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जगरनाथ महतो जयंती : JMM कार्यकर्ता से राजनीतिक सफर शुरू कर ‘टाइगर’ ने ऐसे बनायी लोगों के दिल में जगह

जगरनाथ महतो की आज (31 जुलाई) जयंती है. 31 जुलाई, 1967 में जन्में जगरनाथ महतो गांव की कुल्ही से निकलकर ग्रासरूट के नेता बने थे. जेएमएम के टिकट पर वर्ष 2005 में डुमरी विधानसभा सीट से विजयी रहे. लगातार चार बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. सादगी और जुझारुपन इनकी पहचान रही है.

बेरमो (बोकारो), राकेश वर्मा : गांव की कुल्ही से निकल कर विधानसभा तक का सफर तय करने वाले झारखंड के पूर्व शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की जयंती सोमवार को है. 31 जुलाई, 1967 को जन्में जगरनाथ महतो का निधन छह अप्रैल, 2023 को इलाज के क्रम में एमजीएम चैन्नई में हो गया था. 80 के दशक में झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने राजनीति शुरू की थी. डुमरी विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1977 से 2000 तक रहे पूर्व विधायक लालचंद महतो व शिवा महतो के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ कर वह वर्ष 2004 में पहली बार विधायक बने थे. पहले जेएमएम विधायक शिवा महतो के सेकेंड मैन के रूप में जगरनाथ महतो चर्चित थे.

90 के दशक में चर्चा में आयें

90 के दशक में भंडारीदह रिफैक्ट्रीज प्लांट में फायर क्ले की ट्रांसपोर्टिंग में घालमेल को उजागर कर पहली बार चर्चा में आये. कहते है कि उस वक्त प्लांट के लिए रॉ मेटेरियल उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर से आता था. इस कार्य में लगे ट्रांसपोर्टर इसी क्षेत्र से फायर क्ले की ट्रांसपोर्टिंग कर कंपनी को चूना लगा रहे थे. इस अनियमितता को स्वर्गीय महतो ने पर्दाफाश किया था. तब दबंग ट्रांसपोर्टरों के इशारे पर उनके साथ मारपीट हुई. पुलिस प्रताड़ना का भी उन्हें शिकार होना पड़ा. तीन-चार दिनों तक वे लापता रहे. जिला प्रशासन ने उस वक्त उनपर सीसीएल एक्ट लगाकर जेल भेजने का प्रयास किया. उस वक्त गिरिडीह के तत्कालीन सांसद स्व. राजकिशोर महतो ने इस मामले पर हस्तक्षेप किया. उन्होंने प्रशासन से कहा कि या तो जगरनाथ महतो को जेल भेजे या फिर कोर्ट में हाजिर करे. इसके बाद जाकर मामला ठंडा पड़ा था.

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जमीनी स्तर पर किया था आंदोलन

डुमरी-नावाडीह क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ इससे सटे बेरमो कोयलांचल में भी संगठित व असंगठित मजदूरों सहित विस्थापित आंदोलनों में भी वह सक्रिय रहे. गांव में बिजली का खंभा खुद ठेला में ढोने की बात हो या कोलियरी के लोकल सेल में ट्रकों में कोयला लदाई. जमीनी स्तर पर आंदोलन के कारण अपना अलग स्थान बनाने में कामयाब रहे. कभी अहले सुबह लालटेन लेकर बच्चों के घर जाकर उन्हें जगा कर पढ़ने के लिए प्रेरित करते, तो कभी खुद विद्यालय में बच्चों के साथ छात्र बन कर पढ़ाई करते. जमीन पर बैठ कर मुर्गा लड़ाई देखना, किसी कार्यक्रम में खुद मुखौटा पहन कर छऊ नृत्य करना, भोक्ता पर्व में डेढ़ सौ फीट ऊंचे खंभे में झूलना, जंगली इलाके के दौरे में पेड़ पर चढ़ कर भेलवा फल तोड़ कर खाना, उनकी सादगी और जमीन से जुड़ा होना बताते हैं. सादगी और जुझारूपन उनकी पहचान थी.

