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पेट्रोल-डीजल की कीमतें उपभोक्ताओं की जेब पर चुपचाप कर रहा असर, पढ़ें…

नयी दिल्ली :देश के ज्यादातरराज्यों में पेट्रोल कीकीमत में जुलाई के बाद से करीब 7.3 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि के साथ ही उठ रहे सवालों के बीच पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को जहांईंधनकेदाम की दैनिक आधार पर समीक्षा करने से रोकने के लिये सरकार के हस्तक्षेप से इनकार किया. वहीं पेट्रोल-डीजल के […]

नयी दिल्ली :देश के ज्यादातरराज्यों में पेट्रोल कीकीमत में जुलाई के बाद से करीब 7.3 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि के साथ ही उठ रहे सवालों के बीच पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को जहांईंधनकेदाम की दैनिक आधार पर समीक्षा करने से रोकने के लिये सरकार के हस्तक्षेप से इनकार किया. वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर लगातार पड़ता दिख रहा है. गौर हो कि ज्यादातर राज्यों में पेट्रोल की कीमत 70 रुपये से पार हो गयी है जबकि डीजल का भाव 60 रुपये प्रति लीटर के आसपास है.

दरअसल, इस साल 16 जून से पूरे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम में हर दिन बदलाव की व्यवस्था (डेली डाइनैमिक प्राइसिंग) लागू कर दी गयी है. तब सेईंधन के दाम में उतार-चढ़ाव के बाद 13 सितंबर 2017 को दिल्ली में पेट्रोल 70.38 रुपये और डीजल 58.72 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया. ईंधन की कीमतों में वृद्धि को लेकर आलोचना को अनुचित करार देते हुए पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि 16 जून को दैनिक आधार पर कीमत समीक्षा के बाद एक पखवाड़े तक कीमतों में आयी कमी की अनदेखी की गयी और केवल अस्थायी तौर पर मूल्य वृद्धि की प्रवृत्ति को जोर-शोर से उठाया जा रहा है. देश अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत आयात से पूरा करता है और इसलिए 2002 से घरेलू ईंधन की दरों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव से जोड़ा गया है.

वहीं कच्चे तेल के दामअंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार कम होनेकेबाद भी देश में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम ने आम लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है. गौरतलब है कि 26 मई 2014 को जब मोदी सरकार ने शपथ ग्रहण लिया था तब कच्चे तेल की कीमत 6330.65 रुपये प्रति बैरल थी जबकि प्रति डॉलर रुपये की कीमत 58.59 थी. लेकिन, 11 सितंबर 2017 को कच्चे तेल की कीमत करीब-करीब आधी घटकर 3368.39 रुपये प्रति बैरल पर आ गयी, जबकि प्रति डॉलर रुपये की कीमत 63.89 रही.

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में जब कच्चे तेल के दाम करीब-करीब आधे हो गये, तो पेट्रोल-डीजल के दाम घट क्यों नहीं रहेहै. मालूमहो कि 7 जून 2014 को दिल्ली में पेट्रोल 71.51 रुपये जबकि डीजल 57.28 रुपये प्रति लीटर था. वहीं इसी साल 1 मई से पुदुचेरी, विशाखापत्तनम, उदयपुर, जमशेदपुर और चंडीगढ़ के 109 पेट्रोल पंपों पर डेली डाइनैमिक प्राइसिंग लागू की गयी थी. इस व्यवस्था को 16 जून से पूरे देश में लागू कर दिया गया. इसके तहत अब रोज सुबह 6 बजे पेट्रोल-डीजल के दाम बदल जाते हैं.

उधर, इस सालएक जुलाई से पूरे देश में लागू हुई नयी टैक्स व्यवस्था जीएसटी से पेट्रोल-डीजल को बाहर रखा गया है और इन पर केंद्र एवं राज्यों के अलग-अलग टैक्स अब भी लग रहे हैं. अब अगर केंद्रीय करों की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद से डीजल पर लागू एक्साइज ड्यूटी में 380फीसदी और पेट्रोल पर 120फीसदी का इजाफा हो चुका है. इस दौरान केंद्र सरकार को इस मद से हुई कमाई भी तीन गुना से ज्यादा बढ़ गयी है. इस दौरान राज्य सरकारों की ओर से लगाये जा रहे सेल्स टैक्स और वैट का भी विस्तार हुआ है.

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की ओर से 27 मार्च 2017 को लोकसभा में दी गयी जानकारी के मुताबिक, अप्रैल 2014 में 10 राज्यों ने डीजल पर 20फीसदी से ज्यादा वैट लगा रखे थे, लेकिन अगस्त 2017 में ऐसे राज्यों कीसंख्या बढ़कर 15 हो गयी. अप्रैल 2014 में 17 राज्यों ने पेट्रोल पर कम-से-कम 25 प्रतिशत वैट लगा रखे थे और अगस्त 2017 में ऐसे राज्यों की संख्या बढ़कर 26 पर पहुंच गयी. अप्रैल 2014 में पेट्रोल पर सबसे ज्यादा 33.06 प्रतिशत वैट पंजाब ने लगा रखा था, लेकिन अगस्त 2017 में 48.98 प्रतिशत के साथ महाराष्ट्रसर्वोच्च स्थान पर पहुंच गया.

आने वाले दिनों में मूल्य बढ़ोतरी से मिल सकती है राहत
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत आधी रह जाने के बावजूद पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से सरकार चिंतित है. ऐसे में आम जनता को भावी मूल्य वृद्धि से बचाने के लिए कुछ उपायों पर विचार किया जा सकता है. हालांकि सरकार की तरफ से फिलहाल केंद्रीय शुल्कों में कमी की संभावना से इनकार किया गया है, लेकिन राज्य सरकारों पर पेट्रोल व डीजल पर लागू बिक्री कर या वैट की दरों में कमी करने का दबाव बनाया जा सकता है. इसी तरह से अगर आने वाले दिनों में भी खुदरा कीमतें बढ़ती हैं तो तेल कंपनियों को भी कुछ हद तक मूल्य वृद्धि का बोझ वहन करने को कहा जा सकता है. इससे आम जनता को कुछ हद तक संभावित मूल्य बढ़ोतरी से राहत मिल सकती है.

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