Jharkhand Archery Players In India, Bokaro News बोकारो : झारखंड की बौद्धिक व शैक्षणिक राजधानी इस्पात नगरी बोकारो को खेल के मैदान में कई मेडल दिलाने खिलाड़ियों का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. हालात ये हैं कि नेशनल-स्टेट खेलने वाले गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ियों को दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करना पड़ रहा है. बात हो रही है बोकारो के तीरंदाजों की उपेक्षा की.
तीरंदाजी में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों में इन दिनों कोई ईंट जोड़ने का मसाला बना रहा है तो कोई दूसरे के घर का काम कर रहा है. बेहतरीन खेल नीति का दम भरने वाली झारखंड सरकार में राष्ट्रीय खिलाड़ियों की ऐसे अनदेखी होगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा. खेल और खिलाड़ी झारखंड की पहचान हैं और गौरव भी. लेकिन, राज्य व राष्ट्रीय फलक पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद भी खेल साधकों को दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करनी पड़े तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा?
तीरंदाजी की दुनिया में जलवे बिखेरने वाले दीपक संवईया व गुड़िया कुमारी की कहानी कुछ ऐसी हीं है. इनकी सुध न खेल प्रेमी ले रहे, न सरकार ले रही है और न ही तीरंदाजी संघ.
हरला थाना सेक्टर-09 अंतर्गत महेशपुर निवासी तीरंदाज गुड़िया कुमारी आर्थिक तंगी को दूर करने के लिये कभी दूसरे के खेतों में धान का बिचड़ा रोपती है…कभी ईंट भट्ठा में काम करती है…इन दिनों अपने घर के आस-पास हीं दूसरे के घर का काम रही है. बताया : घर की आर्थिक स्थित बहुत डवांडोल है. पिता की तबियत ठीक नहीं रहती है. दो छोटे भाई अभी पढ़ते हैं.
महंगाई व आर्थिक समस्या के कारण काम करना पड़ रहा है. अभी तक कहीं से भी किसी प्रकार की मदद नहीं मिली है. स्कॉलरशिप का पैसा भी नहीं मिला. मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ती है. गुड़िया ने तीरंदाजी के बड़े-बड़े सपने देखे, पर अब उसकी आंखों में सपने की जगह आंसू हैं.
आज भी अगर संसाधन मिले तो वह अपनी प्रतिभा से अपने शहर, अपने राज्य व अपने देश के लिए गौरव अर्जित सकती है. कहा : अभी तक प्रैक्टिस के लिये न तो ग्राउंड है और न हीं कोच. घर-परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण कहीं-कहीं कुछ काम कर लेती हूं. उससे जो पैसा मिलता है, उससे घर खर्च में सहयोग मिल जाता है. क्या करूं? आप बतायें?
एआई यूनिवर्सिटी खेल 2017 प्रथम
एआई यूनिवर्सिटी खेल 2017 प्रथम
39वीं जूनियर नेशनल आर्चरी चैपियनशिप 2016 प्रतिभागी
37वीं सब जूनियर नेशनल आर्चरी चैपियनशिप 2016 द्वितीय
विनोभा भावे यूनिवर्सिटी 2017 प्रतिभागी
झारखंड ओलिंपिक एसोसिएशन मेरिट सर्टिफिकेट 2019 ब्रांज
बिरसा बासा-सेक्टर 12 निवासी तीरंदाज दीपक संवईया घर-परिवार की आर्थिक समस्या को दूर करने के लिये पिछले कोरोना काल से हीं दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है. उसके पिता नहीं है. मां घर में हीं परचून की दुकान चलाती है, जो अब चलती भी नहीं है. कारण, पहले दुकान कम थी, अब घर-घर दुकान खुल गयी है. बड़ा भाई भी तीरंदाजी में अभी हाथ साफ हीं कर रहा था कि पिता की मौत हो गयी.
उसने सपना को अधूरा छोड़ घर-परिवार चलाने के लिये दिहाड़ी मजदूरी करना शुरू कर दिया. मां की परचून दुकान व बड़े भाई की दिहाड़ी मजदूरी खर्चा नहीं चल पा रहा था. इस कारण दीपक ने भी दिहाड़ी मजदूरी करनी शुरू कर दी. दीपक ने बताया : तीरंदाजी के क्षेत्र में बोकारो, झारखंड सहित देश का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक तक रोशन करना चाहता हूं. लेकिन, समझ में हीं नहीं आता कि क्या करूं? घर चलायें या खेले ? और खेले भी तो कैसे? सुविधा व सहयोग के नाम पर कुछ नहीं है. मां की दुकान अब उतनी नहीं चलती है. सिर्फ बड़े भाई की दिहाड़ी मजदूरी से घर-परिवार का खर्चा नहीं चलता. इस कारण अब ‘निशाना’ पेट की आग के सामने भटक गया है.
•झारखंड तीरंदाजी प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल, •स्टेट स्कूल आर्चरी चैंपियनशिप (2015) में पांच स्वर्ण मेडल, •एसजीएफआई आर्चरी चैंपियनशिप (2016) में तीन सिल्वर और एक कांस्य मेडल, •राज्य स्तरीय तीरंदाजी प्रतियोगिता (2017) में दो कांस्य मेडल. राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताएं : •एसजीएफआई नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप (2015) में एक स्वर्ण और एक सिल्वर मेडल, •नेशनल आर्चरी प्रतियोगिता में प्रतिभागी, •नेशनल वनवासी आर्चरी प्रतियोगिता में एक सिल्वर मेडल, •सब जूनियर राष्ट्रीय आर्चरी चैंपियनशिप (2015) में प्रतिभागी, •राष्ट्रीय स्तरीय एकलव्य ट्राईबल आर्चरी टूर्नामेंट (2017) में प्रतिभागी, •10वां राष्ट्रीय आर्चरी चैंपियनशिप में प्रतिभागी, •नेशनल स्कूल गेमर (2017) में प्रतिभागी.
Posted by : Sameer Oraon