नयी दिल्ली : मोदी सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) के बाद एक और बड़े सुधार की ओर कदम बढ़ाया है. सरकार ने नये डायरेक्ट टैक्स कानून का खाका तैयार करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है. टास्क फोर्स 6 महीने में सरकार को रिपोर्ट देगा.
नया कानून मौजूदा इनकम टैक्स कानून की जगह लेगा. बताया जाता है कि नये डायरेक्ट टैक्स कोड (DTC) से न केवल वित्तीय काम आसान हो जायेंगे, बल्कि इससे लोगों को टैक्स भी कम देना होगा.
7 सदस्यों वाला यह टास्क फोर्स सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज के मेंबर अरबिंद मोदी की अगुआई में काम करेगी और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन इसके स्थायी विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे.
इनके अलावा, टास्क फोर्स में टैक्स गुरु मुकेश पटेल, चार्टर्ड अकाउंटेंट गिरिश आहूजा, ईएंडवाय चेयरमैन एंड रीजनल मैनेजिंग पार्टनर राजीव मेमानी, आईसीआरआईईआर कंसल्टेंट मानसी केडिया, पूर्व आईआरएस अफसर जीसी श्रीवास्तव शामिल हैं.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, बीते एक और दो सितंबर को आयोजित राजस्व ज्ञान संगम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आयकर कानून, 1961 को तैयार हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और इसका मसौदा दोबारा तैयार करने की जरूरत है.
ऐसे में बजट से पहले सरकार का यह कदम इस बात का संकेत है कि सरकार की मंशा जल्द एक आसान और साफ कानून लाने की है और इसका मतलब यह भी है कि निवेशकों के लिए कारोबार को आसान बनाने के लिए डायरेक्ट टैक्सेज की नीति में बदलाव किया जायेगा.
यहां जानना गौरतलब है कियह टास्कफोर्स मुख्य रूप से चार मुद्दों पर काम करेगा. पहला, अलग-अलग देशों में डायरेक्ट टैक्स को लेकर क्या प्रावधान हैं. दूसरा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बेहतर व्यवस्था क्या है. तीसरा, देश की जो आर्थिक स्थिति है, उसमें डायरेक्ट टैक्स के लिए सबसे बेहतर व्यवस्था कैसी होनी चाहिए. चौथा, आयकर नियमों में क्या बदलाव होने चाहिए.
बताते चलें कि पूर्वप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बदलाव की रूपरेखा खींची गयी थी. उस दौरान एक समिति के सुझावों के आधार पर प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) का मसौदा तैयार किया गया था और उसके बाद एक विधेयक वर्ष 2010 में लोकसभा में पेश भी किया गया.
इसमें आम लोगों के लिए कर की दरें 10, 20 और 30 प्रतिशत तक रखे जानेऔर कई तरह की कर रियायतों को खत्म करने का प्रस्ताव था. उसमें कर व्यवस्था को सरल बनाने का भी प्रावधान था.
यह मसौदा वित्त मंत्रालय के पास भेजा गया, जिसने अपनी रिपोर्ट 2012 में दे दी. लेकिन मनमोहन सिंह सरकार इसे लोकसभा में पास कराने में सफल नहीं रही. इसके बाद वर्ष 2014 में 15वीं लोकसभा के कार्यकाल खत्म होने के साथ ही इस विधेयक की वैधता खत्म हो गयी.
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