International Chess Day: आज विश्व शतरंज दिवस है. इस खेल से निष्पक्षता, समावेश और पारस्परिक सम्मान को बढ़ावा तो मिलता ही है, रणनीति और बौद्धिक कौशल में भी विस्तार होता है. शतरंज या चेस मेंटल हेल्थ के लिए बेहतरीन खेल है. ऐसा माना जाता है कि शतरंज का खेल, जिसे कभी ‘चतुरंग’ के नाम से जाना जाता था, लगभग 1500 साल पहले का है और इसकी शुरुआत भारत में हुई थी. यह खेल वैज्ञानिक सोच और कला के साथ खेला जाने वाला सबसे प्राचीन बौद्धिक व सांस्कृतिक खेलों में से एक है
बौद्धिक कौशल से जुड़े ‘शतरंज’ जैसे खेल के पहले भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद को भला कौन नहीं जानता है. आनंद ने अपनी किशोरावस्था में ही सुर्खियां बटोरना शुरू कर दिया था. जब वह विश्व जूनियर खिताब जीतने के बाद भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने. वह तब से शतरंज के वैश्विक मंच पर भारत की अगुवाई कर रहे हैं. आनंद अब तक पांच बार विश्व खिताब जीत चुके हैं. उन्होंने अपना आखिरी विश्व खिताब 2017 में विश्व रैपिड खिताब के रूप में जीता था. इस खेल से जुड़े बिहार और राजधानी पटना के भी कई ऐसे शतरंज के खिलाड़ी हैं, जो नेशनल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं. खगड़िया के मथुरापुर गांव के छात्र शुभम कुमार को तो शतरंज का जादूगर भी कहा जाता है. उन्होंने बिहार व उसके बाहर सफलता के कई परचम लहराए हैं. दिसंबर 2021 में पटना साइंस कॉलेज में आयोजित राज्य स्तरीय अंडर 19 शतरंज प्रतियोगिता में इन्होंने बिहार में तीसरा स्थान प्राप्त किया था.
सौरभ को पिता ने बतायी राह, तो बने खिलाड़ी बिहार के शतरंज खिलाड़ी सौरभ आनंद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके है़ं सौरभ ने बताया कि वह पांच साल की उम्र से शतरंज खेलना शुरू किया़ इस खेल में रुचि देख कर मेरे पिताजी ने शतरंज खेलने की सलाह दी़ उन्होंने शतरंज के बारे में बताया़ इसके बाद मैंने वर्ष 2007 से शतरंज प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया़ शतरंज खेलने में मजा आने लगा, तो घर वाले भी इसमें मेरा पूरा सहयोग करने लगे़ अभी मैं बीए पार्ट टू का छात्र हूं. हर दिन घंटों शतरंज की प्रैक्टिस करता हूं. इसकी बदौलत मैं स्टेट लेवल पर चैंपियन बना़ इसके बाद शतरंज प्रतियोगिताओं में सफलता मिलती गयी. पिताजी की बदौलत शतरंज की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई बार स्वर्ण पदक जीता.
बिहार में प्राइवेट शतरंज अकादमी है. यहां एक माह में सात से आठ हजार रुपये फीस देनी पड़ती है. एक माह में केवल सात से आठ क्लास ही होता है़ अखिल बिहार शतरंज संघ के सचिव धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्लेक्स में काफी कम फीस में खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी जायेगी. बता दें कि इसकी आज से शुरूआत होने जा रही है. 20 जुलाई को बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा मंत्री जितेंद्र कुमार राय ने पाटलिपुत्र खेल परिसर, कंकड़बाग में प्रातः 11 बजे विश्व शतरंज दिवस के अवसर पर “बिहार स्कूल ऑफ चेस ” का विधिवत उद्घाटन किया है. इससे यहां के शतरंज खिलाड़ियों और चेस प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी. जो बच्चे इस खेल में बेहतर करना चाहते हैं, उन्हें भी यहां ट्रेनिंग दी जायेगी. बता दें कि विगत 3-4 वर्षों से शतरंज प्रशिक्षण के लिए राज्य के विभिन्न जिलों में राज्य शतरंज संघ से मान्यता प्राप्त कई शतरंज अकादमियां काम कर रही हैं.
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अखिल बिहार शतरंज संघ के सचिव धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि राज्य में शतरंज की गतिविधियों के विस्तार को देखते हुए बिहार राज्य खेल प्राधिकरण ने राज्य में अखिल बिहार शतरंज संघ के साथ बिहार स्कूल ऑफ चेस की स्थापना करने का निर्णय लिया है. आज अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस के अवसर पर गुरुवार को इसका विधिवत उद्घाटन हुआ.
1. शतरंज खेलने से सोचने और समझने की क्षमता विकसित होती है.
2. आपके अंदर एकाग्रता और किसी खास चीज पर फोकस को बढ़ाता है.
3. यह गेम माइंड फंक्शन को बढ़ावा देता है, जो डिमेंशिया रिस्क को कम करता है.
4. इससे अल्जाइमररोग के साथ-साथ अवसाद व चिंता का खतरा कम हो सकता है.
पटना के रेयान मोहम्मद यूट्यूब देख कर शतरंज की ट्रेनिंग ली और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीते़ रेयान ने आठ साल की उम्र से शतरंज खेलना शुरू किया. रेयान की मां ने बताया कि वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज रहा है. हर क्लास मेंं टॉप करता है़ वह खुद के इंटरेटस्ट से शतरंज खेलना शुरू किया. रेयान ने बताया कि यूट्यूब पर शतरंज की बारीकियों को पढ़ा और समझा. इसके बाद मैं शतरंज में आगे बढ़ना शुरू किया. कई बार जूनियर स्टेट चैंपियनशिप में विजेता बना. अंडर-10 नेशनल स्कूल चैंपियनशिप-2022 में स्वर्ण पदक जीता. इंडोनिशिया में आयोजित अंडर-12 यूथ एशियन चैंपियनशिप के क्लासिकल में मुझे तीन स्वर्ण पदक मिल चुका हैं.