नयी दिल्ली : आधी रात को संसद भवन के ऐतिहासिक सेंट्रल हाॅल में शुक्रवार की आधी रात को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को लागू कर दिया गया. इसे अप्रत्यक्ष कर सुधारों की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा कदम बताया जा रहा है. भारत को ‘एक बाजार’ बनाने में 40 साल लग गये.
जी हां, 2 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्थावाले अाज के युवा भारत ने जिस कानून को लागू किया है, उसकी पृष्ठभूमि करीब 40 साल पुरानी है. ऐसा माना जा रहा है कि भारत सरकार ने जिस कानून को लागू किया है, वह नये भारत का निर्माण करेगा. साथ ही ऐसा भी माना जा रहा है कि इस कानून को लागू करने में कई तरह की कठिनाइयां भी होंगी.
बहरहाल, 1978 से 2017 तक देश में रही अलग-अलग सरकारों ने देशकी तरक्की के लिए कई तरह के आर्थिक सुधारों को लागू किया. आप भी जानें कि कब-कब आर्थिक सुधारों से जुड़े कौन-कौन से कानून लागू हुए और कौन-कौन से कानून खत्म किये गये. जीएसटी के लागू होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि भारत की 2 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी और यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था से भी आगे निकल जायेगी.
आइए, जानते हैं अब तक के आर्थिक सुधारों के बारे में…
1978 में एलके झा की अध्यक्षता में इनडायरेक्ट टैक्सेशन इन्क्वायरी कमेटी बनी. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे एलके झा ने टैक्स व्यवस्था में बदलाव का ढांचा तैयार किया. वर्ष 1967 से 1970 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे झा ने माॅडिफाइड वैल्यू ऐडेड टैक्स (मोडवैट) अपनाने की सलाह दी.
1986 में राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री वीपी सिंह ने भारत में एक्साइज टैक्स की व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए माॅडिफाइड वैल्यू ऐडेड टैक्स (मोडवैट) को लागू किया. इसके लागू होने पर निर्माताअों को कच्चा माल पर चुकायी गयी एक्साइज ड्यूटी तत्काल वापस मिलने लगी. कई जगह एक्साइज ड्यूटी देने की व्यवस्था खत्म करने के उद्देश्य से मोडवैट को 1 मार्च, 1986 को लागू किया गया.
1991-92 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डाॅ मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्री राजा चेलैया की अगुवाई में टैक्स रिफाॅर्म्स कमीशन का गठन किया. चेलैया आयोग ने वैल्यू ऐडेड टैक्स (वैट) और सर्विस टैक्स लागू करने का सुझाव दिया. वर्ष 1994 में देश में पहली वार सर्विस टैक्स की व्यवस्था लागू की गयी.
1997 में एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी संयुक्त मोरचा सरकार के वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने ‘ड्रीम बजट’ में कस्टम ड्यूटी को 50 फीसदी से घटा कर 40 फीसदी कर दिया था. साथ ही टैक्स स्ट्रक्चर को बेहद सरल बना दिया.
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने टैक्स सुधारों के अधूरे कार्यों को पूरा करने का बीड़ा उठाया. यशवंत सिन्हा की पहल पर केंद्र और राज्यों की सरकारें बिक्री कर (सेल्स टैक्स) विवाद को खत्म करने पर सहमत हो गयीं. जनवरी, 2000 से विभिन्न कमोडिटीज पर देश भर में समान टैक्स की दरें लागू करने पर सहमति बन गयी. सिन्हा ने पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वामफ्रंट सरकार के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की अगुवाई में संघीय सहकारिता की मूल भावना के अनुरूप वित्तीय सुधारों की व्यवस्था तय करने के लिए अधिकारप्राप्त समिति का गठन किया. इसके साथ ही देश में वैट लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी.
2002 में 1 अप्रैल को वैट की लांचिंग की घोषणा की गयी, लेकिन भाजपा शासित प्रदेश दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों और इन राज्यों में व्यापारियों के विरोध के कारण इसे 1 अप्रैल, 2003 तक टाल देना पड़ा.
