एसबीआई रिसर्च ने कहा- पिछले एक साल से अर्थव्यवस्था में छायी है सुस्ती और आगे भी रहेगी जारी
मुंबई: एसबीआई रिसर्च ने कहा है कि सितंबर, 2016 से अर्थव्यवस्था में सुस्ती है. उसने कहा है कि यह तकनीकी नहीं, बल्कि वास्तविक है. एसबीआई रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती को दूर करने के लिए सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की जरूरत है. रिपोर्ट के अनुसार, अर्थव्यवस्था सितंबर, 2016 से […]
मुंबई: एसबीआई रिसर्च ने कहा है कि सितंबर, 2016 से अर्थव्यवस्था में सुस्ती है. उसने कहा है कि यह तकनीकी नहीं, बल्कि वास्तविक है. एसबीआई रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती को दूर करने के लिए सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की जरूरत है. रिपोर्ट के अनुसार, अर्थव्यवस्था सितंबर, 2016 से सुस्ती में है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सुस्ती की वजह तकनीकी रूप से लघु अवधि या क्षणिक भर नहीं है. यह आगे भी जारी रहेगी.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सुस्ती से यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह अस्थायी है या नहीं. हालांकि, रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया है. हालांकि, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में गिरावट को तकनीकी बताया था. जून तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 5.7 फीसदी के तीन साल के निचले स्तर पर आ गयी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुस्ती के इस रुख का हल सरकार द्वारा सार्वजनिक खर्च बढ़ाना है. समय की जरूरत यह है कि खर्च बढ़ाया जाये.
हाल ही में जारी पहली तिमाही के जीडीपी वृद्धि आंकड़े आने के बाद यह बैठक हो रही है. वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि 5.7 प्रतिशत रही, जो तीन साल का न्यूनतम स्तर है. इससे पूर्व वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 7.9 प्रतिशत तथा पिछली तिमाही जनवरी-मार्च तिमाही में 6.1 प्रतिशत रही थी. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर लगातर छठी तिमाही में घटी है.
आर्थिक समीक्षा-दो में यह अनुमान जताया गया है कि अपस्फीति दबाव के कारण चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना संभव नहीं होगा. निर्यात के समक्ष भी चुनौतियां हैं और औद्योगिक वृद्धि दर पांच साल में न्यूनतम स्तर पर आ गयी है. अप्रैल-जून तिमाही में चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़कर जीडीपी का 2.4 प्रतिशत या 14.3 अरब डालर पहुंच गया. मुख्य रूप से व्यापार घाटा बढने से कैड बढ़ा है.
इसके साथ ही, बताया यह भी जा रहा है कि बैठक में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के साथ हो रही कठिनाइयों, नोटबंदी के बाद के प्रभाव और राजकोषीय गुंजाइश जैसे मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है. इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कर संग्रह के साथ-साथ साल के अनुमान को भी प्रधानमंत्री के समक्ष पेश किया जा सकता है.
सरकार के वित्त के बारे में पूरी तस्वीर पेश करने के लिए विनिवेश राशि के बारे में भी प्रधानमंत्री को जानकारी दी जा सकती है. सूत्रों के अनुसार, बैठक में आर्थिक वृद्धि को गति देने, रोजगार सृजन और निजी निवेश को पटरी पर लाने के उपायों पर चर्चा की जा सकती है.
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