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Exclusive: उसने मुझे इतना बदसूरत महसूस कराया कि मैंने खुद को 6 महीने तक आईने में नहीं देखा- विद्या बालन

अभिनेत्री विद्या बालन जल्द ही फ़िल्म जलसा में नज़र आनेवाली हैं.उनकी यह फ़िल्म ओटीटी प्लेटफार्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर प्रदर्शित होगी.

अभिनेत्री विद्या बालन जल्द ही फ़िल्म जलसा में नज़र आनेवाली हैं.उनकी यह फ़िल्म ओटीटी प्लेटफार्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर प्रदर्शित होगी.विद्या साफतौर पर कहती हैं कि अभिनेत्रियों के लिए यह सबसे बेहतरीन समय है.एक्टर के लिए उतने लेयर्ड वाले किरदार नहीं लिखें जा रहे हैं जितना हम अभिनेत्रियों के लिए लिखे जा रहे हैं.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

सुना है आपने इस फिल्म को पहले मना कर दिया था?

हां क्योंकि शुरुआत में मुझमें इस भूमिका को करने की हिम्मत नहीं थी. यह एक ग्रे कैरेक्टर है इसलिए मैं जज कर रही थी और मुझे लगा कि लोग भी मुझे जज करेंगे. जब महामारी हुई तो इसने सभी की सोच बदल दी. मेरी भी बहुत बदली.आप अपने और दूसरों के बारे में सोचने लगते हैं, फिर मुझे लगा कि हर कोई अपनी जगह पर अच्छा है और आप हर किसी को जज नहीं कर सकते. जब मुझे यह अहसास हुआ तो मैं माया का किरदार निभाने के लिए तैयार थी.

जब कोई पुरुष पात्र ऐसी भूमिकाएँ करता है तो उसकी सराहना की जाती है लेकिन एक महिला अभिनेत्री के साथ क्या अभी भी भेदभाव होता है?

मैंने इसके बारे में नहीं सोचा है. मुझे लगता है कि एक महिला के रूप में हम उन लोगों के बारे में ज़्यादा सोचते हैं जो हमें पसंद करते हैं .चाहे या ना चाहे लेकिन हम सोचते हैं कि उन्हें पसंद आएगा की नहीं. वैसे महिला एक्टर्स के लिए यह सबसे अच्छा समय है क्योंकि महिलाओं के लिए रोमांचक भूमिकाएँ लिखी जा रही हैं, पुरुष अभिनेता कर क्या रहे हैं? मेरा मतलब उनका अनादर करने से नहीं है लेकिन उन्हें अभी भी वहीं ढांचे में काम मिल रहा है जबकि अभिनेत्रियों के लिए बहुत लेयर्ड वाले किरदार लिखे जा रहे हैं जहां हम हीरोइन नहीं किरदार होते हैं. साधारण किरदार में असाधारण परफॉर्म करने को मिलता है.हाल के दिनों में महिला भूमिकाओं के साथ यह सबसे अच्छी बात हुई है.

ओटीटी के आने से क्या आपको लगता है कि अभिनेत्रियों को ज़्यादा बेहतर भूमिकाएं मिल रही हैं?

ओटीटी किसी फिल्म या टेलीविजन की तरह नहीं है. यह बिल्कुल अलग माध्यम है. इसने एक्टर्स या कहानी कहने के मामले में भेदभाव के बीच की रेखा को ही मिटा दिया है. इसमें सभी के लिए और हर चीज के लिए जगह है. यही कारण है कि मुझे लगता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रतिभाएं तैयार हो रही हैं. यह बहुत ही रोमांचक समय है.

आप एक पत्रकार की भूमिका में हैं, क्या आपने किसी को फॉलो किया?

नहीं, मुझे यह किसी भी न्यूज़ स्टूडियो जाने का मौका नहीं मिला, क्योंकि इस फ़िल्म को हमने महामारी में शूट किया था, लेकिन आपको एक समझ होती है क्योंकि आप इतने लंबे समय से इंडस्ट्री में हैं. मैं अपनी अब तक की एक्टिंग जर्नी में कई पत्रकारों और समाचार संपादकों से मिली हूं तो इस प्रोफेशन को करीब से जानती हूं. बाकी सब चीजों के लिए निर्देशक सुरेश त्रिवेणी थे.

