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रिजर्व बैंक की दो दिवसीय की मौद्रिक समीक्षा बैठक शुरू, सरकार आैर उद्योग जगत चाहते हैं रेपो रेट में कटौती

मुंबईः रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो दिवसीय बैठक मंगलवार को यहां शुरू हो गयी. सरकार के साथ उद्योग जगत भी उम्मीद कर रहा है कि केंद्रीय बैंक वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. उल्लेखनीय है कि चालू […]

मुंबईः रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो दिवसीय बैठक मंगलवार को यहां शुरू हो गयी. सरकार के साथ उद्योग जगत भी उम्मीद कर रहा है कि केंद्रीय बैंक वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर तीन साल के निचले स्तर 5.7 फीसदी पर आ गयी है.

इसे भी पढ़ेंः रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में की 0.25 फीसदी कटौती, अब सस्ते होंगे होम लोन के र्इएमआर्इ

हालांकि, विशेषज्ञ मानकर चल रहे हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों के मोर्चे पर यथास्थिति कायम रखेगा. चालू वित्त वर्ष की चौथी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक के नतीजे बुधवार को जारी किये जायेंगे. इस पर सभी पक्षों की निगाह है. विशेषरूप से उद्योग ब्याज दरों में कटौती की मांग कर रहा है. हालांकि, बैंकरों का मानना है कि रिजर्व बैंक यथास्थिति कायम रखेगा, क्योंकि मुद्रास्फीति बढ़ी है.

एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय बैंक बुधवार को मौद्रिक समीक्षा में यथास्थिति कायम रखेगा. इस समय रिजर्व बैंक निचली वृद्धि दर, नरम मुद्रास्फीति और वैश्विक अनिश्चितता के बीच फंसा है. मॉर्गन स्टेनली के शोध नोट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करेगा. हालांकि, वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने पिछले सप्ताह कहा था कि खुदरा मुद्रास्फीति निचले स्तर पर है. इससे केंद्रीय बैंक अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरें घटा सकता है.

उद्योग मंडल एसोचैम ने एमपीसी को पत्र लिखकर कहा है कि ब्याज दरों में कम से कम चौथाई फीसदी की कटौती की जानी चाहिए, क्योंकि उभरती चुनौतियों की वजह से अर्थव्यवस्था को तत्काल कुछ राहत की जरूरत है. अपनी पिछली बैठक में एमपीसी ने रेपो दर को 0.25 फीसदी घटाकर 6 फीसदी कर दिया था. यह 10 महीने में पहली कटौती थी. इससे नीतिगत दर करीब सात साल के निचले स्तर पर आ गयी.

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