#Big_Question : #VishalSikka के बाद कौन बनेगा #InfosysCEO ? जानें क्या कहते हैं Industry Experts

देश में किसी बड़ी कंपनी में शीर्ष पद पर प्रवर्तक होना चाहिए या किसी बाहरी को बैठाना चाहिए, विशाल सिक्का के इन्फोसिस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पद से इस्तीफे के बाद यह बहस फिर छिड़ गयी है. विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी के शीर्ष प्रबंधन तथा कुछ संस्थापकों के बीच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2017 7:26 PM

देश में किसी बड़ी कंपनी में शीर्ष पद पर प्रवर्तक होना चाहिए या किसी बाहरी को बैठाना चाहिए, विशाल सिक्का के इन्फोसिस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पद से इस्तीफे के बाद यह बहस फिर छिड़ गयी है. विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी के शीर्ष प्रबंधन तथा कुछ संस्थापकों के बीच विवाद सिक्का के इस्तीफे की प्रमुख वजह है.

सिक्का 2014 में इन्फोसिस के पहले गैर संस्थापक सीईओ बने थे. इससे पहले तक देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी के शीर्ष पद पर कोई न कोई संस्थापक बैठा था. इन्फोसिस ने शुक्रवार को हैरान करते हुए 50 वर्षीय सिक्का के इस्तीफे की घोषणा की. वहीं सिक्का ने कहा है कि उनके कामकाज में लगातार बाधा इस फैसले की वजह है. वहीं इन्फोसिस के निदेशक मंडल ने सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि कंपनी के संस्थापक और पूर्व चेयरमैन एनआर नारायणमूर्ति के लगातार हमले और अभियान की वजह से सिक्का ने पद छोड़ा है.

यह देश में किसी बड़ी कंपनी में शीर्ष पद से बाहरी व्यक्ति की विदाई का दूसरा उदाहरण है. इससे पहले साइरस मिस्त्री को टाटा समूह से हटाया गया था. हालांकि, मिस्त्री के परिवार की समूह की प्रमुख कंपनी टाटा संस में उल्लेखनीय हिस्सेदारी है. इसके बावजूद मिस्त्री को गैर टाटा के रूप में ही देखा गया. कई विशेषज्ञों का कहना है कि मिस्त्री की विदाई की प्रमुख वजह उनका रतन टाटा से विवाद रहा है. हालांकि टाटा समूह ने बाद में एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति की है जो गैर टाटा की ही श्रेणी में आते हैं, लेकिन वह लंबे समय से टीसीएस में थे.

गौरतलब है कि बड़ी संख्या में ब्लूचिप कंपनियों की बागडोर प्रवर्तकों या परिवार के सदस्यों के पास है. इनमें बजाज, हीरो समूह, भारती, महिंद्रा, डॉ रेड्डीज लैब, ल्यूपिन और सनफार्मा शामिल हैं. हालांकि, इनमें से कई कंपनियों ने सीईओ और अन्य शीर्ष पदों पर बाहरी पेशेवर की नियुक्ति की है, मगर इन कंपनियों में शीर्ष कार्यकारी पद (कार्यकारी चेयरपर्सन सहित) प्रवर्तकों के पास ही है.

इसके साथ ही कई बड़े समूह मसलन आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, आईटीसी, एलएंडटी और एक्सिस बैंक भी हैं, जहां शीर्ष प्रबंधन का पद गैर प्रवर्तकों के पास है और ये कंपनियां बरसों से बिना किसी बाधा के संचालन कर रही हैं. कई परिवार संचालित कंपनियों में बच्चों को उत्तराधिकारी की भूमिका संभालने के लिए तैयार किया जाता है.

इनमें दोनों रिलायंस समूह, विप्रो, गोदरेज, सिप्ला और अडाणी आदि आती हैं. हालांकि, 70 वर्षीय नारायणमूर्ति के पुत्र रोहन मूर्ति कुछ समय से आईटी कंपनी से जुड़े हुए हैं, लेकिन मूर्ति का कहना है कि वह अपने बच्चों के लिए पैसा, पद या अधिकार नहीं चाहते हैं. उनकी प्रमुख चिंता इन्फोसिस में संचालन के गिरते स्तर को लेकर है.

इसके बावजूद कई विशेषज्ञों और उद्योग के नेताओं का मानना है कि प्रवर्तकों और शीर्ष प्रबंधन के बीच विवाद की वजह से सिक्का को इस्तीफा देना पड़ा है. उद्यमी और राज्यसभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर ने ट्वीट किया कि यह इन्फोसिस के इतिहास में निचला स्तर है. बोर्ड और शेयरधारकों द्वारा नियुक्त एक पेशेवर सीईओ को भगाया गया.

उद्योगपति हर्ष गोयनका ने ट्वीट किया, किसी संगठन को प्रभावी तरीके से चलाने के लिए आपको सत्ता की धुरी की समझ होनी चाहिए – साइरस, सिक्का ने इसे नहीं समझा. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वीके शर्मा ने कहा कि सिक्का की विदाई बोर्डरुम लड़ाई की वजह से हुई. सिक्का के कार्यकाल में जहां कंपनी ने उद्योग से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन कंपनी सिक्का द्वारा 2020 तक के लिए तय 20 अरब डॉलर के लक्ष्य के आसपास भी नहीं पहुंच पायी.

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