Sanjana Sanghi interview dil bechara : दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की आखिरी फ़िल्म दिल बेचारा (Dil Bechara) जल्द ही डिजिटल पर दस्तक देने वाली हैं. फ़िल्म में सुशांत की लीडिंग लेडी संजना सांघी (Sanjana Sanghi) हैं. जो इस फ़िल्म से बतौर अभिनेत्री अपने कैरियर की शुरुआत कर रही हैं. वह इस फ़िल्म से और पिछले एक महीने में जो कुछ भी हुआ है. उसे ज़िन्दगी को बदल देने वाला अनुभव करार देती हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
इम्तियाज़ की फ़िल्म रॉकस्टार में बाल कलाकार से मुकेश छाबड़ा की दिल बेचारा में लीडिंग लेडी कैसे इस सफर को देखती हैं ?
‘रॉकस्टार’ में 13 साल की बच्ची थी नरगिस फाखरी की बहन का रोल था. उस फिल्म से जुड़ना मेरी किस्मत था. मैं 6 साल की उम्र से एश्ले रोबो के डांस इंस्टिट्यूट में डांस सीख रही हूं.जिसकी वजह से स्कूल के नाटकों का भी हिस्सा बनने लगी.ऐसे ही एक नाटक में मुकेश छाबड़ा ने मुझे देखा और मेरी टीचर से मेरा नंबर लिया और मैं एक ऑडिशन में रॉकस्टार से जुड़ गयी. मुझे एक्टिंग में मज़ा आया.पूरा प्रोसेस काफी यादगार रहा.स्कूल किया कॉलेज भी लेकिन साथ में कई सारी विज्ञापन फ़िल्म भी.मैं दोनों को ही एन्जॉय करती थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया.गोल्ड मेडलिस्ट भी हूं.कई बार मेरी नींद पूरी नहीं पाती थी लेकिन इसके बावजूद मैं दोनों से जुड़ी रही. बीच में छोटे मोटे रोल्स किए अब मुकेश सर की फ़िल्म में लीडिंग लेडी.कभी कभी सपने सा लगता है।उन्होंने ही रॉकस्टार के लिए मुझे ढूंढा था.उनकी पहली फ़िल्म में मैं।लगता है जैसे लाइफ फुल सर्किल पर आ गयी.
कैसे इस फ़िल्म से जुड़ना हुआ ?
मुझे मुकेश सर का फ़ोन आया था. कॉलेज ग्रेजुएट पूरा किए दो महीने ही हुए थे. उन्होंने बोला कि एक फ़िल्म के लिए ऑडिशन देना है मुम्बई आ जाओ तुम. मुम्बई आने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि ये मुकेश सर के निर्देशन की पहली फ़िल्म होगी.जब मुझे मालूम पड़ा कि ये फ़िल्म फ़ॉल्टस इन आवर स्टार्स का हिंदी रिमेक होगी तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि मैं उस नावेल को कई बार पढ़ चुकी हूं.उस पर हॉलीवुड फिल्म जब बनी थी.मैं 16 साल की थी.मैं ऑब्सेशड थी उस फिल्म से.उस फिल्म के हिंदी रिमेक की लीडिंग लेडी मैं.ये बात कॉन्ट्रैक्ट साइन करते हुए मुझे इतनी खुशी दे रहा था कि मैं आपको बता नहीं सकती हूं.
फ़िल्म में आपका लुक काफी अलग है,काफी चैलेंजिंग किरदार से आप शुरुआत कर रही हैं ?
ये वो फ़िल्म है जो दिखा देगा कि एक्ट्रेस सिर्फ ब्लो ड्राई हेयर, महंगे कपड़े और एक्सेसरिज से नहीं बनती है. अगर आप में कला की समझ है और आपने उस पर मेहनत की है तो आप स्क्रीन पर चपटी हुई पोनी टेल,आंखों में चश्मा चढ़ाकर और बीमार दिखते हुए भी प्यारे लग सकते हो. इस फ़िल्म ने मेरे सामने एक्टर के तौर पर ऐसा बेंचमार्क बनाया है कि अब मैं अपनी हर फिल्म को दिल बेचारा से कंपेयर करूँगी. अगर वो मुझे इस फ़िल्म से ज़्यादा चुनौती देगा तो ही मुझे करने में मज़ा आएगा. वरना नहीं आएगा.
आपके किरदार के लिए सबसे चैलेंजिंग क्या रहा ?
कैंसर के किरदार पर रिसर्च किया. कई मरीजों से भी मिली.मेरे लिए सबसे चैलेंजिंग जो था.वो ये कि मुझे बंगाली की तरह परदे पर दिखना और बोलना था.मैं दिल्ली से हूं.मेरे पापा पंजाबी और माँ गुजराती.बांग्ला भाषा से दूर दूर तक मेरा कोई कनेक्शन नहीं रहा.ऐसे में निर्देशक मुकेश छाबड़ा चाहते थे कि फ़िल्म में जो मेरी माँ और पिता हैं स्वास्तिका और साश्वत दा उनके साथ बांग्ला में बात कर सकूं. मैंने बहुत मेहनत की. मेरे साथ एनएसडी का एक डिक्शन कोच थी.जिनके साथ मैं 8 घंटे का क्लास कई महीने तक किए.जिसके बाद मैंने बॉडी लैंग्वेज और भाषा पर पकड़ हासिल की.
