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आजकल की सारी अभिनेत्रियां एक जैसी दिखती हैं… जानिए ऐसा क्यों कहा राजकुमार संतोषी ने

गांधी गोडसे एक युद्ध सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. यह फिल्म अपने ट्रेलर लॉन्च के साथ ही सुर्खियों में है.इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार संतोषी की मानें तो यह फिल्म इस बात पर ज़ोर देती है कि गांधीजी भगवान नहीं थे और गोडसे शैतान नहीं था.

गांधी गोडसे एक युद्ध सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. यह फिल्म अपने ट्रेलर लॉन्च के साथ ही सुर्खियों में है. इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार संतोषी की मानें तो यह फिल्म इस बात पर ज़ोर देती है कि गांधीजी भगवान नहीं थे और गोडसे शैतान नहीं था. दोनो इंसान थे, इसलिए दोनो में खूबियां और खामियां दोनो ही थी. राजकुमार संतोषी से उनकी इस फिल्म, विवादों सहित कई पहलुओं पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

गांधी और गोडसे पर फिल्म बनाने की वजह क्या थी?

मैं उस फिल्म को चुनता हूँ , जो मुझे डिस्टर्ब करें.मैं बोलने आऊं तो सभी मेरे दुश्मन हो जाएंगे, क्यूंकि मेरे अंदर बहुत गुस्सा है. मेरा हथियार सिनेमा है, तो सिनेमा के ज़रिये मैं बात को रखता हूँ.

यह फिल्म गांधीजी पर सवाल उठाती है?

हम सब आज तक जहाँ भी पहुंचे हैं. वो सवाल की वजह से पहुंचे हैं. इंसान के जेहन में सवाल आया. उसी सवाल ने मानव सभ्यता को ग्रोथ तक पहुंचाया है. सुकरात के बातों का मैं बहुत बड़ा वाला प्रसंशक रहा हूँ. सुकरात युवा पीढ़ी के बीच काफी पॉपुलर थे. युवा ही देश को आगे ले जा सकते हैं. सुकरात की यही सोच थी कि आप मुझे फॉलो मत करो. सवाल करो और अपने सवालों के जवाब भी खुद से ढूंढो. उस वक़्त के स्टेट्स को ये मंजूर नहीं था. वैसे कोई भी सरकार ये पसंद नहीं करती है, क्यूंकि वो सवाल करना शुरू कर देगा. जवाब देते -देते आपके पसीने छूट जाएंगे. यही वजह है कि सुकरात को जहर खिलाया गया था. यही बात भगत सिंह ने भी कहा था कि बिना सोचे समझे किसी को फॉलो करना भी एक तरह की गुलामी है. कई लोग बोलते हैं ना बापू ने ये बोला था अरे आप ये क्यों नहीं सोचते कि बापू भी खुदा या भगवान तो नहीं है. जो उन्होंने बोला है, उस पर सवाल करो. मैं तो कहूंगा कि रामचंद्र जी और कृष्ण जी से भी सवाल करो. किसी को भी अंधे की तरह फॉलो मत करो. हमारे देश की आधी बर्बादी इसी वजह से ही हुई है कि बस आप फॉलो करते जा रहे हैं. मैं आपके अखबार के ज़रिये सभी लोगों को अपील करता हूँ कि बिना फिल्म देखें कोई ओपिनियन मत बनाइए. सिचुएशन भले ही फिक्शनल हैं , लेकिन गांधी और गोडसे दोनों के एक -एक शब्द दोनों की ज़िन्दगी से ही प्रेरित है.

इस फिल्म के लिए कौन से किताबों को पढ़ा है?

मैं किताबों के नाम नहीं ले पाऊंगा. आप यहाँ पर 500 किताबें देख रही हैं , नीचे 700 किताबें हैं.मैं जहाँ भी बैठता हूँ. वहां पर कहीं न कहीं किताबें आसपास होती हैं. मैंने इस फिल्म का आधार एक या दो बुक पर नहीं किया है क्यूंकि वह बायस्ड भी हो सकता है. मैंने कई किताबों को पढ़ने के बाद अपने सवाल के जवाब इस फिल्म में ढूंढे हैं. इस फिल्म में गोडसे के खतों का भी इस्तेमाल हुआ है. जिन्हे दो साल पहले ही सार्वजनिक किया गया है.

फिल्म ट्रेलर लॉन्च के बाद से ही चर्चा में है, क्या रिलीज के बाद विवाद बढ़ जाने का डर भी है?

वैसे मेरी फिल्मों को लेकर विवाद नया नहीं है. इससे पहले मेरी फिल्म लज्जा के वक़्त भी मेरे पुतले जलाये गए थे. गांधीजी सच्चाई के हिमायती थे. उनका हथियार ही सच्चाई था.मुझे लगता है कि जब आप किसी चीज़ को पूरी सच्चाई के साथ करते हो तो वो लोगों को अपील कर ही जाता है. आदमी की नीयत समझ आ जाती है कि ये विवाद को बढ़ाने के लिए कर रहा है या खुद को पॉपुलर करने के लिए. अभी हाल ही में एक फिल्म आयी थी.मैं उसका नाम नहीं लूंगा. जो बहुत विवादों में रही और वह सुपरहिट भी रही. उस फिल्म को कुछ पॉलिटिकल पार्टीज और ग्रुप ने भी सपोर्ट किया. मैं किसी पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं हूँ. मैं जिन्हे बहुत मानता हूं, वह हैं भगत सिंह. मैं भगत सिंह को जीवित रखना चाहता हूँ. मेरे फिल्म के लोगो में भी उनकी तस्वीर होती है. मेरे ऑफिस में चे ग्वेरा के पोस्टर भी हैं. मुझे लगता है कि भगत सिंह जैसे वो भी फ्रीडम का प्रतीक हैं.वे लोग सबसे ज़्यादा सम्मान आम नागरिक को मिले , इसके हिमायती थे. जाति और धर्म के परे . हर इंसान को न्याय मिलना चाहिए गाँधी और गोडसे में हमने यही बात कही है, तो मुझे नहीं लगता है कि किसी की भावनाएं आहात होंगी.

