आज 1995 में रिलीज हुई सुपरहिट फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को रिलीज हुए पूरे 25 साल पूरे हो गए हैं. इस अवसर पर यशराज फिल्म्स इसे एक उत्सव के रूप में मना रही है. शाहरुख खान, काजोल, अमरिश पूरी, अनुपम खेर, परमीत सेठी, फरीदा जलाल, अचला सचदेव के अभिनय से सजी इस फिल्म को दर्शकों का 25 साल से प्यार मिल रहा है, आपको बता दें ये फिल्म भारतीय हिंदी सिनेमा में चलने वाली सबसे बड़ी है. मुंबई से मराठा चित्र मंदिर में ये फिल्म करीब 20 सालों तक चली है. इस फिल्म से जुड़ी एक दिलचस्प बात काफी कम लोगों को पता है कि फिल्म के निर्माता यश चोपड़ा को इस फिल्म का क्लाइमैक्स घिसा पिटा लगा था. आपको बता दें यश चोपड़ा को फिल्म का क्लाइमैक्स जरा भी पसंद नहीं था.
‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में जब रेलवे स्टेशन पर अमरीश पुरी का किरदार चौधरी बलदेव सिंह अपनी बेटी सिमरन (कजोल) का हाथ छोड़ता है और कहता है ‘जा सिमरन जा” इस सीन ने सभी का दिल जीत लिया. डीडीएलजे में देश-विदेश के खूबसूरत नजारों को हमारे पास पहुंचाने वाले सिनमैटोग्राफर मनमोहन सिंह याद करते हैं, ‘‘शुरुआत में यश जी सहित कई लोगों को यही लग रहा था कि क्लाइमैक्स नहीं चलेगा. हमें लगा था कि फिल्म इतनी अच्छी है, लेकिन अंत में आते-आते वही घिसी-पिटी रह जाती है. बेहद साधारण सा अंत है जहां बाप अपनी बेटी का हाथ छोड़ देता है। शूटिंग के पहले नहीं, उसके बाद भी इसे लेकर हम कुछ खास संतुष्ट नहीं थे.”
डीडीएलजे राज और सिमरन (शाहरूख खान और काजोल के किरदार) की प्रेम कहानी है। दोनों को यूरोप घूमते हुए प्यार हो जाता है, लेकिन जब वह पंजाब लौटते हैं तो अपनी परंपराओं को नहीं भुलाते, उन्हें याद रखते हैं और अपने परिवार को मनाने की कोशिश करते हैं. फिल्म के 25 साल पूरे होने पर सिंह याद करते हैं कि कैसे जब आदित्य चोपड़ा ने उन्हें अपनी पहली फिल्म की कहानी सुनायी थी. डीडीएलजे फिल्माते वक्त सिंह कुछ 46 साल के रहे होंगे, वह कहते हैं कि फिल्म के क्लाइमैक्स को लेकर उनकी चिंता तब दूर हुई जब उन्होंने दर्शकों को तालियां और सीटियां बजाते हुए देखा.
वह कहते हैं, ‘‘यश जी को कुछ दिक्कत थी, लेकिन लगने लगा था कि यह काम करेगा। आदित्य भी मानते थे कि यह परपेक्ट नहीं हैं, लेकिन उन्होंने हमसे कहा था कि और कोई रास्ता नहीं है, फिल्म को यहीं खत्म होना होगा। लेकिन जब हमने लोगों को तालियां और सीटियां बजाते हुए सुना, हम सभी को सुखद आश्चर्य हुआ. हमें जरा भी एहसास नहीं था कि यह चलेगा, दशकों बाद भी लोगों के दिमाग में बने रहने की बात तो दूर थी.” ‘उमराव जान’, यश चोपड़ा की ‘डर’ और ‘बाजीगर’ जैसी फिल्मों के लिए संवाद लिख चुके जावेद सिद्दीकी के लिए डीडीएलजे 50वीं फिल्म थी.
सिद्दीकी ने कहा कि आदित्य चोपड़ा के स्क्रीप्ट में ऐसे रोमांस की कहानी थी जो किसी भी दौर के लिए सही है. वह बताते हैं कि कई लोग ऐसी रोमांटिक, म्यूजिकल फिल्म के लिए तैयार नहीं थे, जो कई महादेशों में शूट की गयी हो. 78 वर्षीय पटकथा लेखक ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘जब फिल्म बन रही थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी. कई लोगों के मन में संदेह था। यश राज फिल्म के बेहद महत्वपूर्ण व्यक्ति ने मुझसे कहा था कि यशजी से कहो की फिल्म में ऐसी बेवकूफी ना करें. उन्होंने यह भी कहा था कि यह फिल्म नहीं है, यात्रावृतांत है.”
