लॉकडाउन में अपने घायल पिता को गुरुग्राम से दरभंगा साइकिल से ले जाने वाली ज्योति कुमारी देश ही नहीं बल्कि विदेशी मीडिया में भी सुर्खियां बटोर रही हैं. मिस ‘टनकपुर’ और ‘पीहू’ जैसी फिल्में बना चुके निर्देशक विनोद कापड़ी अब ज्योति कुमारी की इस यात्रा पर फ़िल्म बनाने जा रहे हैं. उन्होंने ज्योति के पिता से फ़िल्म बनाने के लिए कानूनी तौर पर राइट्स ले लिए हैं. उनकी इस फ़िल्म पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
फीचर फ़िल्म या वेब सीरीज किसकी प्लानिंग है ?
फीचर फिल्म बनेगी या वेब सीरीज दोनों में से कोई एक चीज़ बनेगी. कानूनी तौर पर हमने राइट्स ले लिए हैं. 10 दिन बाद मैं उनसे मिलने जाऊंगा. थोड़ा उनका परिवार सेटल हो जाए. अभी तो मीडिया और नेताओं की भीड़ वहां है. थोड़ा मामला नार्मल हो तो जाऊंगा.10 से 15 दिन उनलोगों के साथ बिताऊंगा. उनके यात्रा की कहानी को पूरा सुनूंगा. उसके बाद फ़िल्म के लिए कहानी पर काम करूंगा.
ज्योति कुमारी और उनके पिता ने साइकिल से ये यात्रा पूरी नहीं की है, ट्रक का इस्तेमाल ज़्यादा किया है इस तरह के जो सवाल उठाए जा रहे हैं उनपर आपका क्या कहना है ?
मुझे इस बात में कोई परेशानी नहीं लगती है. मैंने अभी एक डॉक्यूमेंट्री की सात मज़दूरों की. वो गाज़ियाबाद से सहरसा साईकल से आए. 1232 किलोमीटर की यात्रा थी. मैं पूरे सात दिन उनके साथ ही था. उनलोगों ने भी बीच में ट्रक का इस्तेमाल किया. ये बात सच है कि लोग 100 किलोमीटर पैदल चलने के बाद मदद मांगते हैं किसी ट्रक वाले से फिर ट्रक वाला 30 से 40 किलोमीटर तक आगे छोड़ देता है. अगर ज्योति कुमारी ने दो से तीन बार ट्रक का इस्तेमाल किया भी है तो कोई बड़ी बात नहीं है. करना ही चाहिए था. मुख्य बात ये है कि 15 साल की बेटी ने अपने बीमार पिता को गुरुग्राम से दरभंगा साईकल से ले जाने का फैसला किया. ये फैसला करना ही अपने आप में अद्भुत साहस की कहानी है. उस साहस ने मुझे फ़िल्म बनाने को मजबूर किया.
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इस कहानी पर आप किसी खास एक्टर के साथ फ़िल्म बनाने की ख्वाइश रखते हैं?
अभी कुछ भी कहना जल्दीबाज़ी होगी लेकिन अगर आप मेरी विशलिस्ट की बात करें तो ज्योति कुमारी 15 साल की बच्ची हैं तो उनका रोल कोई 15 साल की बच्ची ही करेगी हां पिता के रोल के लिए मेरी ख्वाइश फरहान अख्तर, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी या फिर आमिर खान को अप्रोच करने की है. आमिर इससे पहले पिता और पुत्री वाली फिल्म दंगल की थी.
ज्योति कुमारी पर इनदिनों नेशनल ही इंटरनेशनल मीडिया की भी नज़र है खासकर इवांका ट्रम्प के ट्वीट के बाद. आपने फ़िल्म बनाने का फैसला कब लिया?
आपको जानकर हैरानी होगी कि इवांका ट्रम्प के ट्वीट के डेढ़ दिन पहले ही हमारे एक प्रतिनिधि ज्योति कुमारी के पिता से मिल चुके थे और फ़िल्म पर बातचीत भी कर चुके थे. दरअसल जब मैंने अखबार में ज्योति कुमारी की खबर पढ़ी थी. उसी दिन मैंने तय कर लिया कि मैं इस पर फ़िल्म बनाऊंगा. मैंने अपने एक पटना के दोस्त के ज़रिए ज्योति कुमारी के पिता से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि दो तीन का समय दीजिये लेकिन इसी बीच इवांका का ट्वीट आ गया और नेताओं की भीड़ लग गयी. ज्योति और उनके पिता को समझ ही नहीं आ रहा था कि उनके जीवन में क्या हो गया हैं. कई और लोगों ने फ़िल्म बनाने के लिए उनसे संपर्क किया चूंकि हमलोगों ने सबसे पहले किया था इसलिए उन्होंने हमें राइट्स दे दिए.
ज्योति कुमारी की कहानी पर फ़िल्म बनाना क्यों आप ज़रूरी मानते हैं?
मुझे लगता है कि ऐसी कहानियां आनी चाहिए क्योंकि हमने मज़दूरों की अनदेखी की है।मज़दूरों को हम अप्रवासी कह रहे हैं जबकि ये राष्ट्र निर्माता रहे हैं. इन्होंने हमारे लिए घर बनाए हैं. रेलवे,एयरपोर्ट सबकुछ इन्हीं मज़दूरों की देन है. जब संकट आया तो सबसे पहले हमने इन्ही को छोड़ दिया. ज्योति कुमारी की कहानी के ज़रिए मज़दूरों के दर्द को बयां किया जाएगा कि हमने समाज और देश के तौर पर क्या किया. सिस्टम ने अनदेखी की इसलिए एक 15 साल की बच्ची को अपने पिता को साईकल पर लेकर जाने का फैसला लेना पड़ा. दुर्भाग्य ये है उनकी मजबूरी का सरकार जश्न मना रही है. चार चार केंद्रिय मंत्री ट्वीट कर रहे हैं बहादुर बेटी को सलाम. आप ये नहीं सोच रहे कि बहादुर बेटी ने ये सब मज़बूरी में किया क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प आपलोगों ने छोड़ा नहीं था. मैं हैरान हूं हमारी सरकारें इसका जश्न मना रही हैं. इवांका ट्रूप भी जश्न ही मना रही.