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Exclusive : बोले ‘बी ए पास’ एक्‍टर दिब्येंदु- नेपोटिज्म फेवेरेटिज्म इन बातों का कोई अंत नहीं

actor dibyendu bhattacharya on nepotism favoritism : देव डी, चिटगांव,बी ए पास जैसी फिल्मों में नज़र आ चुके अभिनेता दिब्येंदु भट्टाचार्य इन दिनों डिजिटल माध्यम में भी काफी सराहे जा रहे हैं.लालबाजार के बाद वह जल्द ही सोनी लिव की वेब सीरीज अनदेखी में अहम भूमिका में दिखेंगे.लगभग दो दशक से बॉलीवुड में सक्रिय दिब्येंदु अपनी जर्नी से खुश हैं.उन्हें किसी से शिकायत नहीं.

dibyendu bhattacharya on nepotism : देव डी, चिटगांव,बी ए पास जैसी फिल्मों में नज़र आ चुके अभिनेता दिब्येंदु भट्टाचार्य इन दिनों डिजिटल माध्यम में भी काफी सराहे जा रहे हैं.लालबाजार के बाद वह जल्द ही सोनी लिव की वेब सीरीज अनदेखी में अहम भूमिका में दिखेंगे.लगभग दो दशक से बॉलीवुड में सक्रिय दिब्येंदु अपनी जर्नी से खुश हैं.उन्हें किसी से शिकायत नहीं. ये ज़रूर कहते हैं कि उनका बेस्ट आना अभी बाकी है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

वेब सीरीज अनदेखी में आपको क्या खास लगा ?

अनदेखी असल घटनाओं पर आधारित कहानी पर है. स्क्रिप्ट की खासियत है कि यह बहुत ही फ़ास्ट नरेटिव है.पढ़कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. हर एपिसोड बहुत ही अन प्रेडिक्टेबल है.अभी क्या होने वाला है.ये सवाल आपके जेहन में आता रहेगा. कहानी में मेरे किरदार की जर्नी को बहुत ही बेहतरीन तरीक़े से दर्शाया गया है. डीएसपी के किरदार में हूं. वो एक महीने बाद रिटायर होने होने वाला है.मेरा किरदार हीरोइक नहीं है बल्कि रियल है.आपको ऐसे कई पुलिस वाले अपने आसपास मिल जाएंगे.ऐसे किरदार करने में बहुत मज़ा आता है.

किन असल घटनाओं का सीरीज में जिक्र हुआ है ?

ये सीरीज सोसाइटी का असल चेहरा दिखाती है.ये सीरीज दो मर्डर्स पर है. एक कम्युनिटी जो सालों साल से अन्याय बर्दाश्त कर रही लेकिन अब वो बर्दाश्त नहीं करना चाहती.एक मर्डर बदला है तो वही एक कम्युनिटी जो अपनी अय्याशी और वर्चस्व के लिए किसी का भी मर्डर कर सकती हैं.उनके लिए लोगों की ज़िन्दगियों का कोई मोल नहीं है. दो क्लास की जर्नी को दिखाया है.

डिजिटल माध्यम में क्या आप जैसे अच्छे कलाकारों को ज़्यादा मौके मिलते हैं ?

डिजिटल माध्यम दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है.अच्छा कंटेंट बन रहा है तो अच्छे एक्टर्स को वो ढूंढ भी रहे हैं. मुझे भी डिजिटल माध्यम की वजह से लगातार अच्छा काम मिल रहा है.अभी कोरोना के टाइम में तो मनोरजंन का एकमात्र साधन डिजिटल बना हुआ है.डिजिटल आनेवाले समय में और सशक्त होगा. डिजिटल माध्यम ने सिनेमा को लोगों के घर तक पहुंचा दिया है.टीवी के साथ क्या होता था कि अगर एक एपिसोड ऑफ एयर हो गया तो हो गया.थिएटर में हर रोज़ नया होता है.उसका कोई आर्काइवल वैल्यू नहीं होता है. एकमात्र सिनेमा का अर्कावाइवल वैल्यू होता है लेकिन डिजिटल आ जाने के बाद आपका जब भी मन हो आप घुमा फिराकर उसको देख सकते हैं.

क्या आपको लगता है कि आपके कैरियर में आपकी अनदेखी हुई है ?

मुझे जो चाहिए था.मुझे मिला है.उसके लिए मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं.आदमी कितना कम काम करता है या ज़्यादा इससे ज़्यादा मेरे लिए अहम है कि कितना क्वालिटी वाला काम करता है. मुझे हमेशा क्वालिटी वाला काम मिला. मैं कभी ये सब नहीं सोचता कि मुझे ये मिलना चाहिए.मैं बहुत लंबे रास्ते से इस प्रोफेशन में आया हूँ.मैं कोलकाता में पहले एक थिएटर करता था.मुझे लगा कि एक्टिंग को सीखना ज़रूरी है फिर मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में गया.वहां शिद्दत से पढ़ाई किया.1997 में मैंने ग्रेजुएट होने के बाद फिर एनएसडी के साथ मिलकर तीन साल तक थिएटर किया फिर मैंने मुम्बई की ओर रुख किया. मानसून वेडिंग मेरी पहली फ़िल्म थी. मंगल पांडेय,देव डी, ब्लैक फ्राइडे जैसी फिल्में किया.उन फिल्मों ने दूसरी फिल्मों से जोड़ा.मैं नहीं सोचता कि मैं इसका शिकार हुआ उसका शिकार हुआ. मुझे पता है कि नेपोटिज्म और फ़ेवरेटिज्म ऐसी बातों का कोई अंत नहीं है. मेरी सोच है कि अगर मेरी किस्मत में वो रोल है तो आएगा ही नहीं आया मतलब मेरा था ही नहीं.

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क्या आप बतौर एक्टर संतुष्ट हैं ?

मुझे लगता है कि एक सच्चा एक्टर कभी संतुष्ट अपने काम से नहीं हो सकता है.आप मुझसे पूछेंगी कि मेरा पसंदीदा रोल क्या है तो मैं कहूंगा कि शायद आनेवाली कोई फ़िल्म मेरे सामने ऐसी कोई चुनौती रखे. जिससे वो मेरा पसंदीदा रोल बन जाए. मैं जब एक्टिंग करता हूं तो मैं मॉनिटर नहीं देखता हूं.मैं डायरेक्टर और कैमरा के पीछे जो आंखें हैं।उनपर भरोसा करता हूं.ये उनका माध्यम है.मैं एक्टिंग को बहुत एन्जॉय करता हूं.

रिजेक्शन क्या आपको परेशान नहीं करते हैं ?

रिजेक्शन इंडस्ट्री नहीं ज़िन्दगी का हिस्सा है. अगर आप रिजेक्ट नहीं हुए.आपकी आलोचना ही नहीं हुई तो फिर क्या वो ज़िन्दगी है. स्कूल,कॉलेज हर फेज में हमें आलोचना और रिजेक्शन मिलता ही है तो फिर इंडस्ट्री में मिलने से क्यों हाय तौबा मचती है. ज़िन्दगी का मज़ा सफलता और असफलता दोनों से है.

आप खुद को इतना पॉजिटिव कैसे रख पाते हैं ?

मैं बहुत ही बिंदास रहता हूं. कभी ज़्यादा परेशानी हुई तो दो तीन बार बस गहरी सांस ले लेता हूं. कैटेगरी बना लेता हूं. कैसे डील करना है.डील तो करना ही पड़ता है आखिरकार यही ज़िन्दगी है.

Posted By: Budhmani Minj

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