो नहीं कर सकता जिसके खिलाफ आदेश जारी किया गया है. साथ ही, ये आपत्ति आदेश जारी होने के छह महीने के अंदर करना होता है. वहीं, क्रिमिनल केस में अगर किसी फरार व्यक्ति के खिलाफ कुर्की का आदेश जारी होता है तो उसके पास केवल एक ऑपशन बचता है कार्रवाई से पहले कोर्ट में सरेंडर करना. ऐसे में कोर्ट अगर चाहे तो कुर्की की प्रक्रिया को रोककर अन्य कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकता है.