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माला सिन्हा ने इस वजह से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार लेने से कर दिया था इंकार, कहा- इस तरह अपमानित करना…

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समारोह के लिए उन्हें ठीक से आमंत्रित नहीं किए जाने के बारे में बात करते हुए माला सिन्हा ने 2013 में कहा था, "उन्होंने मेरे साथ अन्याय किया है. उन्होंने निमंत्रण पत्र पर मेरा नाम तक नहीं लिखा है!

80 के दशक में बॉलीवुड में कई ऐसी अभिनेत्रियां हुईं जिन्होंने इंडस्ट्री पर राज किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई. उनके चाहनेवालों की कमी नहीं है. आज हम ऐसी ही दिग्गज अदाकारा माला सिन्हा के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. वो आज चकाचौंध भरी दुनिया से दूर है. आज उनका जन्मदिन है और वो 86 साल की हो गई हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि माला सिन्हा को 2013 में दादा साहब फाल्के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन उन्होंने यह महसूस करने से इनकार कर दिया था. जानें इसकी वजह…

इस वजह से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार लेने से किया था इंकार

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समारोह के लिए उन्हें ठीक से आमंत्रित नहीं किए जाने के बारे में बात करते हुए माला सिन्हा ने 2013 में बॉलीवुड हंगामा से कहा था, “उन्होंने मेरे साथ अन्याय किया है. उन्होंने निमंत्रण पत्र पर मेरा नाम तक नहीं लिखा है! जब फाल्के समिति के सदस्य अपने अध्यक्ष सहित मेरे घर आए और मुझसे पुरस्कार लेने का अनुरोध किया, जिसे वे एक महान कलाकार कहते हैं, तो मुझे इसे स्वीकार करने में खुशी हुई.”

इसके बजाय सीधे मुझे थप्पड़ मार दें

उन्होंने कहा कि वह यह देखकर चौंक गईं कि इस कार्यक्रम के निमंत्रण कार्ड में उनका नाम ही नहीं था, हालांकि अन्य पुरस्कार विजेता – गायिका आशा भोसले और पाम चोपड़ा (जिन्हें उनके दिवंगत पति यश चोपड़ा की ओर से पुरस्कार मिला था) के नाम थे. एक्ट्रेस ने इसे अपमानजनक बताया और कहा कि, ‘यह बेहतर होगा कि वे मुझे इस तरह से अपमानित करने के बजाय सीधे मुझे थप्पड़ मार दें.

क्या मैं इतनी छोटी कलाकार हूं कि मेरा नाम छोड़ दिया गया ?

उन्होंने यह भी कहा कि वह उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुई थी, जिसमें अन्य पुरस्कार विजेताओं आशा भोंसले और पाम चोपड़ा मौजूद नहीं थे. उन्होंने कहा, “वे पिछले हफ्ते निमंत्रण लेकर घर आए थे. सिर्फ मेरा अपमान करने के लिए. मेरी तस्वीर छोड़ो उन्होंने मेरा नाम भी निमंत्रण पत्र में नहीं डाला है. मैंने उन्हें निमंत्रण कार्ड लेकर जाने को कहा. मैं उनका पुरस्कार नहीं लेना चाहती थी. एक कलाकार के रूप में यह मेरा अपमान है. मैं आपको बता नहीं सकती कि मैं इससे कितना परेशान हूं. मैं मानती हूं कि आशा भोसले और यश चोपड़ा महान कलाकार हैं. लेकिन क्या मैं इतनी छोटी कलाकार हूं कि मेरा नाम छोड़ दिया गया? तो मुझे अवॉर्ड मत दो. मुझे यह नहीं चाहिए.”

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बंगाली फिल्मों से की थी शुरुआत

गौरतलब है कि माला सिन्हा ने अपने करियर की शुरूआत बंगाली फिल्मों से की थी. फिल्मों से पहले वो रेडियो पर गाया करती थीं. वो एक सपना लेकर मायानगरी मुंबई आ गईं. एक दिन अचानक उनकी मुलाकात गुरुदत्त से हुई. उनकी खूबसूरती देख गुरुदत्त ने उन्हें फिल्म प्यासा (1957) में कास्ट किया. फिल्म रिलीज हुई और हिट हो गई. उन्हें एक खास पहचान मिल गई. इसके बाद उन्होंने ‘बादशाह’, ‘हैमलेट’,’रियासत’, ‘एकादशी’, ‘रत्न मंजरी’, ‘पैसा ही पैसा’, ‘एक शोला’ और ‘झांसी की रानी’ जैसी फिल्मों में काम किया.

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