बिकने के कगार पर भारत की सबसे पुरानी आइसक्रीम कंपनी, आठ दशक से है गांधी परिवार का मालिकाना हक!
मुंबई : लंबे समय पर पारिवारिक विवादों में घिरे रहने के बाद भारत में आइसक्रीम बनाने वाली सबसे पुराने कंपनी वाडीलाल विदेशी कंपनी के हाथों बिकने के कगारर पर है. मीडिया की खबरों के अनुसार, अहमदाबाद की आठ दशक पुरानी कंपनी वाडीलाल पर गांधी परिवार का मालिकाना हक है. वाडीलाल से कंपनी के प्रमोटर्स पूरी […]
मुंबई : लंबे समय पर पारिवारिक विवादों में घिरे रहने के बाद भारत में आइसक्रीम बनाने वाली सबसे पुराने कंपनी वाडीलाल विदेशी कंपनी के हाथों बिकने के कगारर पर है. मीडिया की खबरों के अनुसार, अहमदाबाद की आठ दशक पुरानी कंपनी वाडीलाल पर गांधी परिवार का मालिकाना हक है. वाडीलाल से कंपनी के प्रमोटर्स पूरी तरह से निकलने की सोच रहे हैं. फ्रोजेन फूड सेगमेंट में वाडीलाल के पास सबसे अधिक बाजार हिस्सेदारी है.
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बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी के 64 फीसदी शेयर इसके प्रमोटर्स के पास हैं. इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि वाडीलाल ने लिंकन इंटरनैशनल को इन्वेस्टमेंट बैंकर चुना है, जो उसकी तरफ से संभावित खरीदारों से संपर्क करेगा. एक सूत्र ने बताया कि मूल्यांकन और कितनी हिस्सेदारी बेचने के बारे में फैसला प्रमोटर खरीदार को देखकर तय करेंगे.
600 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद
इकोनाॅमिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, एक अन्य करीबी सूत्र ने बताया कि वाडीलाल इंडस्ट्री में 60 फीसदी के करीब हिस्सेदारी के लिए प्रमोटर 600 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद कर रहे हैं. एक अन्य सूत्र ने बताया कि अभी एक ही प्रमोटर कंपनी से निकलना चाहते हैं, जिनके पास बड़ी हिस्सेदारी है. सूत्र ने बताया कि वीरेंद्र गांधी कंपनी में अपने शेयर बेच सकते हैं. हालांकि, वेबसाइट का दावा है कि वह स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर पाया कि एक प्रमोटर हिस्सेदारी बेचना चाहते हैं या सभी प्रमोटर इसका मन बना चुके हैं. इस बारे में लिंकन इंटरनैशनल, वाडीलाल इंडस्ट्रीज और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर एंड चेयरमैन को भेजे गये सवालों का जवाब नहीं मिला.
एेसे उभरा पारिवारिक विवाद
इकोनाॅमिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, 2015 में एक पारिवारिक विवाद कंपनी लॉ बोर्ड तक पहुंच गया था. इसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर कुप्रबंधन और वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया था. वीरेंद्र गांधी ने याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके भाई राजेश और कजिन देवांशु ने मिलकर गलत तरीके से वाडीलाल केमिकल्स पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने कहा था कि दोनों ने मिलकर उन्हें इस कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद और बोर्ड से हटा दिया है. इस मामले में कोर्ट के बाहर मामले को सुलझाया गया, जिसका ब्योरा आज तकक सार्वजनिक नहीं किया गया.
क्या है विवाद की वजह?
दिवगंत रामचंद्र गांधी के बच्चों और भतीजे के बीच विवाद की वजह 1999 में परिवार के सदस्यों के बीच हुआ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) है. इसके मुताबिक, रामचंद्र के बड़े बेटे वीरेंद्र और राजेश और उनके भाई लक्ष्मण के बेटे देवांशु को वाडीलाल ग्रुप की कंपनियों में बराबर की हिस्सेदारी दी गयी थी. इसमें गैर-सूचीबद्ध वाडीलाल केमिकल्स भी शामिल है. वीरेंद्र गांधी ने 2015 में कंपनी लॉ बोर्ड में जो याचिका दायर की थी, एमओयू उसका भी हिस्सा था. इसके मुताबिक, इन कारोबार पर संयुक्त मालिकाना हक रहेगा और कोई भी पार्टी सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर किसी सूचीबद्ध कंपनी या भागीदारी फर्म में बिना लिखित सहमति के हिस्सेदारी नहीं बढ़ा सकती.
प्रमोटर्स के पास 64.80 फीसदी हिस्सेदारी
सितंबर 2017 तक वाडीलाल में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 64.80 फीसदी थी, यानी उनके पास 46,60,370 शेयर थे. इनमें से वीरेंद्र गांधी के पास 2,78,333 शेयर थे. राजेश गांधी के पास 29,0132 और देवांशु गांधी के पास 34,1450 शेयर थे. बाकी के शेयर परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम थे. कंपनी को वित्त वर्ष 2016-17 में 16.33 करोड़ का मुनाफा हुआ था और कुल आमदनी 482.34 करोड़ रुपये थी. वाडीलाल के शेयर पिछले शुक्रवार को 1,029.55 रुपये पर बंद हुए थे और कंपनी की बाजार मूल्यांकन 740 करोड़ रुपये थी.
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