Jharkhand News, Bokaro News, बोकारो न्यूज (रंजीत कुमार) : झारखंड के बोकारो जिले में कुपोषित बच्चों के बेहतर इलाज के लिए सरकार की ओर से हर संभव सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं. इसके तहत जिले में चार उपचार केंद्र चास अनुमंडल अस्पताल (20 बेड), बेरमो अनुमंडल अस्पताल (10 बेड), पेटरवार प्राथिमक स्वास्थ्य केंद्र (10 बेड) व गोमिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (10 बेड) खोले गये हैं. पिछले दिनों कुल 22 कुपोषित (चास में सात, पेटरवार में पांच, बेरमो में छह व गोमिया में चार) बच्चे इलाजरत दिखे. जानकारी का अभाव व विभागीय लापरवाही के कारण बेड खाली रह रहे हैं. ऐसे में झारखंड कुपोषणमुक्त कैसे बन सकेगा.
कुपोषित बच्चों के केंद्र में रहने से लेकर खाने तक की पूरी व्यवस्था की गयी है. इतना ही नहीं बच्चे की माता को श्रमिक क्षतिपूर्ति के लिये 100 रूपये रोजाना भी सरकार की ओर से दिया जाता है. इसके बाद भी जिले में कुपोषित बच्चों का इलाज सही ढंग से नहीं हो पा रहा है. इलाज की बात तो दूर है. उचित संख्या में बच्चे कुपोषण उपचार केंद्र तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग भी इस पर चुप है. डीसी-डीडीसी व कुपोषण केंद्र की जांच के लिए बोकारो भ्रमण पर आने वाले अधिकारियों के निर्देश का भी असर किसी पर नहीं पड़ रहा है. स्थिति ज्यों की त्यों है.
बोकारो जिले में कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए चास, गोमिया, बेरमो, पेटरवार में क्रमश: 20 व 10-10 बेड वाला कुपोषण उपचार केंद्र बनाया गया है. वर्ष 2021 के जनवरी व फरवरी में क्रमश: 11 व 12 कुपोषित बच्चे इलाज किया गया. फिलहाल चास अनुमंडल अस्पताल में सात, पेटरवार में पांच, गोमिया में चार व बेरमो में छह कुपोषित बच्चे इलाजरत है. चास कुपोषण उपचार केंद्र में वर्षवार कुपोषित बच्चों के आंकडें कभी घटते हैं, कभी बढते हैं. वर्ष 2010 में 102, वर्ष 2011 में 103, वर्ष 2012 में 255, वर्ष 2013 में 153, वर्ष 2014 में 218, वर्ष 2015 में 155, वर्ष 2016 में 235, वर्ष 2017 में 164, वर्ष 2018 में 204, वर्ष 2019 में 172, वर्ष 2020 में 72 बच्चों का इलाज किया गया.
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बोकारो जिले में जीरो से छह वर्ष तक के कुल बच्चों की संख्या एक लाख 82 हजार 747 है. इनमें हरी पट्टी यानी सामान्य बच्चों की संख्या एक लाख 16 हजार 730 है. पीली पट्टी (अल्पवजन) वाले बच्चे 19151 है. लाल पट्टी (अति कम वजन) के बच्चों की संख्या 1334 है. अति गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या जिले में फिलहाल 435 है. जिला प्रशासन की बैठक में लगातार डीसी-डीडीसी कुपोषण उपचार केंद्र की समीक्षा करते हैं. कुपोषित बच्चों के उपचार को लेकर लगातार दिशा-निर्देश भी दिया जाता है. बैठक में शामिल अधिकारी सक्रियता की बात कहते हैं. बाद में मामला ठंडा पड़ जाता है.
सरकार की ओर से कुपोषित बच्चों को कुपोषण केंद्र तक लाने की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी सेविका, सहिया, एएनएम को दी गयी है. इसके अलावा कई एनजीओ व सरकारी अस्पतालों के ओपीडी की मदद से भी कुपोषित बच्चे कुपोषण केंद्र तक पहुंचते हैं, लेकिन लगातार कुपोषण उपचार केंद्र तक बच्चों के पर्याप्त संख्या में नहीं पहुंचने से जिम्मेवार लोगों पर सवाल भी खड़ा होता है.
चास अनुमंडल अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रवि शेखर ने कहा कि छह माह से पांच साल तक के बच्चों के हाथ के ऊपरी हिस्से की मोटाई करीब 115 मिमी से कम होना गंभीर कुपोषण का इशारा है. ऐसे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है. संक्रमण की चपेट में आसानी से आते हैं. कुपोषित होने पर मुख्य लक्षण थकान, चक्कर आना व वजन कम होना सामने आता है. इसके अलावा त्वचा पर खुजली व जलन की समस्या, हृदय का ठीक से काम न करना, लटकी व बेजान त्वचा, पेट से संबंधित संक्रमण, सूजन की समस्या, श्वसन तंत्र से संबंधित संक्रमण, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता व चिड़चिड़ापन प्रमुख है. हमें कुपोषण को समझने की जरूरत है. इसके अलावा गरीबी, लड़का व लड़की के बीच भेदभाव, कम उम्र में माता बनना, स्तनपान नहीं कराना, ज्ञान की कमी, पोषक आहार की कमी एवं अस्वच्छता के कारण भी शरीर पर कुपोषण हावी होता है.
बोकारो के सिविल सर्जन डॉ एके पाठक कहते हैं कि उनका काम इलाज करना होता है. बच्चों की स्क्रीनिंग करने से लेकर कुपोषण उपचार केंद्र तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सीडीपीओ की होती है. स्वास्थ्य विभाग व सीडीपीओ के बीच सामंजस्य का अभाव बन जाता है. इस वजह से बच्चे सेंटर तक नहीं पहुंच पा रहे है. सभी को ईमानदारी से अपने काम करने होंगे. चिकित्सक लगातार कुपोषित बच्चों की सूची मांग रहे हैं. कई बार तो सूची के आधार पर सहिया व चिकित्सक खुद बच्चों तक पहुंचते हैं. साथ ही लोगों में कुपोषण के प्रति जागरूकता का अभाव है. इस कारण भी सेंटर का बेड खाली रहता है.
Posted By : Guru Swarup Mishra