बॉलीवुड कलाकार रजत कपूर और विनय पाठक रविवार को रांची में आयोजित टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट कार्यक्रम का हिस्सा थे. यहां उन्होंने ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म फीचर फिल्म को खत्म कर देगा या पुनर्जीवित करेगा?’ इस विषय पर अपने विचार रखे. रजत कपूर ने कहा कि सिनेमा हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. मेरे पिताजी फिल्मों के बड़े प्रेमी थे और मैंने उनके साथ कई फिल्में देखी. उस समय की कुछ फिल्में मुझे याद है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया.
रजत कपूर ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार का जिक्र करते हुए कहा कि इस फिल्म ने उन्हें काफी प्रभावित किया. मैं उस समय 14 साल का था. सलीम-जावेद की राइटिंग में एक अलग जादू था, बच्चन साहब की एक्टिंग में अलग बात थी. वहीं उनका ओटीटी को लेकर कहना है कि अभी इस प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिसे हम कहें कि ये सबसे अलग है. किसी आशावाद से चीजें शुरू होती है. फिर एक ही तरह के कंटेंटे, एक ही तरह का सिनेमा बनने लगता है जैसा आप देख रहे हैं, जो सही नहीं है और मैं इसे सपोर्ट नहीं करता.
वहीं विनय पाठक का कहना है कि, ‘मुझे याद है जब टेलीविजन की शुरुआत हुई थी, उस समय भी ऐसी बहस छिड़ी थी अब तो टीवी आ गया अब सिनेमाघरों में जाकर फिल्म कौन देखेगा? घर पर ही फिल्में देख सकते हैं. ओटीटी की शुरुआत भी एक वादे के साथ हुई है और हम पश्चिम से बहुत ज्यादा प्रभावित है. उनका एक बाजार है कि वो कैसे कंटेंट बनाते हैं. अभी यह मानना थोड़ा मुश्किल है कि हमें बहुत बेहतर कंटेंट बना रहे हैं. हम सिर्फ ओटीटी पर ही क्यों ऊंगली उठायें, सिनेमा में भी पिछले 20 सालों में हम उन 10 फिल्मों के नाम नहीं बता सकते जिन्होंने हमें हैरान किया हो.
हालांकि रजत कपूर ने कहा कि, ओटीटी के माध्यम से काफी काम हो रहा है. अच्छी पटकथाएं लिखी जा रही हैं, अच्छे कलाकार हैं, इसने हजारों कलाकारों को सुनहरा मौका दिया है. टेक्नीकली भी काम हुआ है और हर कोई इसमें व्यस्त है. इस हिस्से की मैं तारीफ करता हूं. लेकिन विनय पाठक ने कहा कि, रजत ने कहा स्क्रिप्ट पर काम हो रहा है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता. पहले आइडियाज आते थे और उसपर फिल्में बन जाती थीं. अभी बाउंड स्क्रिप्ट लिखी जाती है क्योंकि कोरपोरेट कल्चर आ गया है. स्क्रिस्ट को आप कमिटी को देंगे वो चार लोग पढ़ेंगे जिन्होंने कभी सिनेमा नहीं बनाया है. फिर वो फाइनेंस डिपार्टमेंट को जायेगा फिर कलाकारों के पैसों पर बात होगी. इसके बाद फिल्म का काम शुरू होता है. मैं ये नहीं कहता कि हमेशा ऐसा होता लेकिन अक्सर ऐसा देखने को मिलता है. वहां विकल्प की हम बात ही नहीं कर सकते.उन्होंने कहा कि, ओटीटी से एक फायदा हुआ है कि इससे जागरूकता बढ़ी है. जो हमारा कल का आम दर्शक था उसको यह पता नहीं था कि अच्छा सिनेमा किसे कहते हैं. वो एंटरटेन हो गया तो ठीक है.
Also Read: फिल्म ‘शोले’ में कभी था ही नहीं सांभा का रोल… इस वजह से जोड़ा गया किरदार, जावेद अख्तर ने बताई वजह
रजत कपूर ने अपना एक यादगार किस्सा साझा किया. उन्होंने बताया, ‘दिल्ली यूनिवर्सिट के पीछे एक हॉल खुला था. हमने सभी के 6 टिकट खरीदे लेकिन दो लोग आये नहीं तो दो टिकट बच गये. 8 रुपये का टिकट था मैंने 12-12 में बेच दिये. फिर मुझे लगा ये अच्छा काम है. इसके बाद हर हफ्ते हमने ऐसा किया. लेकिन जब फिरोज खान की कुर्बानी रिलीज हुई, तो वहां मुझे पुलिसवालों ने पकड़ लिया. बस वो आखिरी समय था.’