जमशेदपुर में शूटिंग का अनुभव कैसा रहा ?
अपने दूसरे प्रोजेक्ट्स की वजह से मैंने जमेशदपुर में समय गुज़ारा है तो मैं जमशेदपुर को जानती थी. इम्तियाज़ सर वही से हैं तो रॉकस्टार के वक़्त भी मैं गयी थी.उनके माता पिता हमें कबाब खिलाते थे.वहां के लोगों के पास इतना प्यार है देने के लिए सुशांत भी यही बोलता था.उसने धौनी की शूटिंग रांची में की थी.वो बोलता था कि छोटे शहर के लोग आपको अपना बना लेते हैं.आप 50 दिन वहां रहते हो तो वो आपका होटल जानने लगते हैं. कहाँ खा रहे हो पी रहे हो. सब वो फॉलो करने लगते हैं.दिल बेचारा का जब लास्ट डे शूट का था.एक कॉलेज में हम शूट कर रहे थे.तकरीबन 5 हज़ार लड़कियां आ गयी थी.हमें चीयर किया. हमें बाय बोला.बहुत ही स्पेशल था.
सुशांत के साथ पहली मुलाकात कैसी थी ?
रीडिंग में हम पहली बार मिले थे. शूटिंग शुरू होने के एक महीने पहले मुकेश सर के ऑफिस में मिले थे. सुशांत को देखते ही लगा था कि हमारी खूब जमने वाली है. हमारी पसंद एक सी है. दोनों को पढ़ाई का बहुत शौक है. खाने में भी दोनों आगे. सिनेमा से भी बहुत लगाव दोनों का है. उसके साथ समय कैसे बीत जाता था पता भी नहीं चलता था इतना कुछ बातें करने को होता था.
शूटिंग के दौरान फ़िल्म के अलावा क्या बातें होती थी आप दोनों में ?
अगर आप उनसे मिली हैं और उनका इंटरव्यू किया हो तो आपको ये बात पता होगी कि वो बहुत कैजुवली बुक्स और फिलॉस्फर को कोट्स करते हैं. चूंकि मैंने भी वो किताबें पढ़ी होती थी और लेखकों को जानती थी तो मैं भी अपना इनपुट्स देती फिर तो जो हमारा डिस्कशन शुरू हो जाता था कि क्या कहने. पेरिस की शूटिंग के दौरान तो हम दोनों बच्चे बन गए थे जो भी ब्राऊनी, क्रोसा या चॉकलेट दिखी हमने जमकर खायी थी. दोनों को डांस का बहुत शौक है तो सीन के बीच बीच में गाना चलाकर हम नाचने लगते थे.
को-एक्टर के तौर पर सुशांत कितने मददगार थे ?
बहुत ज़्यादा, मुझे याद है जमशेदपुर की शूटिंग में एक रात में हमारा सीन है. उस सीन में मेरा चार पेज का मोनोलॉग था. रात को दो बजते बजते मेरी आँखें बंद होने लगी थी तो सुशांत ने मेरा ख्याल रखा. मुझे मोटिवेट किया. उसने अपनी टीम को बोला कि मेरी पसंदीदा कॉफी शॉट के बीच में मुझे दे. टेक से पहले सुशांत ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लेकर वॉक पर गया. उसके बाद शॉट देने को कहा और शॉट अच्छे से हो गया. वो बेहतरीन को एक्टर था.
सुशांत को किस तरह से याद रखना चाहेंगी ?
सुशांत का जाना मेरा पर्सनल लॉस है. एक महीने में सबकुछ मान लेना आसान नहीं है. मेरे लिए अभी यही मानना मुश्किल है कि सुशांत हमारे बीच नहीं रहा.
सुशांत के फैंस को क्या कहेंगी ?
मैं सुशांत की खुद भी फैन हूं और मैं उनके और सभी दूसरे फैंस से कहूंगी कि जो भी हमें दुख या गुस्सा आ रहा है. उसे हम प्यार और सेलिब्रेशन में कन्वर्ट कर दे. दिल बेचारा को सुशांत के द्वारा दिया गया आखिरी तोहफे के तौर पर अपना लें.
इंडस्ट्री को लेकर इनदिनों बहुत नेगेटिव बातें आ रही हैं आप खुद आउटसाईडर हैं आपका क्या कहना है ?
आप कौन हो. आपका उद्देश्य क्या है और आपकी सच्चाई क्या है. अगर ये तीन चीज़ें आपको पता है ना तो बाकी की जो भी नेगेटिविटी है वो ज़्यादा मायने नहीं रखती है. मैं नहीं कहती कि मैंने बहुत कुछ अचीव कर लिया लेकिन मैं अपने रास्ते को साफ रखूंगी. मेरी जर्नी में जो आते हैं. वो मुझे पॉजिटिवली याद रखें. ये कोशिश होगी. सच कहूं तो इस एक महीने में खुद को और ज़्यादा मैंने मैच्योर होते देखा है. पहले कोरोना उसके बाद सुशांत का जाना मुझे बहुत कुछ सीखा गया है. मैं ये भी कहूंगी कि मौजूदा जो हालात हैं उससे लोग इतने नेगेटिव हो गए हैं. वरना लोग इतने नेगेटिव नहीं थे.
Posted By : Budhmani Minj