इस फिल्म में आपने किसी स्टार को लेने को क्यों नहीं सोचा?

कुछ लोग राजकुमार राव का नाम ले रहे थे. वो अच्छा एक्टर है, लेकिन मुझे लगता है कि वह फिल्म में गोडसे नहीं लगता था, चिन्मय आपको फिल्म के पहले लुक के साथ ही गोडसे लगने लगते हैं. गांधी जो बना है, उसको रहमान देखकर चकित रह गया था. बोला कि अब सब इसी को गांधी मानेंगे. बेन किंग्सले से भी अच्छा यह गांधी लग रहा है.

किसी स्टार्स के होने से फिल्म ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कनेक्ट करती है, क्या आप इस बात को नहीं मानते हैं?

फिल्म अच्छे कंटेंट से चलती है. किसी स्टार या सुपरस्टार की वजह से नहीं. क्या पहनना है. क्या बोलना है.सबकुछ कोई ना कोई बताता है तो वो सलमान खान, शाहरुख खान या किसी दूसरे स्टार की ब्लॉकबस्टर फिल्म कैसे हो सकती है.फिल्म टीम वर्क का नाम है, तो मीडिया की ये जिम्मेदारी बनती है कि उसका सम्मान भी हो. मीडिया को भी विवाद चाहिए या ग्लैमर.लो कट और कम कपड़ों में पहनी हुई लड़कियों को ही वो तवज्जो देता है.वैसे अब ऐसी लड़कियां, अभिनेत्रियां बन जाती हैं. जिन्हे हिंदी नहीं आती है एक्टिंग से उनका दूर -दूर तक कोई नाता नहीं है. भारत का इतिहास, भारतीय फिल्मों का इतिहास कुछ भी नहीं जानती हैं.शर्माना कैसे होता है ये भी इन लड़कियों को निर्देशक ही समझाते हैं. ये कितनी शर्म की बात है.हर दौर की जो भी अभिनेत्रियां रही हैं. सभी की अपनी खासियत होती थी.आजकल की तो सारी अभिनेत्रियां एक जैसी हैं. मां बाप का चेहरा ही नहीं है.वों लोग डॉक्टर से बनवाया हुआ चेहरा लेकर घूम रही हैं.जिनका अपना चेहरा नहीं है. उनकी अपनी सोच क्या होगी.

पिछले कुछ समय से हिंदी फ़िल्में भारतीय दर्शकों की पहली पसंद नहीं रह गए हैं, इस पर आपकी क्या राय है ?

मेरे पिता भी फिल्म निर्देशक रहे हैं, तो इंडस्ट्री से मेरा नाता कई दशकों का नाता रहा है. हिंदी सिनेमा हमेशा दूसरी इंडस्ट्रीज से बहुत आगे रहा है. साउथ की फ़िल्में बॉलीवुड को लुक अप करती थी. आराधना मद्रास में पूरे सौ दिन चली थी. यादों की बारात, हीरो ये सब फ़िल्में साउथ में सुपरहिट रही हैं.हमारे पास अच्छे कांसेप्ट की कमी है, इसलिए हम पिछड़ रहे हैं. कॉर्पोरेट हाउस फ़िल्में नहीं प्रोजेक्ट बना रहे हैं. आजकल तो नया ही कुछ शुरू हो गया है.लार्जर पिक्चर में देखें तो टैलेंट कहीं भी हो. उसको सराहा जाएगा.मैं एक अच्छी फिल्म बनाने के चक्कर में हूं और कुछ फिल्ममेकर्स यूनिवर्स बना रहे हैं.

एक अरसे से ये खबर आ रही है कि आप आमिर को लेकर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं?

आमिर के साथ बात चलती रहती है.वों मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. एक कांसेप्ट उसको पसंद आया है, लेकिन उससे ज्यादा और कुछ नहीं. वैसे मेरी दिल से इच्छा रामायण पर फिल्म बनाने की है, लेकिन जब भी मैं प्रोडक्शन कम्पनी के पास जाता हूं, तो कहानी से ज्यादा उनकी दिलचस्पी इस बात में होती है कि राम कौन बनेगा ह्रितिक रोशन या और कौन सा सुपरस्टार्स. अरे राम को किसी सुपरस्टार की जरुरत क्यों होगी.

इनदिनों सिनेमा पर राजनीति हावी हो रही है, अक्सर ये बातें सुनने को मिलती हैं, आपकी क्या राय है ?

हां,बहुत ज्यादा हो रही है.मुझे लगता है कि आर्ट पूजा के सामान है.चाहे वो कोई भी कला हो. कला, धर्म और जाति के परे होती है.किसी की भी काबिलियत को उसके जन्म से मत आंकों. क्या आप मोहम्मद रफ़ी को उनके मुस्लिम को होने कि वजह से कम मानते हैं.आर्ट और पॉलिटिक्स अलग -अलग चीज़ें हैं. दोनो को एक दूसरे में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए, , अगर करते हैं तो वह डेमोक्रेसी के लिए यह अच्छा नहीं है.

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