Bihar Caste Survey: बिहार में जातीय सर्वे के आंकड़े जारी किए गए हैं. विगत 2 अक्टूबर को राज्य सरकार ने गांधी जयंती के अवसर पर जातीय सर्वे का डेटा जारी कर दिया. जिसमें यह सामने आया है कि प्रदेश में किस जाति के लोगों की कितनी संख्या है. वहीं तमाम धर्मों के अनुयायियों की संख्या भी सामने आयी है. जातीय सर्वे का आंकड़ा जारी किए जाने के विरोध में याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए लेकिन सर्वोच्च अदालत ने भी इस आंकड़े को जारी करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. दूसरी तरह, जातीय सर्वे के आंकड़े को लेकर सियासत गरमायी हुई है. बिहार से लेकर दिल्ली तक इस सर्वे की चर्चा है. पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर हमलावर है. आरोपों की बौछार दोनों ओर से लगायी जा रही है. इस बीच अब बिहार के सत्ताधारी दलों के नेताओं ने अन्य राज्यों में भी जातीय सर्वे कराने की मांग की है. सूबे के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अन्य राज्यों में भी इस सर्वे को कराने की मांग की और इसके पीछे की वजह भी बतायी है. वहीं जदयू की ओर से भी यही मांग उठ चुकी है.
बिहार के उपमुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने मांग की है कि बिहार की तर्ज पर ही अन्य राज्यों में भी जातीय सर्वे कराना चाहिए और जाति के आंकड़ों को बाहर लाना चाहिए. शनिवार को मीडिया से बातचीत के दौरान तेजस्वी यादव ने कहा कि ये हर जगह होना चाहिए. पूरे देश में अब ये मांग उठ रही है. राज्य सरकारों को अपने यहां ये कराना चाहिए. चुनावों में भी कहा गया है कि जातीय सर्वे कराएंगे. इससे नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे. मानवता के नाते हमने ये किए हैं. वहीं भाजपा पर हमला बोलते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि जो आपत्ति कर रहे हैं उन्हें प्रधानमंत्री से मांग करनी चाहिए कि देश में जातीय जनगणना कराएं. ये भी नहीं हो रहा है. आपको पता होगा कि देश में कौन सी आबादी किस स्थिति में है. ताकि उस हिसाब से नीति बन सके. उन्होंने कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के उस बयान का समर्थन किया जिसमें प्रियंका गांधी ने कहा है कि अगर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनती है तो बिहार की तरह ही वहां भी राज्य सरकार जातीय सर्वे करवाएगी. वहीं बिहार आए जेपी नड्डा ने जब फिर से अपने पुराने बयान को दोहराया और भविष्य में क्षेत्रिय पार्टियों के खत्म होने की बात कही तो उसपर तेजस्वी यादव ने प्रतिक्रिया दी और बोले कि हमें लग रहा ये खुद समाप्त हो रहे हैं. जब स्टेट ही नहीं रहेगा तो सेंटर कहां से रहेगा. भाजपा का साथ जनता ने तो छोड़ा ही है अब क्षेत्र में गठबंधन के साथी भी छोड़ते जा रहे हैं.
#WATCH | Patna: On the caste-based survey report, Bihar Deputy CM Tejashwi Yadav says, "It should be done in every state… Even in elections, parties are promising to conduct caste-based census in the states. Govt should have the data of the society so that policies can be… pic.twitter.com/xODKoZJJWX
— ANI (@ANI) October 7, 2023
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इधर, जदयू के राषट्रीय महासचिव व पवकता राजीव रंजन ने शुकवार को कहा है कि अतिपि छ ड़ा समाज की भावनाओ का आदर करते हुए केद्र सरकार को देश मे जातिगत गणना करवाना चाहिए. उन्होने कहा कि बिहार के बाद अब ओडिशा मे जाति गणना मे भी अतिपिछड़ा समाज की सर्वाधिक संख्या होने की बात सामने आ रही है. बिहार मे जहां अतिपिछड़ा समाज 36फीसदी है, वही ओडिशा मे इसकी संख्या 46 फीसदी बतायी जा रही है. वहीं जदयू के पदेश अध्यक उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि जाति गणना के आंकड़ो की सत्यता पर बयान विरोधियो की हताशा का परिणाम है. जीतन राम मांझी, उपेद्र कुशवाहा और चिराग पासवान भी भाजपा की भाषा बोल रहे है. जाति गणना का मूल उददेश्य दलित और पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन लाना है. वही, दलितो एवं पिछडो के नाम पर अपनी राजनीतिक दुकान चलाने वाले नेता आज जाति गणना पर ही सवाल खड़े कर रहे है.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने जाति गणना की रिपोर्ट को खानापूर्ति बताया है. भाजपा पदेश कार्यालय मे शुक्रवार को सहयोग कार्यक्रम में आये लोगों की समस्या सुनने के बाद पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि बैठक में मैने ही यह सवाल उठाया था कि जो लोग घर से बाहर थे, उनके घर के मुखिया का हस्ताक्षर कैसे हो गया ? वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा कि जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सत्ता से जुड़ी चुनिंदा जातियों को छोड़कर लगभग सभी जातियों के लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. पूर्व केद्रीय मंत्री उपेद्र कुशवाहा और जदयू के एक सांसद सहित अनेक लोग जब सर्वे के आंकड़ो को विश्वसनीय नहीं मान रहे हैं, तब सर्वे प्रक्रिया की समीक्षा करायी जानी चाहिए. सुशील मोदी ने कहा कि बिहार मे जातीय सर्वे कराने के सरकार के नीतिगत निर्णय पर हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद अब कानूनी रूप से सर्वे को लेकर कोई कानूनी मुद्दा नही है. दूसरी तरफ सर्वे की विश्वसनीयता जनता का मुददा बन गयी है.