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झारखंड के कोयले से माफिया हो रहे मालामाल और यहां के लोग हैं बेहाल, प्रभात खबर से बोले कोबाड घांदी

मार्क्सवादी विचारक कोबाड घांदी का कहना है कि झारखंड में खनिज संपदा काफी मात्रा में है, पर यहां गरीबी भी उतनी ही है. यहां के गरीब आदिवासी मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में काम करने के लिए जाते हैं और वहां उन्हें बहुत कम मजदूरी में काम करना पड़ता है. उन्होंने प्रभात खबर से विशेष बात की...

मार्क्सवादी विचारक कोबाड घांदी का कहना है कि झारखंड में खनिज संपदा काफी मात्रा में है, पर यहां गरीबी भी उतनी ही है. यहां के गरीब आदिवासी मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में काम करने के लिए जाते हैं और वहां उन्हें बहुत कम मजदूरी में काम करना पड़ता है. शोषण भी होता है. श्री गांधी शनिवार को बेरमो के गांधीनगर स्थित भाकपा माले व एक्टू नेता विकास सिंह के आवास में प्रभात खबर से बातचीत कर रहे थे. कहा कि धनबाद और बेरमो में कोयला की काफी काली कमाई होने की बात कही जाती है, जो यहां की राजनीति को भी नियंत्रित करती है. वैसे माफिया यहां मालामाल हो रहे हैं और यहां के लोग जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा है काला धन

श्री गांधी ने कहा कि काला धन हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा है. अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है तथा देश का विकास करना है तो काला धन पर रोक लगाते हुए असमानता को दूर करना होगा. आज की तुलना में अंग्रेजों के समय में जीडीपी मात्र आठ फीसदी था. श्री गांधी ने कहा कि पूरे सिस्टम को ऊपर से लेकर नीचे तक खराब कर दिया गया है, अनौपचारिक रूप से इसी का सर्वे करना है. एक रोड बनाने वाले कांट्रेक्टर को योजना की 40 फीसदी राशि नेताओं व अधिकारियों को चढ़ावा देने में चली जाती है. बाकी बची राशि में काम भी करना है और कांट्रेक्टर का मुनाफा भी है. इस तरह बनी सड़क दो साल में ही जर्जर हो जायेगी. ऐसे में देश विकास कैसे करेगा. हम समाजवाद की बात नहीं कर रहे हैं, परंतु जो पैसे विदेशों में जा रहे हैं, उसे रोकना होगा. बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां हमारे देश का पैसा विदेशों में ले जा रहे हैं और इनके कारण हमारे छोटे-छोटे उद्योग-धंधे करने वाले लोग बेरोजगार हो रहे हैं. छोटी-छोटी इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलना चाहिए.

माओवाद व नक्सल से कभी संबंध नहीं रहा

श्री गांधी ने कहा कि माओवाद व नक्सल से कभी भी उनका कोई भी संबंध नहीं रहा है. निर्दोष होने के बाद भी दस साल जेल में रहा. एक केस में 60-70 हियरिंग हुई, लेकिन गवाह नहीं आया. जिस वक्त नक्सलवाद की शुरुआत हुई थी, उस वक्त भले ही उनका उद्देश्य अच्छा रहा हो परंतु बाद में ये लोग भटक गये. माओवादी भी अब भ्रष्टाचारी हो गये हैं. कहा कि राजनीति में ईमानदार लोग होने चाहिए. देश के हित में स्वार्थ देखना चाहिए.

कौन हैं कोबाड घांदी

कोबाड गांधी मुंबई के एक धनी पारसी परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता एक मल्टीनेशनल कंपनी के सीइओ थे. इनकी प्रारंभिक देहरादून के शिक्षा दून स्कूल में हुई, जहां संजय गांधी, कमलनाथ, मणीशंकर अईय्यर जैसे लोग इनके क्लासमेट थे. श्री गांधी ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीएससी किया और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये. इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान मजदूरों की बस्तियों में चले जाते थे, जो मुख्यतया भारतीय थे. ये नस्लवादी भेदभाव के शिकार थे. इन पर और इनके साथियों पर केस दर्ज हो गया. अदालत में ये अंग्रेज जज से लड़ गये. जज ने नाराज होकर इन्हें सजा देकर जेल भेज दिया. जेल से निकलने के बाद श्री गांधी ने सीए की पढ़ाई पूरी की और इसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसके बाद देश वापस आ गये.

दलित पैंथर्स नामक संगठन बनाया

यहां आकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के बीच काम करने लगे जो मुख्यतया दलित थे. दलित पैंथर्स नामक संगठन का गठन किया. कुछ दिनों बाद इन्होंने नागपुर को अपना केंद्र बनाया, क्योंकि इनकी पत्नी अनुराधा वहां प्रोफेसर बन गयी थीं. बाद में आंध्र प्रदेश में भी अपने कामकाज का विस्तार किया. वर्ष 2008 में इन्हें दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया. आरोप लगा ये माओवादी पार्टी के सर्वोच्च नेताओं में से एक हैं और उसके पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं. देश के सभी प्रमुख शहरों में इनके खिलाफ केस दर्ज किया गया. बोकारो थर्मल थाना क्षेत्र में सीआइएसएफ कैंप पर हमला तथा नावाडीह थाना क्षेत्र में बख़्तरबंद गाड़ी को लैंड माइन लगाकर उड़ाने के मामले में भी अभियुक्त बनाये गये. इस केस में छह माह तेनुघाट जेल में तथा दो साल हजारीबाग जेल में बंद रहे.

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