लेकिन डीडीएलजे ने हिन्दी सिनेमा में रोमांस को नयी परिभाषा दी और उसे ना कहने वालों को गलत साबित कर दिया. इतना ही नहीं रिलीज से लेकर मार्च, 2020 तक लॉकडाउन होने से पहले मुंबई के मराठा मंदिर में डीडीएलजे का शो चलता रहा, जो सिर्फ महामारी में सिनेमाघर बंद होने के कारण बंद हुआ। देश में इतने दिन तक पर्दे पर रहने वाली एक अकेली फिल्म है. सिद्दीकी का कहना है कि फिल्म की इस लंबी सफलता का श्रेय उसकी कहानी, जतिन-ललित के संगीत और शाहरूख-काजोल के बीच की केमिस्ट्री को मिलना चाहिए. वह कहते हैं, ‘‘उन्होंने किरदारों को जिंदा कर दिया। कहानी इतनी प्रभावशाली है कि आज भी आप फिल्म देखते हैं तो भूल जाते हैं कि काजोल और शाहरूख के बच्चे बड़े हो गए हैं. वह बस आपको वक्त के साथ बांध लेती है और आप वहीं रूक जाते हैं. यही सबसे बड़ी खूबी है.”
फिल्म के बाद उसके कुछ डायलॉग ‘पलट’, ‘जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी’ और ‘बड़े बड़े देशों में, ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं’ से लेकर ‘सेनोरिटा’ ने समाज में अपनी पक्की जगह बना ली. वह कहते हैं कि आज जिन लाइनों के बगैर फिल्म के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है, वह शुरूआत से फिल्म का हिस्सा नहीं थीं. जैसे राज पूरी फिल्म में सिमरन को ‘सेनोरिटा’ कहता है जो स्पैनिश में लड़कियों के लिए कहा जाता है.
फिल्म में यह शब्द डीडीएलजे के समय पर नहीं आया, बल्कि यह सिद्दीकी और काजोल की पहली मुलाकात का नतीजा था, जब वह अभिनेत्री को ‘बाजीगर’ की कहानी सुनाने उनके घर गए थे. सिद्दीकी बताते हैं, ‘‘जब मैं उनसे मिला, उन्होंने स्पैनिश फ्रॉक पहना हुआ था और ‘स्पैनिश ब्यूटी’ लग रही थीं. उस वक्त मैंने सेनोरिटा कह कर उनकी तारीफ की थी और वह मेरे जहन में रह गया। फिल्म में जब यह तय कर रहा था कि आखिर राज किस नाम से सिमरन को पुकारेगा, ‘लेडी’, ‘डार्लिंग’, ‘बेबी’, क्या कहेगा वह? तब मुझे याद आया ‘सेनोरिटा’.”
वैसे तो डीडीएलजे की पूरी कहानी राज और सिमरन के साथ मिलकर लड़की के पिता को प्यार के लिए राजी करने के बारे में है, लेकिन कहानी में सिमरन की मां, फरीदा जलाल का किरदार, एक बेहद ऊंची सोच वाली, समझदार और बेटी का साथ देने वाली महिला का है. सिद्दीकी का कहना है कि एक सीन में जब सिमरन की मां पंजाब में उससे राज के बारे में बात करती है, उस वक्त के सभी डायलॉग बिना किसी बैकग्राउंड सीन के यह बात दर्शकों के मन तक पहुंचाते हैं कि कैसे एक मां चाहती है कि उसकी बेटी को वह मौका मिले, आजादी मिले जो कभी वह अपने लिए चाहती थी, लेकिन उसे कभी नहीं मिला.
उस वक्त उसके दर्द को सभी महसूस कर पाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि लाजो और सिमरन का यह संवाद भोजपुरी की एक फिल्म का है जिसे अभिनेता-निर्माता नाजिर हुसैन ने बनाया था. सिद्दीकी कहते हैं, ‘‘उन्होंने मां-बेटी का सीन लिखा था, उससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली. मैंने यहां भी कुछ वैसा ही करने का सोचा. इसमें बड़ी अच्छी लाइन है, बेटी जब बड़ी हो जाती है तो दोस्त बन जाती है.”
Posted By: Shaurya Punj