शेफाली शाह इस फ़िल्म में आपके साथ हैं,उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा

पहले दिन जब मैं सेट पर उनसे मिली तो उन्होंने मुझे कसकर गले लगाया था.एक्टर्स के तौर पर हमने अच्छा परफॉर्म किया. हमारे एक साथ ज़्यादा सीन नहीं हैं लेकिन हमारे जो सीन हैं .वे महत्वपूर्ण हैं. मैं उनसे पहली बार 90 के दशक में अपने पहले टेलीविजन शो के लिए मिली थी .यह एक कैंपस आधारित शो था, हम एक कैफे में थे और उनके और एक अभिनेता के बीच एक सीन था. मैंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शन करते देख रही थी और वह अविश्वसनीय थी. जब भी मैं उन्हें स्क्रीन पर देखती हूं वह कमाल की होती है. मैं उनके काम करने की प्रक्रिया को नहीं जानती हूं, लेकिन मैं जानना चाहती हूं. .इसके लिए हमें मिलकर और काम करना होगा.

फिल्म के ट्रेलर में एक सीन जिसमें आप बहुत गुस्से में हैं, असल जिंदगी में आपको किस बात पर गुस्सा आता है?

मुझे बहुत सी बातों पर गुस्सा आता है लेकिन मैं खुद को गुस्सैल नहीं कहूँगी. पहले मुझे बहुत सी चीज़ों पर बहुत गुस्सा आता था लेकिन मैं अपना गुस्सा जाहिर नहीं करती थी. अब मैं अपना गुस्सा तुरंत जाहिर करती हूं. इसे अपने भीतर नहीं रखती हूँ . मैंने महसूस किया कि गुस्सा आपके खुद के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.जब मेरे आसपास कोई किसी का अपमान करता है तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है तो मैैं खुद उस समय गुस्सा निकालने से नहीं रोकती हूं.

मैंने कहीं पढ़ा था कि एक बार आप गुस्से में मरीन ड्राइव से बांद्रा पैदल चली गयी थी?

जी, 2003- 2004 की बात है. मैंने के. भाकलचंदर के साथ दो फिल्में साइन की थीं .उस वक़्त मुझे ज्यादातर फिल्मों में रिप्लेस किया जा रहा था. मुझे पता चला कि के भालचंदर की फ़िल्म में भी मुझे रिप्लेस किया गया है और मुझे बताया तक नहीं गया था . हम शूटिंग के लिए न्यूजीलैंड जाने वाले थे और मुझे समझ में आ रहा था कि कुछ ठीक नहीं है क्योंकि उन्होंने मेरा पासपोर्ट नहीं मांगा था, आखिरकार मेरी माँ ने के.भालचंदर की बेटी को फोन किया और उससे पूछा तो मालूम पड़ा कि मुझे हटा दिया गया है. मैंने अपनी माँ से कहा कि मुझे ताजी हवा में सांस लेने की ज़रूरत है, मैं किसी चीज़ के लिए एनसीपीए गयी थी और मैं बहुत गुस्से में थी कि मैं वहाँ से तेज़ धूप में ही चलना शुरू किया. चलते चलते मैं बांद्रा पहुंच गयी और महसूस किया कि शाम होने वाली है और मैं ना जाने कितने घंटों से चल ही रही हूं .उसके बाद मैं खूब रोयी. वो यादें अब धुंधली पड़ गयी है हैं लेकिन उन तीन सालों में मैंने जो कुछ भी छुआ वो मिट्टी बन जाता था.

हाल के वर्षों में क्या उन निर्माताओं ने आपको फिल्मों के लिए कॉल किया था?

हाँ,उनलोगों के कॉल आए थे लेकिन मैंने विनम्रता से कहा कि नहीं मुझे आपकी फ़िल्म नहीं करना है.. मुझे तेरह फिल्मों से मना कर दिया गया था. एक प्रोड्यूसर ने जब मुझे अपनी फिल्म में रिप्लेस किया तो उनका बर्ताव मुझसे बहुत बुरा था. उसने मुझे इतना बदसूरत महसूस कराया था कि छह महीने तक मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं खुद को आईने में देख सकूं.

क्या इन रिजेक्शन्स के कारण आप यहां तक पहुंच पायी हैं

मुझे भी ऐसा ही लगता है. वे कहते हैं कि जीवन में जो कुछ भी होता है .वह हमारे सभी अनुभवों का फल है. अगर मैंने संघर्ष न किया होता तो मुझे वे अनुभव नहीं मिलते. अगर मेरे साथ ऐसा नहीं होता, तो शायद मैं आज मैं एक अलग अभिनेत्री और इंसान होती थी .

भविष्य में निर्देशन में आने की प्लानिंग हैं?

मेरे पास निर्देशन का टैलेंट या समझ नहीं है. मुझे नहीं लगता कि मैं निर्देशन कर पाऊंगी. मैं लिख सकती हूं.

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