अभिनय सम्राट दिलीप कुमार (Dilip Kumar) इंडस्ट्री के मेथड एक्टर्स माने जाते हैं. वे हर सीन को कई बार रिहर्सल करते थे उसके बाद ही उस सीन को परफॉर्म करते थे. मामूली से मामूली सीन की भी वह कई बार रिहर्सल करते थे. यह सिलसिला उन्होंने अपनी आखिरी फ़िल्म किला तक जारी रखा था.
दिलीप कुमार ने अपने इंटरव्यूज में बताया कि उन्हें यह सीख अभिनेत्री और बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से मिली थी. जब उन्होंने मुझे एक्टिंग के लिए साइन किया तो उन्होंने साथ में ये नसीहत भी दी कि रिहर्सल करना बहुत ज़रूरी है. उसके बिना कैमरे के सामने आना गलत है क्योंकि रिहर्सल से ही आप थोड़ा बहुत अपने किरदार के करीब जा सकते हैं.
यह बात मैंने गांठ बांध ली थी और हर सीन का मैं रिहर्सल करने के बाद कैमरे का सामना करता था. सिर्फ सेट पर ही नहीं मैं घर से ही मानसिक तैयारी के साथ सेट में जाया करता था. बाद के वर्षों में अपने ज़्यादा रिहर्सल और बेस्ट टेक पाने की फिर से टेक लेने की वजह से मैं कुख्यात भी हो गया था लेकिन मैंने देविका रानी की सीख को कभी नहीं भुलाया.
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गौरतलब है कि फ़िल्म दीदार में एक अंधे युवक के किरदार को परफेक्ट तरीके से निभाने के लिए दिलीप कुमार बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन के अंधे भिखारी के साथ समय बिताया था ताकि वो उसकी दुनिया को समझ सकें. फ़िल्म कोहिनूर के एक गीत के लिए उन्होंने बाकायदा सितार बजाने की प्रैक्टिस की थी.