नयी दिल्ली/कोलंबोः सीमा विवाद को लेकर बीते एक महीने से भी अधिक समय से भारत को आंख दिखाने वाले चीन को श्रीलंका ने करारा झटका दिया है. उसने चीन की आेर से विकसित किये जाने हंबनटोटा बंदरगाह के करार में ही बदलाव कर दिया है. चीन के साथ हुए इस करार को मंगलवार को श्रीलंका सरकार की हुर्इ कैबिनेट की बैठक में बदलाव करने का फैसला किया गया है.
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मीडिया की खबरों मे बताया यह जा रहा है कि श्रीलंका की कैबिनेट ने यह कदम वहां की जनता के भारी विरोध के बाद उठाया है. गौरतलब है कि वहां की जनता ने अपनी ही सरकार पर हंबनटोटा बंदरगाह को चीन के हाथों बेचने का आरोप भी लगाया था. इसके बाद वहां के लोगों ने सरकार के विरोध में जमकर प्रदर्शन भी किया था. मजे की बात यह भी है कि वहां के बौद्ध भिक्षुआें ने भी चीन के साथ हुए करार का विरोध करने वालों के साथ खड़े नजर आये थे.
चीन ने भारत को घेरने के लिए श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और वहां चीनी निवेश बनाने का करार किया था. इसमें अहम बात यह थी कि चीन इस बंदरगाह को सैन्य गतिविधियों के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता था. इसके तहत श्रीलंका सरकार ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग को 80 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात कही थी.
इस बंदरगाह को विकसित करने में चीनी कंपनी 1.5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही थी. स्थानीय जनता के विरोध को देखते हुए श्रीलंका सरकार ने बंदरगाह को संचालन पर चीन की भूमिका को सीमित कर दिया है. साथ ही, अब चीन इस बंदरगाह को सैन्य मकसद के लिए उपयोग नहीं कर सकेगा. श्रीलंका के इस कदम से भारत के साथ ही जापान और अमेरिका की चिंता दूर होगी.
गौरतलब है कि वर्ष 2014 में चीनी पनडुब्बी के कोलंबो पहुंचने पर भारत के लिए खतरा बढ़ गया था. यहां पर चीनी की एक दूसरी कंपनी 1.4 अरब डॉलर के निवेश से पोर्ट सिटी बना रही है. भारत श्रीलंका को अपना दक्षिणी तट ही मानता है. ऐसे में यहां पर चीन की मौजूदगी भारत के लिए चिंता का सबब है. जब मई में पीएम नरेंद्र मोदी श्रीलंका के दौरे पर थे, उस समय कोलंबो में चीनी पनडुब्बी को खड़ा करने की इजाजत नहीं दी गयी थी. इससे चीन के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गयी थीं.
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