नयी दिल्लीः रिजर्व बैंक ने बुधवार को पेश की गयी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत ब्याज दरों (रेपो रेट) में 0.25 फीसदी की कटौती कर दी है. बताया जा रहा है कि केंद्रीय बैंक की इस पहल के बाद रेपो रेट कटौती सात साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है. इसका अर्थ लगाया जा रहा है कि रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाने के लिए ब्याज दरों को कम करके सात साल के भी निचले स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है.
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इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि केंद्रीय बैंक की आेर से ब्याज दरों में जब इतनी कटौती कर दी गयी है, तो सरकार की आेर से अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर जमीनी स्तर पर काम करेगी. साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि अब अगर इस पर भी अर्थव्यवस्था नहीं सुधरेगी, तो फिर कब सुधरेगी.
एेसा इसलिए भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं कि रिजर्व बैंक की आेर से मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करने के पहले रेपो रेट में कटौती करने को लेकर अर्थव्यवस्था की मद्धम गति का हवाला देकर चौतरफा दबाव बनाया जा रहा था. औद्योगिक उत्पादन की खस्ताहाल स्थिति के मद्देनजर उद्योग जगत व विशेषज्ञों ने इस नीतिगत ब्याज दर में आधा फीसद कमी की उम्मीद लगायी थी.
रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया है कि हर तरफ से महंगाई दर अभी काबू में है, लेकिन अगले डेढ़ से दो साल में यह बढ़ भी सकती है. इस चेतावनी के साथ उसने रेपो रेट में कटौती करने का फैसला किया है, लेकिन सरकार समेत पूरे अर्थजगत को अब भी अगली तिमाही में रेपो रेट में एक आैर कटौती की उम्मीद है.
गौरतलब है कि मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिए गठित छह सदस्यीय समिति (एमपीसी) की सिफारिश पर रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट को 0.25 फीसदी घटाकर छह फीसद करने की घोषणा की. यह कटौती वर्ष 2010 के बाद यानी करीब सात साल की सबसे कम रेपो दर दर है. अक्टूबर, 2016 के बाद यह पहला मौका है, जब इसमें कमी की गयी है. यही नहीं, भारत पहला एशियाई देश है, जहां इस साल ब्याज दर में कटौती का एेलान किया है.
ताजा कटौती के साथ रिवर्स रेपो रेट घटकर 5.75 फीसदी पर आ गयी. रेपो रेट वह नीतिगत दर है जो आरबीआइ कम अवधि के लिए फंड उधार लेने पर बैंकों से लेता है. रिवर्स रेपो रेट बैंकों को मिलने वाली वह दर है, जो वे अपने फंड अल्पकाल के लिए रिजर्व बैंक के पास जमा कराने पर प्राप्त करते हैं.
मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि अगले डेढ़-दो वषरें में महंगाई दर में एक फीसदी का इजाफा हो सकता है. ऐसी स्थिति में यह 2.5 से तीन फीसद के बीच हो सकती है, जो केंद्रीय बैंक के वार्षिक लक्ष्य चार फीसदी से काफी कम होगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि अक्टूबर, 2017 के पहले हफ्ते में मौद्रिक समीक्षा के दौरान रेपो रेट में एक और कटौती हो सकती है, लेकिन इस कमी का फायदा आम जनता या उद्योग जगत को मिलता है या नहीं यह बैंकों के रुख पर निर्भर करेगा. बुधवार की कटौती को जोड़ दिया जाये, तो जनवरी, 2015 के बाद से अभी तक रेपो रेट में 2 फीसदी की कमी हो चुकी है.
वास्तविक तौर पर बैंकों ने ग्राहकों को बमुश्किल 0.7-0.8 फीसदी का फायदा कर्ज की दरों में दिया है. रिजर्व बैंक ने साफ संकेत दिया है कि वह इस बारे में कुछ कदम तुरंत उठायेगा.
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