कृष्णकांत सिंह, बोकारो
Prabhat Khabar Special: कपड़ों की तुरपाई से जिंदगी का गोटा सजाने वाली शारदा देवी की जिंदगी इतनी आसान नहीं थी. मुफलिसी में दिन गुजारने के बावजूद उम्मीद थी कि आनेवाला कल बेहतर होगा. पिता पूरन तुरी और माता तिलक देवी ने इस आस में 13 साल की उम्र में शारदा की शादी कर दी कि उनके जीते जी बेटी का घर बस जायेगा और आराम से रह सकेगी. हालांकि, ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि जिस व्यक्ति (पति उमेश तुरी) ने हाथा थामा उसकी जिंदगी शादी के चंद सालों बाद ही शराब के पैमाने में दफन हो गयी. यानी शारदा विधवा हो गयी. इस बीच शारदा तीन बच्चों (दो पुत्री और एक पुत्र) की मां बन चुकी थीं. जीवन और जिम्मेदारियों से दो-दो हाथ करते हुए आज वह पेटरवार प्रखंड की प्रमुख हैं. उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़े भाई समान उनके राजनीतिक सलाहकार और सांसद प्रतिनिधि संजय गुप्ता ने हर कदम पर बखूबी साथ दिया.
बकौल शारदा का जन्म बीटीपीएस के छोटे से गांव कंजकिरो में हुआ था. जब 13 साल की थीं तभी उनकी शादी पेटरवार प्रखंड के पिछरी गांव निवासी उमेश तुरी से कर दी गयी, लेकिन उमेश ने कभी भी परिवार को तवज्जो नहीं दी. शराब के लिए पत्नी को पीटना और जरूरत पड़ने पर घर का सामान बेच देना उसकी आदत बन चुकी थी. फिर एक दिन वह कमाने बेंगलुरु चला गया, लेकिन आदत नहीं सुधरी. एक दिन वह बीमार हो गया. स्थिति काफी गंभीर होती चली गयी. शारदा को इस बात का पता चला तो वह पति को देखने बेंगलुरु पहुंची. पति को निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जांच के बाद चला कि उमेश को डेंगू बुखार हुआ है. जर और जेवर बेच कर आठ लाख रुपये का बंदोबस्त किया और पति के इलाज में लगा दिया, लेकिन उसे बचा नहीं सकी. इसके बाद यहीं से शारदा का बुरा वक्त शुरू हो गया. कोई रहनुमा भी नहीं था जो साथ दे. या यूं कह लें कि आंखें खुली रखी तो आंसू काले और बंद की तो सपने भी काले.
आखिरकार शारदा ने अपना और तीन बच्चों का पेट पालने के लिए घर की दहलीज लांघ दी. कपड़े की सिलाई से लेकर कोयला काटने तक और दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा करने व दाई का काम करने से लेकर ईंट बालू उठाने तक, हर काम किया. ऐसा भी वक्त आया जब किसी के घर में पार्टी या शादी समारोह होता था तो बिन बुलाये काम करने पहुंच जाती थी, इस उम्मीद के साथ कि खाना मिल जायेगा तो बच्चों को भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा. धूप हो या बारिश बच्चों के साथ प्लास्टिक और पत्तों से बनी झोपड़ी में जिंदगी कट रह रही थी. इसी बीच शारदा ने सोचा कि क्यों नहीं महिला समूह बनाकर जनवितरण प्रणाली की दुकान ले ली जाये. इसके बाद हरिजन महिला समिति बनाकर दुकान ले ली. यहां से समय ने करवट बदला और मंजिल दिखने लगी. हालांकि, शारदा तमाम झंझावतों से जूझते हुए लोगों की तीमारदारी में लगी रही. कभी महिला समूह बना कर तो कभी सिलाई और पेंटिंग का प्रशिक्षण देकर.
इसके बाद 2014 का साल गम और खुशी लेकर आया. खुशी इस बात की कि इस साल पंचायत समिति सदस्य पद का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. और गम इस बात का कि चुनाव से चंद दिनों पहले पति की मौत हो गयी. हालांकि, इससे पहले वार्ड सदस्य का चुनाव लड़ चुकी थीं, लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद 2022 में पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत कर प्रमुख बन गयीं. शारदा कहती हैं कि गरीबी, भूख, जिल्लत क्या होती है कोई उनसे पूछे. यही कारण है कि जनसमस्याओं को लेकर हमेशा मुखर रहीं. पंचायत के लोगों का राशन कार्ड बनाने से लेकर विधवा पेंशन और वृद्धा पेंशन दिलाने में हमेशा आगे रहीं. बकौल शारदा की मानें तो संजय गुप्ता जो कि चार भाई हैं. उनकी कोई बहन नहीं है. इसलिए उन्होंने उसे अपनी बहन बना लिया और वचन दिया कि हर कदम पर साथ देंगे, जो कि उन्होंने दिया भी.
आज पेटरवार प्रमुख बनने के बाद भी अलसुबह से क्षेत्र में भ्रमण करना और लोगों की समस्याएं सुनकर हर संभव दूर करना पहली प्राथमिकता है. कोरोनाकाल में भी लोगों को टीका दिलाने से लेकर, सीसीएल की मदद से गरीबों के बीच खाना और कपड़े बांटने का काम किया. इन कामों से प्रभावित होकर बेरमो विधायक जयमंगल सिंह ने भी साथ दिया. कहती हैं आज जो कुछ भी हूं लोगों की बदौलत हूं तो अब मेरी जिंदगी मेरी नहीं रही, जनता के नाम कर चुकी हूं.