2003 में वित्त मंत्री जसवंत सिंह की पहल पर केंद्र सरकार को सेवा कर (सर्विसेज टैक्स) लगाने का अधिकार देने के लिए संविधान संशोधन किया. वित्त मंत्री ने अपने सलाहकार और पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर को फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट को लागू करने का जिम्मा सौंपा. टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में विदेशों में अपनाये गये गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की अवधारणा पेश की. इसमें राज्यों के लिए 7 फीसदी और केंद्र के लिए 5 फीसदी टैक्स तय की गयी थी. नये टैक्स सुुधारों की अवधारणा सामने आयी, तो वैट की लांचिंग को 1 अप्रैल, 2005 तक टाल दिया गया.
2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली सरकार ने 1 अप्रैल को वैट को लागू किया. इस समय पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे.
2007 में अपने बजट भाषण में पी चिदंबरम ने घोषणा की कि अप्रैल, 2010 में जीएसटी को लागू किया जायेगा. अधिकारप्राप्त समिति को नये कानून बनाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. असीम दासगुप्ता और उनके बाद भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने जीएसटी को लागू करने के लिए सर्वसम्मति बनाने हेतु राज्य सरकारों और उद्योग घरानों के साथ लगातार बैठकें कीं.
2009 में वित्त मंत्रालय ने वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसारथी शोम के साथ पहली बार जीएसटी से संबंधित विषयों पर चर्चा की.
2009-10 में 13वें वित्त आयोग ने जीएसटी को शामिल करने के लिए अपनी सिफारिशों का दायरा बढ़ा दिया. आयोग ने राज्यों को क्षतिपूर्ति देने का प्रस्ताव किया.
2011 में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी की व्यवस्था के लिए 115वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया. विधेयक को यशवंत सिन्हा की अगुवाईवाली वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के पास भेजा गया. समिति ने 2013 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी. हर बैठक में भाजपा शासित प्रदेशों ने जीएसटी का सख्ती से विरोध किया. विरोध की अगुवाई गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की. तमिलनाडु ने भी लगातार विरोधी रुख अख्तियार किया.
2013-14 में यूपीए सरकार विधेयक को संसद से पास कराने में विफल रही. बिल लैप्स कर गया. हालांकि, सरकार ने हार नहीं मानी. नयी टैक्स व्यवस्था की रीढ़ माने जानेवाले गुड्स एंड सर्विसेज टैक्सेशन नेटवर्क (जीएसटीएन) को प्रमोट करने के लिए इंफोसिस के पूर्व सीइअो नंदन निलेकणि की अगुवाई में एक कमेटी बनायी गयी. कमेटी ने सभी हिस्सेदारों को जीएसटी के फायदे बताये और इसे लागू करने की अपील की.
2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. इसी साल दिसंबर में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संविधान संशोधन बिल पेश किया. 2015 में लोकसभा ने इस बिल को पास कर दिया. इसके बाद बिल को राज्यसभा की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया.
2016 में राज्यसभा ने इस बिल को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही राज्यों और केंद्र सरकार के साथ टैक्स की दरें तय करने और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर सर्वसम्मति बनाने के लिए बनी जीएसटी काउंसिल ने अपना काम करना शुरू कर दिया. तय किया गया कि 1 अप्रैल, 2017 से पूरे देश में जीएसटी को लागू कर दिया जायेगा, लेकिन कई मुद्दों पर आम सहमति नहीं बनने की वजह से जीएसटी की लांचिंग टल गयी.
2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल करना शुरू किया. उन्होंने बिल का विरोध करनेवाले तमाम लोगों, जिसमें कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी थे, से फोन पर बातचीत की. उन्हें भरोसे में लिया और सरकार ने घोषणा की कि 1 जुलाई से देश में जीएसटी लागू हो जायेगा. अंततः 30 जून की रात 12 बजते ही एक विज्ञापन में घंटा बजा और देश का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार लागू हो गया.
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