नयी दिल्लीः केंद्र में सत्तासीन होने के तीन साल पूरा होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह दावा किया था कि तीन साल के कार्यकाल में उनकी सरकार पर अब तक एक भी दाग नहीं लगा है. मगर, लगता है उनका यह दावा सही साबित नहीं हो रहा है. इसकी अहम वजह यह है कि उनकी सरकार विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नियमों में बदलाव कर देश के प्रमुख आैद्योगिक आैर कारोबारी घरानों में शुमार अडाणी समूह की एक कंपनी को करीब 500 करोड़ रुपये का लाभ देने की बात कही जा रही है. समाचार वेबसाइट द वायर में प्रकाशित खबर के अनुसार, सरकार ने सेज के नियमों में बदलाव के लिए गुपचुप तरीके से फैसला किया है. सेज के नियमों में बदलाव करने के सरकार के फैसले से अडानी समूह की एक कंपनी को 500 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचेगा.
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खबर में इस बात का जिक्र है कि सेज के नियमों में बदलाव को सही ठहराते हुए अडाणी समूह ने इसे गलत या गैर-कानूनी नहीं बताया है, जबकि इस मसले पर वित्त मंत्रालय वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने अभी तक कोर्इ जवाब नहीं दिया है. हालांकि, सेज के नियमों में बदलाव को लेकर द वायर की आेर से वित्त मंत्री अरुण जेटली से भी सीधा सवाल किया गया था.
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खबर के अनुसार, अगस्त, 2016 में वाणिज्य विभाग ने विशेष आर्थिक क्षेत्र के नियम (सेज नियमों), 2016 में संशोधन करते हुए उसमें एक नया प्रावधान जोड़ा था, जो सेज एक्ट, 2005 के तहत रिफंड के दावों से संबंधित था. सेज एक्ट के तहत किये गये इस संशोधन से पहले किसी तरह के रिफंड का कोई प्रावधान नहीं था. खबर के मुताबिक, यह संशोधन खासतौर पर अडानी पावर लिमिटेड (एपीएल) को लगभग 500 करोड़ रुपये के करीब की उत्पाद शुल्क के रिफंड का दावा करने का मौका देने के लिए किया गया था.
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एपीएल का दावा है कि उसने कच्चा माल और अन्य कंज्यूमेबल्स (इनपुटों) पर यानी बिजली के उत्पादन के लिए मुख्यतः कोयले के आयात पर सीमा शुलक चुकाई है, लेकिन ईपीडब्लू को मिले दस्तावेजों के मुताबिक दरअसल एपीएल ने मार्च 2015 के अंत में कच्चा माल और उपभोग की वस्तुओं पर बनने वाली करीब 1000 करोड़ रुपये के शुल्क का भुगतान ही नहीं किया है. पहली नजर में ऐसा लगता है कि सेज नियमों में संशोधन करके उसमें सीमा शुलक का रिफंड मांगने का प्रावधान डालकर वाणिज्य विभाग एपीएल को एक ऐसी ड्यूटी पर रिफंड का दावा करने की इजाजत दे रहा है, जिसका भुगतान उसके द्वारा कभी किया ही नहीं गया.
द वायर ने अपनी खबर में इस बात का भी जिक्र किया है कि एपीएल इंडोनेशिया से कोयले का आयात करता है. कंपनी द्वारा (साथ ही दूसरी कंपनियों, जैसे, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजा पावर सप्लाई, एस्सार ग्रुप फर्म्स आदि कंपनियों के द्वारा भी) इंडोनेशिया से कोयले का आयात पिछले काफी समय से डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की जांच के दायरे में है. मार्च, 2016 में डीआरआई (वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग की जांच शाखा) ने दावा किया था कि इंडोनेशिया से आयात किये जा रहे कोयले की ओवर इनवॉयसिंग (बढ़ाकर बिल बनाना) की जा रही है, ताकि देश का पैसा देश के बाहर भेजा जा सके.
खबर के अनुसार, इससे एपीएल समेत दूसरी बिजली उत्पादक कंपनियां आयातित कोयले की नकली तरीके से बढ़ायी गयी कीमत के आधार पर सरकार से बिजली के टैरिफ पर ज्यादा मुआवजा ले रही हैं. इसके साथ ही, अडानी और एस्सार समूह की कंपनियों पर आयात किये गये बिजली संयंत्र के उपकरणों की ओवर इनवॉयसिंग करने का भी आरोप है. ये जानकारियां पहली बार पिछले साल ईपीडब्लू में अप्रैल और मई में छपी थीं. ड्यूटियों (करों) की सुनियोजित चोरी का यह उदाहरण एक कदम और आगे की चीज है. यह एक ऐसी ड्यूटी के रिफंड की मांग से संबंधित है, जो वास्तव में चुकायी ही नहीं गयी है.
गुजरात के मूंदड़ा में स्थित एपीएल 660 मेगावाट क्षमता वाले भारत के पहले सुपर-क्रिटिकल टेक्नोलॉजी और कोयला आधारित थर्मल बिजली घर की स्थापना का दावा करता है. मूंदड़ा पावर प्लांट (एमपीपी) जो कि अडानी पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) के भीतर ही स्थित है, की कुल क्षमता 4,620 मेगावाट है. एमपीपी में नौ अलग-अलग 330 मेगावाट क्षमता की चार और 660 मेगावाट की पांच इकाइयां हैं. एपीएसईजेड 1,50,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में स्थित कई बिजली परियोजनाओं के सबसे बड़े ऑपरेटरों में से एक है. इस 15,000 हेक्टेयर में से 6,456 हेक्टेयर को ‘सेज’ या ‘प्रोसेसिंग’ क्षेत्र घोषित किया गया है.
एपीएसईजेड को पहले मूंदड़ा पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड के नाम से जाना जाता था. बीते 6 जनवरी, 2012 को इसने अपना नाम बदल लिया. शुरुआती योजना के मुताबिक, यहां एक 1,320 मेगावाट के पावर प्लांट की स्थापना की जानी थी. एपीएल बाद में एक बड़ी परियोजना में एमपीपी के को-डेवलपर के तौर पर शामिल हो गया, जिसकी उत्पादन क्षमता अब 4,620 मेगावाट है.
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