2017-18 वित्त वर्ष में टैक्स में छूट व कटौती…ऐसे शुरू करें टैक्स प्लानिंग
वित्तीय वर्ष शुरू हुए सात महीने बीत चुके हैं. ऐसे में जो लोग अभी तक किसी कारण से टैक्स प्लानिंग नहीं कर पाये हैं, वे आनेवाले पांच महीने में भी आय की गणना कर टैक्स प्लान कर सकते हैं. इसके लिए आयकर अधिनियम के तहत विभिन्न तरह के विकल्प उपलब्ध हैं. उन विकल्पों पर गौर […]
वित्तीय वर्ष शुरू हुए सात महीने बीत चुके हैं. ऐसे में जो लोग अभी तक किसी कारण से टैक्स प्लानिंग नहीं कर पाये हैं, वे आनेवाले पांच महीने में भी आय की गणना कर टैक्स प्लान कर सकते हैं. इसके लिए आयकर अधिनियम के तहत विभिन्न तरह के विकल्प उपलब्ध हैं. उन विकल्पों पर गौर करें और कर के बोझ से बचने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दें.
आयकर विभाग ने विभिन्न तरह से आयकर में छूट का प्रावधान दिया है. इसके तहत कर के दरों में कटौती या सेक्शन 80 सी, 80 डी, 80 यू आदि के तहत छूट शामिल है.
इनमें सबसे लोकप्रिय कन्वेयेंस एलाउंस, एचआरए, होम लोन ब्याज, सेक्शन 80 सी के तहत कटौती, लीव इनकैशमेंट, ग्रेच्युटी, मेडिकल रिंबरसमेंट आदि है. सैलरी इनकम व हाउस प्रोपर्टी इनकम के तहत कई सारे भत्ते उपलब्ध हैं. वहीं बिजनेस इनकम के विरुद्ध खर्च की क्षमता के लिए, पूंजी लाभ के विरुद्ध छूट व पूंजी लाभ की गणना के लिए भी छूट शामिल है.
2,50,000 यह आय इनकम टैक्स के तहत करयोग्य नहीं है.
3,00,000 यह राशि सीनियर सिटिजन के लिए टैक्स के दायरे में नहीं है.
5,00,000 सुपर सीनियर सिटिजन के लिए आयकर के दायरे में नहीं है.
इन बेसिक छूट के अलावा भी कई तरह के प्रावधान आयकर से राहत दिलवा सकते हैं. नौकरी पेशा लोगों को एचआरए, चिल्ड्रेन एजुकेशन भत्ता, चिल्ड्रेन होस्टल भत्ता, लीव ट्रेवल एलाउंस, मनोरंजन भत्ता आदि में अंडर सेक्शन 10 के तहत गणना पर छूट मिलता है. इन छूट व कटौतियों का लाभ लेने के लिए दिये गये मापदंड़ों का अनुपालन करना होता है. अपनी पारिवारिक स्थिति को देखते हुए इन लाभ जरूर लें.
फिक्स्ड डिपोजिट – निवेश को लेकर टैक्स प्लानिंग
कोई भी व्यक्ति जो आयकर देता है, वह इसमें कटौती के लिए ब्याज में मिलने वाली आय को अपने अभिभावक (सीनियर सिटिजन) के नाम कर सकता है. इसके निम्नलिखित तरीके हैं
1 अपने इनवेस्टमेंट को अपने अभिभावक के नाम स्थानांतरित करने से इनकम टैक्स एक्ट 1961 के अंडर सेक्शन 56 के तहत छूट मिलेगी.
2 अपने माता-पिता के नाम से अधिक ब्याज वाला निवेश कर सकता है, इससे उनके टैक्स का बोझ काफी कम होगा.बैंकों के विभिन्न तरह के फिक्स्ड डिपोजिट योजना में प्राप्त होने वाले ब्याज (आय) पर भी छूट प्राप्त कर सकते हैं.
कुछ महत्वपूर्ण छूट प्राप्ति के विकल्प
80 सी के तहत छूट
– लाइफ इंश्योरेंस के लिए दी जाने वाली प्रीमियम पर
– प्रोविडेंट फंड में अंशदान पर
– पीपीएफ में अंशदान पर
– दो बच्चों तक की पढ़ाई के लिए ट्यूशन फीस की राशि पर
– पोस्ट ऑफिस में किये गये पांच साल के टाइम डिपोजिट पर
– एनएससी या किसी सरकारी सिक्युरिटी में निवेश पर
– हाउस लोन के भुगतान पर
शर्त
– अधिकतम 150000 रुपये पर ही छूट का दावा किया जा सकता है.
80 सीसीसी
– एलआइसी के कुछ निश्चित पेंशन फंड में अंशदान पर
शर्त
– अगर पहले इसका लाभ ले चुके हैं तो यह नहीं मिलेगा.
– कटौती की अधिकतम सीमा 80 सीसीसी के तहत 150000 है.
80 सीसीडी
– केंद्र सरकार के पेंशन स्कीम में अंशदान पर
शर्त
– सेक्शन 80 सी के तहत पहले से दावा किये जाने पर यहां कटौती का लाभ नहीं मिलेगा.