झारखंड अलग राज्य आंदोलन में रही सक्रिय भूमिका

झारखंड अलग राज्य आंदोलन व आर्थिक नाकेबंदी आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रहती थी. विधानसभा में पारा शिक्षकों के मामले व स्थानीयता के मुद्दे पर मुखर आवाज थे. सीएनटी-एसपीटी एक्ट, स्थानीय नीति, पारा शिक्षकों व आंगनबाड़ी सेविका व सहायिका मामले को विधानसभा के पटल पर पुरजोर ढंग से समय-समय पर उठाते रहे. बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, एके राय, शिवा महतो, राजकिशोर महतो के सान्निध्य में राजनीति के गुर उन्होंने सीखे थे.

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बेहतरीन फुटबॉलर के साथ-साथ खेल प्रेमी भी थे

जगरनाथ महतो संघर्षशील नेता के साथ-साथ एक बेहतरीन फुटबॉलर और खेल प्रेमी भी थे. कोराेना की चपेट में आने से पूर्व वर्ष 2020 के पहले तक रोजाना एक घंटा मॉर्निंग वॉक के बाद अपने पैतृक गांव अलारगो के सिमराकुल्ली के मैदान में ग्रामीणों के साथ फुटबॉल भी खेलते थे. इस दौरान उनसे मिलने आने वाले ग्रामीणों की समस्या भी सुनते थे. अपने गांव सिमराकुल्ही और गट्टीगडा में फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन भी करते थे. खेल के अलावा उनका खेती से भी गहरा लगाव था.

35 वर्षों का था राजनीतिक सफर

वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव के ठीक छह माह पूर्व जगरनाथ महतो डुमरी में एक विशाल सभा आयोजित कर जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन व उनके बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन की उपस्थिति में झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हुए थे. तब दुर्गा सोरेन ने ही इन्हें पार्टी में लाने की प्रारंभिक पहल की थी. पार्टी में लगभग 17 सालों का सफर तय करने के बाद आखिरकार वे हेमंत सरकार में शिक्षा मंत्री बने थे. वर्ष 1985 के दौर में स्वर्गीय महतो ने अपने क्षेत्र व आसपास के गांव-देहात की समस्याओं को लेकर पहल की थी. अलारगो, तारमी, तुरिया, नर्रा, तारानारी पंचायत के गांवों में बिजली लाने के लिए ग्रामीणों के सहयोग से खुद बिजली के खंभों को लाकर गाड़ने का काम शुरू किया था.

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स्थानीय नीति की मांग को लेकर किया था जोरदार आंदोलन

1990 के दशक स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो और शिबा महतो का इन्हें सानिध्य मिला. फिर इन्होंने सीसीएल तारमी, कल्याणी, बीआरएल भंडारीदह के मजदूरों के शोषण व विस्थापितों के हक को लेकर आवाज उठाना शुरू किया. मजदूर-विस्थापितों को लड़ाई में इनका काफी साथ मिला. इसी दौरान अलग झारखंड आंदोलन की मांग भी तेज पकड़ रही थी. इस आंदोलन में भी कूद पड़े. दिवंगत जगरनाथ महतो का पूरा राजनीतिक जीवन आंदोलनों के कारण संघर्ष से भरा रहा. कई बार जेल जाना पड़ा. अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में भी एक दर्जन से अधिक मुकदमे इन पर दर्ज हुए. फिर भी कभी हार नहीं मानी. 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग को लेकर भी किये गये आंदोलन के कारण भी उन्हें तीन माह से अधिक समय तक तेनुघाट जेल में गुजारना पड़ा था. अंतत: इस मामले में कोर्ट द्वारा उन्हें रिहा कर दिया गया था.

2005 में पहली बार बने थे विधायक

डुमरी विधानसभा सीट से जगरनाथ महतो पहली बार विधायक बने. इसके बाद लगातार चार बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. कोयलांचल के ‘टाइगर’ के नाम से मशहूर जगरनाथ महतो हेमंत सरकार में स्कूली शिक्षा और साक्षरता विकास विभाग के साथ-साथ मद्य निषेध और उत्पाद मंत्री बने थे. जगरनाथ महतो का सपना था कि राज्य के सरकारी स्कूल के बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों की तरह ही पढ़ाई करें. इस दिशा में उन्होंने कई कार्य भी किये. जगरनाथ महतो को डुमरी विधानसभा सीट से वर्ष 2000 में मिली जीत 2019 के विधानसभा चुनाव तक जारी रहा. 2005 के बाद 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में इनका विजयी रथ जारी रहा.

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