पटना के महराजगंज स्थित बड़ी पटनदेवी एक प्रमुख शक्तिपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां सती के शरीर का दाहिनी जंघा गिरी थी. यहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां यहां रखी हुई हैं. पटनदेवी की सभी मूर्तियां काले पत्थर से निर्मित हैं.
बड़ी पटनदेवी से तीन किलोमीटर दूर हाजीगंज इलाके में स्थित छोटी पटनदेवी मंदिर भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. मान्यता के अनुसार, यहां देवी सती का घूंघट और वस्त्र गिरा था. जहां कपड़ा गिरा था वहां मंदिर बनाई गई है.
बिहारशरीफ से पश्चिम एकंगरसराय जाने वाले रास्ते पर मघरा गांव में प्राचीन शीतला मंदिर शक्तिपीठ है. मान्यता है कि यहां सती के हाथ का कंगन गिरा था. कहा जाता है कि शीतला मंदिर में जल चढ़ाने से कई रोग दूर होते हैं.
गया-बोधगया मार्ग पर भस्मकूट पर्वत पर मां मंगला गौरी प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर है. कहा जाता है कि यहां देवी सती का स्तन गिरा था. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 115 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर का प्रवेश द्वार छोटा होने के कारण यहां झुक कार प्रवेश करना पड़ता है.
नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर रूपौ गांव स्थित चामुंडा मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. कहा जाता है कि यहां देवी सती का सिर गिरा था. हर मंगलवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार चंड-मुंड के वध के बाद देवी दुर्गा चामुंडा कहलाईं.
अंबिका भवानी मंदिर छपरा-पटना मुख्य मार्ग पर आमी स्थित एक शक्तिपीठ है. इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. इसे देवी सती के जन्मस्थान और अंतिम विश्राम स्थल के रूप में जाना जाता है.
रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी की गुफा में मां ताराचंडी का मंदिर है. यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है. ताराचंडी के अलावा यहां मुंडेश्वरी मां की काले रंग की मूर्ति और कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं.
सहरसा से 17 किलोमीटर की दूरी पर उग्रतारा शक्तिपीठ स्थित है. यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी. इस मंदिर का निर्माण करीब 500 साल पहले मधुबनी के राजा नरेंद्र सिंह देवी की पत्नी रानी पद्मावती ने कराया था.
मुंगेर में गंगा तट पर स्थित मां चंडिका देवी का मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. कहा जाता है कि यहां माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस तीर्थ का निर्माण सत्ययुग में हुआ था.