– कटौती की अधिकतम राशि आय या सैलरी का 10 प्रतिशत या 100000 तक होनी चाहिए.
80 डी के तहत
– मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम के तहत एलआइसी या दूसरे इंश्योरर को किये गये भुगतान पर
– केंद्र सरकार के हेल्थ स्कीम में भुगतान करने पर
शर्त
– पॉलिसी खुद के, जीवनसाथी के, बच्चों के, अभिभावक के या हिंदू अनडिवाइडे फैमिली के किसी भी सदस्य के नाम होना चाहिए.
– अधिकतम कटौती 25000 तक मिलेगी.
80 इइ के तहत
– किसी भी संस्थान से 35 लाख तक के लिए गये लोन के ब्याज भुगतान पर
शर्त
– लोन आवासीय संपत्ति लेने के उद्देश्य से लिया गया हो और इसका वैल्यू 50 लाख से अधिक न हो
– अधिकतम कटौती 50000 तक हो सकती है. वहीं अतिरिक्त कटौती का भी प्रावधान है जो सेक्शन 24(बी) के तहत 2 लाख है.
80 इइ के तहत
– किसी के द्वारा रेंट भुगतान करने पर
शर्त
– उन्हें कोई हाउस रेंट एलाउंस नहीं मिल रहा हो
– अधिकतम छूट का दावा 60000 रुपये तक पर की जा सकती है यानी प्रति माह 5000 रुपये.
80 टीटीए के तहत
– बचत खाते से आनेवाले इंटरेस्ट पर
शर्त
– 100 प्रतिशत राशि कटौती का विषय है, मगर राशि 10000 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
– सेक्शन 10 के तहत आय में मिली छूट पर 3500 रुपये तक दावा किया जा सकता है. इसलिए अगर किसी के बचत खाते का इंटरेस्ट 13500 से ज्यादा हो तो इसमें चिंता की कोई बात नहीं है.
राष्ट्रीय पेंशन योजना : रिटायरमेंट के बाद रखे आपका ख्याल
अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए समय रहते योजना बना कर अमल करना बेहद समझदारी वाला कदम है. रिटायमेंट के बाद अपनी आय को बनाये रखने के लिए विभिन्न तरह की पेंशन योजनाएं हैं. उनमें सरकार की नेशनल पेंशन स्कीम भी है. इस स्कीम के साथ रिटायरमेंट प्लानिंग करने से पहले उसके रिटर्न के गणित को बेहतर तरीके से समझ लेना बहुत जरूरी है.
क्या है एनपीएस
सरकार ने 18 से लेकर 60 साल तक के लोगों के लिए रिटायरमेंट के बाद आय की व्यवस्था करने के लिए यह स्कीम शुरू किया है. निजी क्षेत्र के अंशधारकों के लिए एनपीएस से जुड़ने की अधिकतम उम्र सीमा बढ़ाकर 65 साल कर दी गयी है. एनपीएस में दो तरह के पेंशन एकाउंट होते हैं. टीयर वन एकाउंट में से पैसा बीच में नहीं निकाला जा सकता. इसको 500 रूपये या अधिक राशि से खुलवाया जा सकता है. इसमें पहले न्यूनतम सालाना निवेश 6000 करना जरूरी होता था लेकिन सरकार ने गत वर्ष इसकी सीमा एक हजार रुपये कर दी है.
कर लाभ का बेहतर विकल्प
एनपीएस टैक्स सेविंग का अच्छा माध्यम है. इसके माध्यम से तीन तरीके से टैक्स बचाया जा सकता है. इसमें निवेश की गयी 1.5 लाख तक की राशि पर टैक्स छूट मिलती है. वहीं अगर इंप्लायर आपकी बेसिक सैलेरी का 10 प्रतिशत पेंशन फंड में निवेश करता है, तो इसका भी टैक्स लाभ आपको मिलेगा. इस पर हर साल 50 हजार रुपये तक की टैक्स छूट मिल सकती है.
यह पहले के निवेश पर मिलनेवाले छूट से अतिरिक्त छूट है. इस योजना में किया गया निवेश मैच्चुरिटी के बाद ही निकलता है. यदि अंतिम रकम (कार्पस फंड) दो लाख रुपये से कम है, तो आपको पूरी राशि निकालने की छूट होती है. लेकिन कॉपर्स दो लाख से अधिक होने पर मात्र 60 फीसदी राशि ही निकाला जा सकता है. शेष 40 फीसदी राशि से एन्युटी खरीदनी होती है. मैच्युरिटी के बाद प्राप्त फंड सरकारी कर्मचारियों के लिए टैक्स फ्री होता है लेकिन प्राइवेट सेक्टर के लोगों को इस पर टैक्स देना होता है.
राशि निकालने का विकल्प
नये नियमों के अनुसार अब 10 साल तक किस्त जमा करने के बाद कुछ शर्तों के साथ राशि निकाल सकते है. जैसे बच्चे की पढ़ाई, शादी, पहले घर की खरीद या परिवार के किसी सदस्य के इलाज के लिए 25 प्रतिशत राशि को निकाला जा सकता है.
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