मुंबईः पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आेर से की गयी नोटबंदी की घोषणा खुद सरकार के लिए ही नुकसानदायक साबित हो रहा है. इसका कारण यह है कि रिजर्व बैंक ने सरकार को जून 2017 को समाप्त वित्त वर्ष में 30,659 करोड़ रुपये का लाभांश देने की घोषणा की है. यह लाभांश पिछले साल के मुकाबले करीब आधा है. विश्लेषकों के अनुसार, नोटंबदी के कारण नये नोटों की छपाई समेत अन्य कारणों से रिजर्व बैंक की ओर से सरकार को मिलनेवाले लाभांश में कमी आयी है. पिछले वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक ने सरकार को लाभांश के रूप में 65,876 करोड़ रुपये दिये थे.
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केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा कि रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल ने हुई बैठक में 30 जून 2017 को समाप्त वित्त वर्ष के लिए अधिशेष राशि 306.59 अरब रुपये (30,659 करोड़ रुपये) भारत सरकार को ट्रांसफर करने का फैसला किया है. हालांकि, शीर्ष बैंक ने कम लाभांश दिये जाने के बारे में कुछ नहीं बताया. बजटीय अनुमान के अनुसार, सरकार ने रिजर्व बैंक से 2017-18 में 58,000 करोड़ रुपये के लाभांश मिलने का अनुमान रखा था.
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक, सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों से 74,901.25 करोड़ रुपये के लाभांश का अनुमान रखा गया था. इसके पीछे के कारणों को बताते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि पिछले कुछ साल से रिटर्न कम हो रहा है, जिसका कारण विकसित देशों में नकारात्मक ब्याज दरें हैं. उन्होंने कहा कि बैंकों में नकदी बढ़ने के कारण रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो पर धन उधार लेता रहा है और ब्याज दे रहा है. इससे उसके राजस्व पर असर पड़ा.
विश्लेषकों के अनुसार, रिजर्व बैंक की आय में कमी का एक कारण गयी मुद्रा की छपाई की लागत भी है. इसके अलावा, 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से हटाने के बाद की व्यवसथा को संभालने पर भी रिजर्व बैंक की लागत बढ़ गयी.
ऐक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौगत भट्टाचार्य ने कहा कि नये नोटों की छपाई और पुराने नोट वापस लाने पर लागत बढ़ गयी होगी. अचानक नोटों की बाढ़ को एमएसएस और रिवर्स रेपो के जरिये नियंत्रित करने की लागत भी महत्व रखती है.
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